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Swami Vivekananda Full Biography Hindi-स्वामी विवेकानंद की जीवनी

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इस पोस्ट में हम बात करने वाले हैं अपनी प्रकांड विद्वता के बल पर भारतीय संस्कृति और भारतीय वैदिक वांगमय की आभा से पूरी दुनिया को आलोकित करने वाले महान ओजस्वी संत स्वामी विवेकानंद की । स्वामी विवेकानंद की जीवनी लिखने में हमारा उदेश्य उनकी पूरी जीवनयात्रा (swami vivekananda full biography in hindi) को संक्षिप्त में अपने जिज्ञासु पाठकों के लिए प्रस्तुत करना ही रहा है ।

अनुक्रमणिका | Index दिखाएं

स्वामी जी का संक्षिप्त परिचय

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ! जैसे उपनिषद के सूत्र वाक्यों एवं आध्यात्मिक चेतना धार्मिक ज्ञान और मानवीय करुणा से ओतप्रोत अपनी शिक्षाओं के द्वारा वह जीवन पर्यंत भारत भूमि और संपूर्ण विश्व समुदाय को नैराश्य भाव से विलग होकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक कर्म करने की शिक्षा देते रहे ।  

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पराधीन भारत के युवाओं में उसकी महान सांस्कृतिक विरासत और परम्पराओं के प्रति आदर और श्रद्धा का बीजारोपन उन्होने सफलता पूर्वक किया । वे किसी भी बड़े परिवर्तन के लिए युवाओं के योगदान को महत्वपूर्ण मानते थे । युवाओं के भीतर उनके द्वारा प्रज्ज्वलित देश प्रेम और कर्मठता की चिंगारी ने अंततः इस देश की आजादी में भी बड़ा ही निर्णायक योगदान दिया है । 

आध्यात्मिकता से ओत प्रोत अपने क्रांतिकारी विचारों से उन्होने तत्कालीन समाज और विशेष रूप से युवाओं को झकझोर दिया । उनके संदेशों में ईश्वर के प्रति निष्ठा ,स्वयं में विश्वास , आपसी भाईचारा और कर्म करने की प्रेरणा ही मुख्य थे । 

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अपने क्रांतिकारी विचारों से उन्होने इस समाज को युगांतकारी परिवर्तन का सूत्र दिया । आज के आधुनिक भारत के निर्माण में स्वामी विवेकानंद जी जैसे महान संतों का बहुत अधिक योगदान है इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता ।

अपने उदबोधनों से भारतीय युवा-चेतना को आंदोलित करने वाले महापुरुष के जन्म जयंती पर यह देश 12 जनवरी को युवा दिवस मानता है । मेरे मन में भी उनके जीवन और शिक्षाओं  के बारे में कुछ लिखने का विचार इसी दिन आया । यह लेख-swami vivekananda full biography in hindi स्वामी जी के प्रति हमारी श्रद्धांजलि है ।  

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स्वामी विवेकानंद जी का सम्पूर्ण जीवन -Swami Vivekananda Full Biography Hindi

स्वामी विवेकानंद का बचपन

स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था । बालक नरेंद्र का जन्म 12 जनवरी 1863 को सुर्योदय से ठीक पहले 6 बजकर 33 मिनट पर कलकत्ता में हुआ था । पिता विश्वनाथ दत्त हाईकोर्ट के ख्याति प्राप्त वकील थे । पिता कुछ हद तक अँग्रेज़ी लाइफ स्टाइल के शौकीन थे तो माता भुवनेशरी देवी धार्मिक प्रवृति की गृहिणी थी। जहां माता जी के कारण घर में पूजा-पाठ का वातावरण बना रहता तो वहीं पिता के कारण वे पश्चिमी बौद्धिकों के वैचारिक संपर्क में आ सके । 

शिक्षा दीक्षा

वर्ष 1871 में बालक नरेंद्र का नामांकन ईश्वरचंद विद्यासागर द्वारा स्थापित मेट्रोपोलिटन स्कूल में कारवाई गयी । किसी कारण से उनके पिता को 3 वर्षों के लिए (1877-1879 ) रायपुर जाना पड़ा तो साथ में नरेंद्र भी गए । 

