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ravindra jain-रामायण को लयबद्ध करने वाला अद्भुत संगीतकार.

Written by-Khushboo

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Ravindra Jain-The Legendary Indian musician and his music journey जानिए अद्भुत संगीतकार रवीन्द्र जैन एवं उनकी संगीत यात्रा को.

दोस्तों नमस्कार !

आज आज का यह लेख मैं  समर्पित करना चाहता हूं भारतीय संगीत जगत  के उस प्रकाशमान सितारे को. जिसकी चमक जब तक भारतीय संगीत और भारतीय संस्कृति जीवित रहेगी तब तक सदा सर्वदा एक ध्रुव तारे की भांति संगीत प्रेमियों को संगीत के साधकों को मार्ग दिखाता रहेगा और संगीत प्रेमियों के ह्रदय वीणा के तारों को झंकृत करता रहेगा. 

जी हां दोस्तों आपने सही अनुमान लगाया मैं आज बात करने जा रहा हूं रवीन्द्र जैन के बारे में… 

अभी  इस लॉक डाउन(lock down due to coronavirus)  में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार ने एक बार फिर से रामायण जैसी प्रसिद्ध टीवी सीरियल का प्रसारण दूरदर्शन पर करने का आदेश दिया है. तो आपके कानों में मधुर स्वर संगीत की लहरी जरूर एक मोहक आकर्षण पैदा करती होगी. 

जहां राम भक्त ले चला रे राम की निशानी, ओ मैया मोरी, हे राम अयोध्या छोड़ के तुम मत जाओ, सरीखे और भी बहुत सारे भावपूर्ण गीत इस धारावाहिक  की वजह से कालजयी हो गए और ऐसी रचनाओं के साथ ही अमर हो गए संगीतकार रवीन्द्र जैन…!


रवीन्द्र जैन(ravindra jain) का बचपन

रवींद्र जैन का जन्म 28 फरवरी, 1944 को वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के अलीगढ़ मंडल के हाथरस जिले में रामपुर नामक गांव में हुआ था. पिता इंद्रमणि जैन आयुर्वेद एवं संस्कृत के विद्वान थे. सात भाई-बहनों में रवींद्र जैन अपने माता पिता की तीसरी संतान थे . उन्होंने अलीगढ़ विश्वविद्यालय के ब्लाइंड स्कूल से पढ़ाई की. रवीन्द्र जैन की उम्र महज 4 वर्ष की थी तभी उनके पिता ने उनके लिए घर पर ही संगीत शिक्षा की व्यवस्था कर दी थी.अपनी पढ़ाई और संगीत प्रशिक्षण संपन्न करने के पश्चात रवींद्र जैन एक संगीत शिक्षक के रूप एवं रवीन्द्र संगीत के और गहन अध्ययन हेतु कोलकाता चले गए.

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रवीन्द्र जैन ravindra jain का फ़िल्मी करियर

रवींद्र जैन के कोलकाता प्रवास के दौरान उनके गुरु राधेश्याम झुनझुनवाला एक फिल्म बनाना चाहते थे. जिसमें संगीत देने के लिए वह रवीन्द्र जैन को अपने साथ मुंबई ले आए. फिल्म का नाम था लोरी… रवीन्द्र जैन ने गानों को भी रिकॉर्ड करवाया.इस फिल्म में रवींद्र जैन ने मोहम्मद रफी से एक लता मंगेशकर से चार और आशा भोंसले से एक गीत रिकॉर्ड करवाया था लेकिन यह फिल्म रिलीज नहीं हो पायी.

रवींद्र जैन के संगीत निर्देशन में रिलीज हुई पहली फिल्म थी ‘कांच और हीरा’ (1972). इस फिल्म में रवींद्र जैन ने फिर रफी साहब से एक गीत गवाया जिसके बोल थे ‘नजर आती नहीं मंजिल ’. फिल्म कांच और हीरा तो बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली लेकिन एक संगीतकार के रूप में रवींद्र जैन की गाड़ी यहां से चल पड़ी… 

वर्ष 1973 में आई फिल्म सौदागर के गीत ‘ तेरा मेरा साथ रहे ‘ तथा ‘सजना है मुझे सजना के लिए ‘ सरीखे गीतों ने रवीन्द्र जैन की तकदीर ही लिख दी, हिंदी फिल्म डिस्ट्री में…! उसके बाद सन 1974 में किशोर कुमार की आवाज में उनका एक गीत घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं बहुत प्रसिद्ध हुआ. इसके बाद तो चितचोर और अंखियों के झरोखे से फिल्म के लगभग सभी गानों ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए. लोग उनकी मधुर संगीत स्वर लहरियों पर झूम उठे. वह अपने साथ ही कई नयी आवाज़ों को को भी लेकर आए जैसे यशुदास सुरेश वाडेकर ,हेमलता आदि …हेमलता उस दौर में लता मंगेशकर के विकल्प के तौर पर भी उभरीं. 

