प्रकृति पर संस्कृत श्लोक एवं उनके अर्थ

Written by-आर के चौधरी

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हमारी संस्कृति में प्रकृति को जीवन आधार माना गया है । प्रकृति पर श्लोक sanskrit shlokas on nature के कई उल्लेख मिलते हैं । प्रकृति का सौंदर्य अद्भुत आह्लादकारी है। इस प्रकृति में नीली नदियां, खुला आसमान, पथरीले पहाड़, ज्वाला से धधकता ज्वालामुखी, ऊंचे-ऊंचे वनों के वृक्ष, समुद्र के जीव जंतु इत्यादि शामिल होते हैं। जो इसकी रूपरेखा को और भी सुंदर कर देते हैं। आगे पढिए संस्कृत भाषा में प्रकृति पर कहे गए श्लोकों को अर्थ सहित

#1

मधु॒ वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः।
माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥
(मधु वाताः ऋत-अयते, मधुं क्षरन्ति सिन्धवः, माध्वीः नः सन्तु ओषधीः ।)

अर्थात- सतकर्म में लगे हुए को वायुदेव मधु प्रदान करते हैं  , तरंगमय जलप्रवाह युक्त नदियों और सिंधुओ में मधु चुता है इस संसार में उपलब्ध विविध जड़ी-बूटियाँ व औषधि हमारे लिए मधुमय हों । 

इन वैदिक ऋचाओं के माध्यम से सत्कर्म में लगे हुए व्यक्ति के लिए प्रकृति के विभिन्न तत्वों जैसे वायु जल और औषधियों से अपने लिए मंगल कामना की गई है। 

इस श्लोक में प्रकृति को मनुष्य के लिए हितकारी होने का उद्घोष है एवं प्रकृति के विभिन्न तत्वों से यज्ञादि शुभ कर्म में तल्लीन रहने वाले मनुष्यों के हितमें मंगलकामना की गई है ।

#2

मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवं रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥7

(मधु नक्तम् उत उषसः, मधु-मत् पार्थिवम् रजः, मधु द्यौः अस्तु नः पिता ।)

रात्रि हमारे लिए  मधुप्रदाता हो और उषाकाल भी हमारे लिए मधुमय अर्थात मंगलकारी हों । यह पृथ्वी और द्यु अर्थात आकाश भी हमारे लिए मधुप्रद हों। इस श्लोक के माध्यम से सुखकारी रात्रि और दिन का आरंभ आनंद दायक हो ऐसी प्रार्थना की गई है । सुंदर आनंदप्रद विश्व के लिए पृथ्वी और आकाश के मधुप्रद होने की प्रार्थना की गई है । 

#3

पुत्रपुष्यफलच्छाया मूलवल्कलदारुभिः।
गन्धनिर्यासभस्मास्थितौस्मैः कामान् वितन्वते

भावार्थ: इस संस्कृत श्लोक में प्रकृति के अनमोल उपहार पेड़ों और वनस्पतियों के महत्व को रेखांकित करते बताया गया है कि हमें पत्र, फूल, फल, छाया, जड़, बल्कल ,ईंधन के लिए लकड़ी, सुगंध, राख, गुठली और अंकुर प्रदान करके हमारी कामनाओं को पूर्ण करती हैं।

#4

निम्नोन्नतं वक्ष्यति को जलानाम् विचित्रभावं मृगपक्षिणां च।
माधुर्यमिक्षौ कटुतां च निम्बे स्वभावतः सर्वमिदं हि सिद्धम्।।

इस श्लोक के माध्यम से प्रकृति के रहस्यों की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है । बताने कि कोशिश की जा रही है – बारिश के रूप में पानी को नीचे और (बाष्प के रूप में) उपर लेकर कौन जाता है ? विभिन्न पशु पक्षियों में जीव जंतुओं में उनके गुण और स्वभाव में भिन्नता व विचित्रता का कारण कौन है ? नीम में कड़वापन और गन्ने में मधुरता कहाँ से आती है ? और अंत में ” स्वभावतः सर्वमिदं हि सिद्धम् ” से यह बताया गया है कि इन सभी में विचित्रता और विविधता का कारण इनका स्वभाव है जिसका निर्धारण प्रकृति द्वारा होता है ।

#5

अहो एषां वरं जन्म सर्व प्राण्युपजीवनम्।
धन्या महीरूहा येभ्यो निराशां यान्ति नार्थिन:।।

भावार्थ:– इस श्लोक का अर्थ है कि सब प्राणियों पर उपकार करने वाले इन पेड़ों का जन्म सर्वोत्तम है । ये वृक्ष धन्य हैं जिनके पास से कोई भी याचक कभी भी निराश नहीं लौटता है ।

#6

परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः परोपकाराय वहन्ति नद्यः।
परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थ मिदं शरीरम्।।

भावार्थ:- इस श्लोक के माध्यम से परोपकार की महिमा बताई जा रही है। वृक्ष परोपकार के लिए फल प्रदान करते हैं , परोपकार के हित नदियां बहती हैं । गौवें/ गाएं परोपकार्थ ही दूध देती हैं और इन प्रतिमानों की उपमा देते हुए कहा गया है कि परोपकार प्रकृति का नैसर्गिक तत्व है मूल भाव है अतः हमें अपने इस शरीर से भी परोपकार करना चाहिए ।

#7

छायामन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयमातपे।
फलान्यपि परार्थाय वृक्षाः सत्पुषा ईव।।

भावार्थ:- स्वयं ताप में रहकर दूसरों को छाया देता है वृक्ष । अपना फल भी दूसरों के समर्पित करने वाले ये वृक्ष वास्तव में किसी संत के समान ही होते हैं जिनका मूल उदेश्य जीवन भर दूसरों का कल्याण ही होता है । दूसरे अर्थों में कहें तो वृक्ष के समान अपना सर्वस्व देकर जनकल्याण करने वाले सत्पुरुष ही संत हैं ।

#8

प्रकृत्यैव विभिद्यन्ते गुणा एकस्य वस्तुनः।
वृन्ताकः श्लेष्मदः कस्मै कस्मैचित् वातरोग कृत्।।

भावार्थ:- इस श्लोक का अर्थ है ने अपने एक ही वस्तु में भिन्न भिन्न गुण दिए हैं जैसे बैंगन किसी एक व्यक्ति के लिए कफ का कारण बनता है , तो वहीं किसी अन्य व्यक्ति के लिए वायु रोग का कारण बन जाता है।

प्रकृति इस विश्व की प्रथम जननी कहलाती है। जो चराचर जगत के जीवो और प्राणियों को जीवंत रखने की शक्ति रखती है। कुछ शब्दों में प्रकृति का बखान करना मुश्किल साबित होता है।

परंतु इतना तो कहा ही जा सकता है कि हमें ज्ञान अनुराग सहित अन्य तत्वों से हमारा संभरण करने वाली यह प्रकृति ही इस संसार में जीवन शक्ति संचालन का केंद्र है अतः हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाते हुए जीवन जीना चाहिए ,तथा प्रकृति के अत्यधिक दोहन से स्वयं को और अपने समाज को रोकने का प्रयास करना चाहिए ।

हमारे द्वारा संकलित एवं अनुवादित इस आर्टिकल प्रकृति पर संस्कृत श्लोक sanskrit shlokas on nature पर अपने विचार नीचे कमेन्ट बॉक्स में जरूर लिखिए ।

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