फिर वापिस कोलकाता आकर उन्होने प्रेसीडेंसी कॉलेज से परीक्षा उतीर्ण की । वो उस वर्ष-1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज से प्रथम श्रेणी में परीक्षा उतीर्ण करने वाले एकमात्र विद्यार्थी थे ।उन्हें साहित्य इतिहास और दर्शन पढ़ने में अत्यंत आनंद आता था और बुद्धि इतनी तीक्ष्ण थी कि जिस चीज को एक बार पढ़ लिए फिर उसके लिए दोबारा किताब खोलने की जरूरत नहीं पड़ती थी ।  

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व्यक्तिगत जीवन में कठिनाई और रामकृष्ण परमहंस का सानिध्य

निजी जीवन में दुख

स्वामी विवेकानंद का जीवन तमाम उतार चढ़ाव से होकर गुजरा है । जब वह सिर्फ 21 वर्ष के थे तो उनके पिता की मृत्यु हो गयी और सभी 9 भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी उनके कंधे पर आ गयी । व्यक्तिगत जीवन के झंझावातों ने उन्हें ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न उठाने को मजबूर किया | वे ईश्वर के अस्तित्व के बारे में जानने को उत्सुक हुए और ऐसे गुरु की तलाश करने लगे जो उन्हें अस्तित्व और ईश्वर के बारे में सही से बता सके । इसी दरम्यान उनकी मुलाक़ात ब्रह्मा समाज के तत्कालीन नेता केशव चंद्र सेन और फिर देवेन्द्रनाथ ठाकुर  से हुई ।

ब्रह्म समाज से संपर्क

प्रेसीडेंसी कॉलेज में जब नरेंद्र का एमिशन हुआ था तो उससे पहले वो थोड़े पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंग गए थे । ब्रहमसमज जो उस समय कोलकाता के आसपास आधुनिक विचारों का प्रचार के नाम पर मूर्ति पूजा का विरोध कर रही थी और समाज में परोपकारिक कार्यों को बढ़ावा दे रही थी , से प्रभावित हो नरेंद्र भी उनसे जुड़ गए । फिर यहीं के केशवचन्द्र सेन और देवेन्द्रनाथ ठाकुर के द्वारा इनका संपर्क होता है अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से । केशवचंद्र सेन थोड़े ही दिन पहले रामकृष्ण देव के प्रभाव में अपने विचार बदल कर सामाजिक क्रांति से जुड़ गए थे । 

रामकृष्ण परमहंस से भेंट

स्वामी विवेकानंद के जीवन (swami vivekananda full biography in hindi) में रामकृष्ण परमहंस का निर्णायक योगदान है । इन्हीं लोगों के माध्यम से स्वामी विवेकानंद की मुलाक़ात रामकृष्ण परमहंस से हुई । रामकृष्ण ने आते ही इन्हें पहचान लिया और फिर रामकृष्ण परमहंस की कृपा से इन्हें आत्मसाक्षात्कार और देवदर्शन का सुयोग प्राप्त हुआ । इस आत्मसाक्षात्कार ने इन्हें पूरी तरह से बदल दिया । 

इसके बाद नरेंद्र जब तक रामकृष्ण परमहंस जिये, उनकी सेवा सुश्रुषा में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया । जब रामकृष्ण देव का देहावसान हुआ तो उसके पश्चात इन्होंने संपूर्ण भारत भू भाग की यात्रा की । अपनी इस यात्रा के दौरान अयोध्या, काशी ,वृंदावन सहित अन्य स्थानों का भ्रमण करते हुए स्वामी विवेकानंद ने भारत की गरीबी और जातिगत भेदभाव का दुखद अनुभव किया । 1892 में कन्याकुमारी में तीन दिनों तक समाधिस्थ रहे । 

शिकागो विश्व धर्मसंसद

स्वामी विवेकानंद ने अनुभव किया कि जब तक पश्चिम का भारत के प्रति विचार नहीं बदलेगा तब तक भारत भूमि की यथास्थिति में आमूलचूल परिवर्तन नहीं आएगा । भारत स्वतंत्र नहीं होगा । इसी कारण भारत में सामाजिक चेतना के जागरण को और अधिक ज़ोर देने के लिए उन्होने शिकागो में आयोजित होने वाले विश्व धर्म संसद में भाग लेने का निश्चय किया ।