फिर याद करिए उस बेहद कर्णप्रिय  गीत दो पंछी दो तिनके देखो लेकर चले हैं कहां साल  1975.

रवीन्द्र जैन और हिंदी धारावाहिक

बाद के वर्षों में रवीन्द्र जैन ने विभिन्न धारावाहिकों में संगीत देने का काम किया. 80 के दशक में उन्होंने छोटे पर्दे की धारावाहिकों के लिए संगीत निर्देशन का काम किया, और उनमें खुद गीत गाए भी. टीवी सीरियल में उनका आरंभ ही अमर हो गया जब उनकी स्वर लहरियों से रामायण और जीवंत हो उठी.  80 के दशक में जो युवा हो रहे थे या उसके बाद के वर्षों में जिन्होंने जन्म लिया हम में से सभी लोग रेडियो अथवा टेलीविजन पर ‘ मंगल भवन अमंगल हारी ‘सुनकर ही बड़े हुए हैं . हालाकिं रामानंद सागर द्वारा निर्देशित रामायण के सभी पात्रों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. इस धारावाहिक ने दर्शकों की संख्या(viewership)के मामले में अपने नाम से लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में कीर्तिमान भी स्थापित किया . 

रवीन्द्र जैन(Ravindra Jain) के अंतिम दिन

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में रवीन्द्र जैन लिखने में ज्यादा व्यस्त रहें. उन्होंने रवीन्द्र रामायण लिखी. एक ग़ज़ल संग्रह ‘दिल की नजर‘ के नाम से प्रकाशित किया. अपनी आत्मकथा सुनहरे पल  के नाम से लिखी. इसके अलावा कुरान का अरबी से सहज उर्दू भाषा में अनुवाद किया, श्रीमद्भगवद्गीता का भी उन्होंने सरल हिंदी पद्यानुवाद किया. रवीन्द्र जैन भागवत, सामवेद एवं उपनिषदों का सरल हिंदी में अनुवाद कर रहे थे; लेकिन इसी बीच 9 अक्टूबर 2015 को इस संसार से विदा हो गाए.

कबीर दास जी ने क्या खूब कहा है :- 

"आये है सो  जायेगा, राजा रंक फकीर 
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बांधे जंजीर "

उदय के साथ अस्त निर्धारित है और जीवन के साथ मृत्यु भी तय है. लेकिन जीना उसी का सफल माना जाता है जिसने इस धरती को थोड़ा और सुंदर बनाने में और लोगों के चेहरों पर मुस्कुराहट लाने में अपना जीवन खपा डाला हो… मेरी नजर में रवीन्द्र जैन ऐसे ही महामानवों में से एक हैं. 


कुछ अपनी बात:-

यहां मैं  विद्यार्थियों एवं सफलता के आकांक्षियों के लिए भी एक विशेष बात कहना चाहता हूं कि अगर सच में कुछ कुछ करने का इरादा हो. कुछ प्राप्ति का संकल्प हो, त्याग करने का हौसला हो और कष्ट उठाने का माद्दा हो तो परिस्थितिजन्य अथवा समय की प्रतिकूलता से उत्पन्न बाधाएं किसी भी प्रकार से हमें हमारे लक्ष्य  से वंचित नहीं कर सकती.

रवीन्द्र जैन(ravindra jain) तथा बीथोवन जैसे लोग इसके मूर्त उदाहरण हैं. शारीरिक विकलता किसी को कुछ अच्छा करने से बहुत हद तक रोक नहीं सकती और प्रकृति कभी भी जीव के जीवन जीने के सभी रास्ते बंद नहीं करती..! हाँ ये जरूर है कि परमात्मा अथवा प्रकृति जिसे भी आप मानते हैं वह कामयाबी देने से पहले इंसान को एक बार परखता जांचता जरूर है कि अमूल्य उपहार को प्राप्त करने के योग्य वह व्यक्ति है भी या नहीं…

अपने बुद्धि और विचार से शुद्ध होकर, डटे’ रहिये… अपने जीवन के संघर्षों में. कामयाबी आपके दर पर दस्तक जरूर देगी. आपके जीवन में सब कुछ शुभ हो इन्हीं शुभकामनाओं के साथ फिर मिलेंगे…

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