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गुरु पर संस्कृत श्लोक एवं उनके अर्थ

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इस लेख Sanskrit Shlok On Guru में पढिए गुरु पर कहे गए कुछ प्रमुख संस्कृत श्लोक । हमारी संस्कृति में गुरु को ईश्वर के बाद या फिर कहें तो उनके समकक्ष ही गुरु को माना गया है । किसी भी व्यक्ति को अज्ञान की सीमाओं से बाहर निकाल कर विविध प्रकार के अज्ञानता रुपी अंधकार से मुक्त कर उसके जीवन में ज्ञान का प्रकाश बिखेरने वाले व्यक्तित्व को हम गुरु कहतें हैं ।
गुरु ही है जो सांसारिक तूफानों से पार पाकर सफल जीवन जीने का मार्ग दिखाता है । जो हमें अपने व्यक्तित्व की असीम संभावनाओं के द्वार तक पहुंचाता है । गुरु वह है जो एक साधारण व्यक्ति को एक विराट व्यक्तित्व में रूपांतरित करने का माद्दा रखता है ।
मनुष्य जीवन की असीमता को रेखांकित करते हुए वृहदारण्यक उपनिषद में कहा गया है – “ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ और इस पूर्णता का एहसास बिना गुरु के संभव नहीं है । दोस्त … गुरु पर जितना भी कहा जाए वह कम ही होगा …।

भारतीय परंपरा में गुरु का निश्चित ही विशिष्ट स्थान है यही कारण है कि आज के घोर भौतिकवादी युग में भी भारत में गुरु-शिष्य परंपरा कुछ अर्थों में तो कायम है ही । भारतीय वांग्मय में विभिन्न मनीषियों ने जीवन में गुरु की महता पर बहुत कुछ कहा है । उनमें से कुछ गुरु पर संस्कृत श्लोक आपके लिए –

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श्लोक – 1.

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

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भावार्थ:- गुरु ही ब्रह्मा (सृष्टि के निर्माता) है, गुरु ही विष्णु (सृष्टि के कर्ता) है, गुरु ही महेश (सृष्टि के नाशक) हैं और गुरु ही साक्षात् परमब्रह्म है, उन गुरू को मैं प्रणाम करता हूं। इस श्लोक में जीवन में गुरु के महत्व को रेखांकित करते हुए उनकी कृपा को अपने अस्तित्व के लिए अपरिहार्य माना गया है ।

श्लोक – 2.

गुरौ ना प्राप्यते यत्तन्नान्यत्रापि हि लभ्यते।
गुरु प्रसादात सर्व प्रप्नोत्येव न संशयः

भावार्थ: गुरु की कृपा से व्यक्ति कुछ भी यानि सबकुछ प्राप्त कर सकता है, इसमें कोई संशय नहीं है। लेकिन गुरु की ओर से जो प्राप्त नहीं होता है वह कहीं भी प्राप्त नहीं हो सकता है।

श्लोक – 3.

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भावार्थ: जो इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड के सभी चराचर में व्याप्त है उस परम तत्व का साक्षात्कार करने के योग्य बनाने वाले गुरु की मैं वंदना करता हूँ ।

श्लोक – 4.

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

भावार्थ: मैं ऐसे गुरु को प्रणाम करता हूं जिसने अज्ञान के अंधकार में बंद हुई आंखों को ज्ञान के शलाकाओं से खोल दिया।जैसा कि ऊपर हमने लिखा है अज्ञान की सीमाओं को ज्ञान के प्रकाश से तोड़ने वाले को हम गुरु कहते हैं । ऐसे ही परम ज्ञानी गुरु को इस श्लोक के द्वारा नमस्कार किया जा रहा है ।

श्लोक – 5.

नमोस्तु गुरुवे तस्मै, इष्टदेव स्वरूपिणे।
यस्य वाग्मृतम् हन्ति,विषं संसार संज्ञकम् ॥

भावार्थ: जिसकी अमृतमय वाणी अज्ञानता रूपी सांसारिक विष को नष्ट कर देती है, उस महान ईश्वर रूपी गुरुवर को मेरा सादर प्रणाम है।

इस श्लोक में गुरु की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है कि इस संसार में गुरु ही व्यक्तित्व है जो हमें सांसारिक जीवन में कैसे आगे बढ़ना है? कैसे जीना है? इसको सिखा कर हमारे जीवन को सफल बनाने का प्रयास करता है ।

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श्लोक – 6.

किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च।
दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्॥

भावार्थ: इस संस्कृत श्लोक में पुनः एक बार गुरु की महता प्रतिपादित किया गया है । (किमत्र बहुनोक्तेन)अधिक कहने से भी क्या होगा? करोड़ों शास्त्रों के साथ भी क्या होगा? गुरु के बिना मन की सच्ची शांति (चित्त विश्रान्तिः)मिलना अत्यंत कठिन है दुर्लभ है ।

श्लोक 7

गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते।
अन्धकार निरोधत्वात् गुरुरित्यभिधीयते॥

भावार्थ: ‘गु’ का अर्थ है अंधकार, और ‘रु’ का अर्थ तेज से लिया जाता है। तो इस प्रकार गुरु वह होता है जो अंधकार से निरोध करके तेज यानि प्रकाश की ओर आगे बढ़ाता है।

श्लोक – 8

प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा।
शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः॥

भावार्थ: इस श्लोक में दर्शाया गया है कि आखिर गुरु किसे कहते हैं । इस श्लोक के अनुसार, प्रेरणा देने वाला, सूचना देने वाला, सच बताने वाला, रास्ता दिखाने वाला, शिक्षा देने वाला और बोध कराने वाला, ये सभी गुरु के ही समान हैं ।

श्लोक – 9.

देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन:।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः

भावार्थ: इस श्लोक में जीवन में गुरु के महत्व को रेखांकित किया गया है । इसमें कहा गया है कि यदि देव/भाग्य रूठ जाए तो गुरु रक्षा कर लेता है परंतु यदि गुरू रूठ जाये तो कोई रक्षक नहीं होता है। इसलिए बिना किसी संदेह के गुरू ही रक्षक है, गुरू ही शिक्षक है।

श्लोक 10.

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव

भावार्थ: हे गुरुदेव आप ही मेरे माता और पिता के समान है, आप ही मेरे भाई और मित्र हैं, आप ही मेरे ज्ञान और धन है। प्रभु आप ही सब कुछ हैं।

श्लोक 11.

धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः।
तत्त्वेभ्यः सर्वशास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते॥

भावार्थ: इस श्लोक (Sanskrit Shlok On Guru) में बताया गया है कि जो धर्म को भलीभांति जानते हैं और उसी धर्म के अनुसार आचरण भी करते हैं, धर्मपरायण होते हैं तथा समस्त शास्त्रों में तत्वों का को ग्रहण कर आदेश करते हैं वहीं गुरु कहलाते हैं ।

श्लोक – 12

नीचं शय्यासनं चास्य सर्वदा गुरुसंनिधौ
गुरोस्तु चक्षुर्विषये न यथेष्टासनो भवेत्॥

भावार्थ: इस श्लोक में गुरु के पद की गरिमा का सम्मान करते हुए कहा गया है कि गुरु जहां भी बैठे, आपको उससे नीचे ही आसन लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त जब गुरु आते हुए दिखाई दे तो अपनी इच्छा से नहीं बैठना चाहिए।

श्लोक 13

निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते।
गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु र्निगद्यते॥

भावार्थ: इस श्लोक में गुरु का अर्थ बताते हुए कहा जा रहा है कि जो दूसरों को प्रमाद से रोकता हो तथा स्वयं निष्पाप मार्ग पर चलता हो , जो हित और कल्याण की कामना रखने वाले को तत्व का बोध कराता हो वही गुरु कहलाता है ।

श्लोक – 14

शरीरं चैव वाचं च बुद्धिन्द्रिय मनांसि च।
नियम्य प्राञ्जलिः तिष्ठेत् वीक्षमाणो गुरोर्मुखम्॥

भावार्थ: इस श्लोक में गुरु की महिमा का बखान करते हुए बताया गया है कि गुरु के सम्मुख शरीर, वाणी, बुद्धि, इंद्रिय और मन को संयम में रखकर, हाथ जोड़कर देखना चाहिए।

श्लोक 15.

अनेकजन्मसंप्राप्त कर्मबन्धविदाहिने ।
आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥

भावार्थ: इस श्लोक के माध्यम से उस महान गुरु को नमस्कार किया जा रहा है जो असंख्य जन्मों के कर्मों से बने बंधनों से स्वयं को मुक्त करने उन कर्म बंधनों को स्वयं जलाने का आत्मज्ञान दान दे रहा है।

गुरु की महिमा महान है । गुरु ही एक साधारण से व्यक्ति को एक विशाल व्यक्तित्व में रूपांतरित करता है । हमें उलझनों से पार होने का गुर सिखाता है तो सफल और गरिमामय जीवन जीने कि राह भी दिखाता है । अपने गुरुओं का सम्मान जरूर करिए ।

इस लेख Sanskrit Shlok On Guru पर अपने विचार अथवा सुझाव वा अन्य संस्कृत श्लोक जिसे आप इस आर्टिकल में देखना चाहते हैं हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर लिख लिख भेजिए । और यदि आप एक छात्र हैं तो अपने शिक्षक का सम्मान जरूर करिए और यदि एक शिक्षक हैं तो अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए अपना सकारात्मक योगदान दीजिए।

Reference :-

  • Sanskritashlokas website
  • and Other Sources Internet
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आर के चौधरी
आर के चौधरीhttps://vicharkranti.com/category/motivation/
लिखने का शौक है और पढ़ने का जूनून । जिंदगी की भागमभाग में किताबों से अपनी यारी है ... जब भी कुछ अच्छा पढ़ता हूँ या सुनता हूँ लगता है किसी और से बाँट लूँ । फुरसत के लम्हों में बस इसी मोह के मातहत मेरे लिए कलम उठाना लाचारी है । मेरी लेखनी आपकी सफलता का संबल बने, तो फिर - इससे अधिक अपनी जिंदगी में मुझे क्या चाहिए !!!

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