अमेरिका में भाषण देने से पहले वहाँ की समृद्धि और भारत की गरीबी को देख कर बहुत रोये थे , बहुत दुखी हुए थे स्वामी विवेकानंद । वहाँ के आयोजकों द्वारा उपलब्ध करवाए गए सिर्फ दो मिनट की समयावधि में स्वामी विवेकानंद ने भारतीय ज्ञान परंपरा और वेदान्त दर्शन के मौलिक ज्ञान से भरे अपने उदबोधन में वहाँ उपस्थित जनसमूह को ऐसा आकृष्ट किया कि लोग उनके दीवाने हो गए । स्वामी जी अगले तीन साल तक पश्चिम में ही हिन्दू संस्कृति और धर्म का प्रचार प्रसार करते रहे ।  

अमेरिका में वैदिक शिक्षा का प्रचार

भारतीय वेदान्त ज्ञान परंपरा के प्रसार के लिए उन्होनें अपने पश्चिमी देशों के प्रवास के दौरान बहुत कार्य किया । 1894 में अमेरिका के न्यूयार्क शहर में वेदान्त सोसायटी की स्थापना की । उसी यात्रा में उनकी भेंट शिष्य सिस्टर निवेदिता और मैक्स मूलर से भी हुई। यात्रा में स्वामी जी इंग्लैंड और जर्मनी भी गए ।

इंग्लैंड और जर्मनी की यात्रा

इंग्लैंड में उनकी भेंट मारग्रेट नोबल से हई जो बाद में चल कर सिस्टर निवेदिता कहलाईं । जर्मनी में उनकी मुलाक़ात मैक्स मूलर से हुई जिसमें मूलर साहब ने रामकृष्ण परमहंस पर पेपर लिखने की बात की । 

सिस्टर निवेदिता ने स्वामी जी के रहते और उनके अवसान के पश्चात भी भारतीय समाज के पुनर्जागरण के लिए बहुत काम किया । भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी उनका और उनके कार्यों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है । स्वामी विवेकानंद 15 जनवरी 1897 को वापिस श्रीलंका आए । तब तक स्वामी जी की कीर्ति काफी फैल चुकी थी । श्रीलंका में लोगों ने उनका भव्य और दिव्य स्वागत किया । स्वामी जी फिर रामेश्वरम होते हुए कोलकाता पहुंचे । 

रामकृष्ण मिशन और बेलूर मठ की स्थापना

भारत में समग्र सामाजिक क्रांति का सूत्रपात करने के लिए उन्होंने 1 मई 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । जिसका उद्देश्य उन्होने उत्कृष्ट स्कूल ,कॉलेज एवं अस्पताल बनाने के साथ-साथ स्वच्छता के प्रति भारत में सामाजिक जागरूकता फैलाने को निर्धारित किया । 

1898 में बेलुर मठ की स्थापना की । तत्पश्चात स्वामी जी एक बार फिर से अमेरिका प्रवास के लिए 1899 में निकल पड़े । अपनी इस यात्रा के दरम्यान उन्होने सेंफ्रांसिस्को में शांति आश्रम और न्यूयार्क में वेदान्त सोसाइटी की स्थापना की । पुनः 1900 में भारत लौटे तत्पश्चात बोधगया की यात्रा की । 

स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु

अपनी कठिन दिनचर्या और अथक परिश्रम के कारण स्वामी विवेकानंद थोड़े बीमार भी रहने लगे थे । उन्हें अस्थमा और डायबटीज़ ने ग्रसित कर लिया था । परिणामस्वरूप 4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होने ध्यान करते हुए अपना शरीर त्याग कर दिया । जिसकी भविष्यवाणी उन्होनें पहले भी कई बार की थी कि वो 40 वर्ष से अधिक नहीं जिएंगे ।  

स्वामी जी रात्रि के लगभग 10 बजे अनंत समाधि को प्राप्त हुए । उस समय बारिश हो रही थी मानो आसमान भी ऐसी महान आत्मा के दुनिया से विदा होने का दुख प्रकट करते हुए आँसू बहा रहा हो । स्वामी विवेकानंद भले ही भारत भूमि और इस संसार को छोड़ कर चले गए हों लेकिन उनके विचार युगों-युगों तक पूरी मानवता का पथ आलोकित करती रहेगी । 

विवेकानंद की शिक्षा और विचार :

आगे हम स्वामी विवेकानंद की जीवनी (swami vivekananda full biography in hindi) में उनके कुछ प्रमुख शिक्षाओं और विचारों पर चर्चा कर रहें हैं । स्वामी विवेकानंद की सभी शिक्षाओं के मूल में मानव-मुक्ति और मानवीय जीवन की गरिमा की पहचान और स्वीकार्यता ही रही है । उन्होनें डर को सबसे खराब कहा है – उनका कहना था जो होना है वो हो के रहेगा फिर डरना कैसा

स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएँ सभी मानव को निर्भीक होकर जीने और लक्ष्य प्राप्ति को सुनिश्चित करने हेतु कर्तव्यनिष्ठ और एकाग्र होकर पुरुषार्थ करने की प्रेरणा देती हैं । उनकी शिक्षाओं में परोपकार और सेवा का महत्वपूर्ण स्थान है । उन्होने दुखी मानवता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताया | सामाजिक भेदभाव को गलत बताते हुए उस पर कुठराघात किया । 

स्वामी विवेकानंद अपनी शिक्षाओं में वेदान्त की शिक्षा – वसुधैव कुटुंबकम और सर्वे भवनतु सुखिनाह सर्वे संतु निरमाया “ की आत्मा निवास करती है । स्वामी जी दुनिया को एक गूढ संदेश दे गए कि इस संसार में सुखी और आनंदित जीवन जीने का एकमात्र उपाय यही है- कि हम दूसरे को वो जैसे हैं उन्हें उनके उसी रूप में स्वीकार करें । उन्हें अपने कुटुंब का हिस्सा और परिवार का अंग माने । दूसरे के अस्तित्व, आस्था और विचारों का सम्मान करके ही हम इस धरती पर जीवन की गति को अविरल और निर्मल बना सकते हैं । 

सबको साथ लेकर चलने की विचारधारा के कारण ही स्वामी विवेकानंद को लोगों ने सहर्ष अपनाया । दिनानुदिन उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ती गयी । पश्चिमी देशों के लोगों ने भी बड़ी संख्या में उनका शिष्यत्व ग्रहण किया । इस तरह भारतीय वैदिक शिक्षाओं का प्रभाव और प्रसार दोनों बढ़ा । विश्व का भारत के प्रति दृष्टिकोण और नज़रिया भी परिवर्तित हुआ । 

भारत में सामाजिक परिवर्तन का प्रयास

भारत में सामाजिक क्रांति को गति देने के लिए उन्होने हिमालय में अद्वैत आश्रम , और रामकृष्ण मिशन जैसे संस्थाओं का निर्माण करवाया । स्वयं भी सेवा के अनेकों प्रशंसनीय कार्य किए । ऐसे परम श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद जिनकी जन्म जयंती पर संपूर्ण भारत वर्ष युवा दिवस मनाता है को हमारा कोटि कोटि नमन है !

स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की गूढ आध्यात्मिक शिक्षा की ख्याति विश्व के विभिन्न कोणों में पहुँचाई । वे वेदान्त के मर्मज्ञ थे द्वैत और अद्वैत वेदान्त दोनों के ।  

मूर्ति पूजा से समाधि, सत चित आनंद की व्याख्या और भगवान शिव के डमरू की कॉस्मिक एनर्जी से तुलना इन सबकी संभवतया पहली बार व्याख्या स्वामी विवेकानंद ने ही की थी । प्रख्यात वैज्ञानिक निकोला टेसला ने फ्री एनर्जी के विषय में जानने के लिए स्वामी विवेकानंद से संवाद किया था ।

रामकृष्ण देव से जुड़े कुछ प्रसंग

बाल्यावस्था से ही स्वामी विवेकानंद को पशुओं से बहुत प्रेम था । उन्होने अपने घर को बहुत सारे पशु पक्षियों का आश्रयस्थल बना रखा था । स्वामी विवेकानंद को बाल्यावस्था से ही कुछ विचित्र प्रकार के सपने आते थे , इन सपनों में इन्हें अपने भविष्य के बारे में खयाल आते थे । 

रामकृष्ण परम हंस को एक बार सबसे पहले समाधिस्थ अवस्था में भगवान विष्णु ने कहा था कि मैं अवतार ले चुका हूँ मुझे ढूँढोगे नहीं ! विवेकानंद को पहली बार देख कर रामकृष्ण को घटना याद आ गयी – इस बच्चे का मुख मंडल उसी बालक के समान लग रहा है जिसे मैंने अपने ध्यान की अवस्था में देखा था ।

रामकृष्ण परम हंस को विवेकानंद से अत्यंत लगाव था परिणाम स्वरूप वो जब भी विवेकानंद को देखते समाधिस्थ हो जाते । स्वामी विवेकानंद ने उनका शिष्यत्व ग्रहण करने से पहले उनसे कई सारे शंका समाधान और वाद-विवाद किया । अंत में संतुष्ट हो जाने तथा साक्षात माँ काली के दर्शनोपरांत ही उन्होने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु माना । 

स्वामी विवेकानंद तथा उनके परिवार का जीवन पिता के देहावसान के बाद अत्यंत कठिन परिस्थितियों में गुजरा । उनका परिवार चूंकि परोपकारी परिवार था इसलिए अपने लिए बहुत कुछ बचा के नहीं रखा था । इसलिए जब परिवार पर असमय मुश्किल आई तो दाने-दाने को मोहताज हो गया था उनका परिवार ! सभी सगे-संबंधियों ने भी उन्हें तिरस्कृत कर दिया , मुश्किल समय पर किसी ने सहारा बन कर हाथ थामने की कोशिश नहीं की। 

आर्थिक तंगी के कारण पूरे परिवार के जीवन-मरण के प्रश्न पर स्वामी विवेकानंद ने स्वयं को धर्म अध्यात्म से दूर कर पारिवारिक कर्तव्यों के निर्वहन में समर्पित कर दिया लेकिन थोड़े दिनों बाद वापस लौट आए अपने मन की दुनियाँ में । गरीबी में जीवन जीने को लेकर उनका उनके गुरु से कई बार विवाद हुआ लेकिन अंत में जब वो गुरु के तर्क और अपने आत्मसाक्षात्कार से सहमत हुए तो फिर कभी धन की ओर मुड़ कर नहीं देखा । 

रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें ध्यान में माँ काली से वरदान मांगने को कहा – उन्होने धन को छोड़ कर सब कुछ मांगा । पुनः मांगने गए फिर वही हुआ सब कुछ मांगा माँ काली से सिवाए धन के । इस तरह इनका मोह भंग हुआ धन से और अपने जन्म और जीवन का उद्देश्य प्राप्त हुआ । जिसके बाद इनहोने अपने जीवन को जगत कल्याण और मानव सेवा में पूर्णतः समर्पित कर दिया । एक तरह से हम कह सकते हैं कि बालक नरेंद्र के विवेकानंद बनने में उनकी गरीबी और जीवन की कठिनाइयों का भी एक अहम स्थान था ।

स्वामी विवेकनद के प्रमुख वचन 

  • उठो जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको मत ।
  • स्वयं को जाने बिना ईश्वर को नहीं जाना जा सकता । 
  • अच्छे कर्म तो अच्छा गुरु मिलता है जीवन में । 

मित्र ! स्वामी विवेकानंद ने पूरी दुनिया को बदलने के लिए 1000 समर्पित लोगों की आवश्यकता बताई थी । वस्तुतः स्वामी विवेकानंद जैसे 1000 नहीं 100 लोग भी इस पूरी दुनिया को बदलने की क्षमता रखते हैं । अपने अल्प जीवनकाल में ही उन्होनें इस देश और संपूर्ण मानवता के लिए वो सबकुछ कर दिया जिससे आने वाली कई सदियों के लिए उनका नाम अमर हो गया । 

***

हमें पूरा विश्वास है कि हमारा यह लेख-स्वामी विवेकानंद की जीवनी (swami vivekananda full biography in hindi) आपको पसंद आया होगा । स्वामी जी के प्रति आपके विचार सहित इस पोस्ट की त्रुटियों पर आपकी सभी टिप्पणियों का नीचे कमेन्ट बॉक्स में स्वागत हैलिख कर जरूर भेजें ! इस लेख को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल्स पर शेयर भी करे क्योंकि Sharing is Caring !

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संदर्भ

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