हिंदी कहानी:जैसी सोच वैसा फल | Hindi Story

Written by-Khushboo

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साथियों हम  जो कुछ भी इस दुनिया में देखते हैं वही यह दुनिया भी हममें देखती है । हमारी दृष्टि और हमारा नजरिया ही हमारी दुनिया का निर्माण करता है । वह कहावत है न यथा दृष्टि तथा सृष्टि .. कैसे ? समझते हैं इस प्रेरक हिंदी कहानी जैसी सोच वैसा फल के माध्यम से…

हिन्दी कहानी : जैसी सोच वैसा फल

एक बार किसी कारणवश एक किसान अपने गांव से दूसरे गांव में जाकर बस रहा था । वह इस बात को लेकर सशंकित और चिंतित था कि जिस गांव में वह बसने  जा रहा है, वह गाँव और वहाँ के लोग , उसके लिए कैसे रहेंगे ?

इसी उहापोह में वह एक साधु के पास गया । साधु इस नए गाँव के मंदिर पर एकांत साधना में रहता था । किसान ने उनसे पूछा – “ मैं इस गांव में आकर रहना चाह रहा हूं, क्या यह मेरे लिए अच्छा रहेगा ? यहां के लोग मेरे लिए अच्छे रहेंगे? 

साधु ने किसान के प्रश्न का तो उत्तर नहीं दिया लेकिन उल्टे उन्होंने किसान से एक प्रश्न पूछ लिया । साधु ने किसान से पूछा – ‘तुम जिस गांव से आ रहे हो वहां के लोग कैसे थे ? ‘

किसान ने बहुत ही झल्लाते  हुए उत्तर दिया- “ लालची, नीच, बेईमान । “  साधु महाराज ने उत्तर दिया – ‘यहां भी ऐसे ही लोग रहते हैं । ‘

कुछ दिनों बाद उसी गांव में रहने के लिए एक और आदमी आया । वह भी इस बात को जानने के लिए कि गांव में कैसे लोग रहते हैं … उसी साधु के पास गया ।

साधु ने वही पुराना प्रश्न उससे भी किया – “ इससे पहले तुम जहां रहते थे … वहां के लोग कैसे  थे ?  “  उस आदमी ने बड़ी ही सरलता और विनीत भाव से उत्तर दिया – “महाराज वहां के लोग बहुत अच्छे थे, मृदुभाषी थे, एक-दूसरे का सम्मान करते थे । एक दूसरे के कार्यों में हाथ बँटाते थे, मदद करते थे । “

उसका जवाब सुनकर, साधु ने उत्तर दिया यहां भी बिल्कुल ऐसे ही लोग रहते हैं तुम्हें आनंद  आ जाएगा ।

साधु महाराज के इस जवाब से आप भी चकित और हतप्रभ हो सकते हैं कि आखिर उन्होंने एक ही प्रश्न के लिए दो व्यक्तियों को दो अलग-अलग उत्तर कैसे दिए? लेकिन यही इस ब्रह्मांड का सत्य है कि.. हर प्रश्न का जवाब सीधा नहीं मिलता बल्कि प्रश्न का उत्तर कई बार प्रश्नकर्ता के स्थिति-परिस्थिति और परिवेश के अनुकूल मिलता है ।

साथियों हम जिंदगी में  जो कुछ दुनिया में देखते हैं कुछ अर्थों में हमारे स्वयं के मनोभूत विचारों का प्रतिबिंब ही है । हम जो विचार ब्रह्मांड में भेजते हैं हमें उसी का उत्तर मिलता है । जो हम इस दुनिया में देखते हैं वही यह दुनिया हममें भी देखती है । वह संस्कृत की एक सुंदर सी कहावत है वह कहावत है – ‘ न यथा दृष्टि तथा सृष्टि … ‘

यह ब्रह्मांड, यह प्रकृति हमें मनोनुकूल फल ही देता है । हमारे मन में उठ रहे गलत अथवा सही, सकारात्मक अथवा नकारात्मक जो भी विचार है उसी का प्रतिबिंब अपने विभिन्न माध्यमों से हमारे जीवन में भेजती है । इसलिए आपसे निवेदन है कि अगर कुछ सोचना ही है तो अच्छा सोचिए, कुछ देखना ही है तो अच्छा देखिए। क्योंकि जाने अनजाने में आपके द्वारा ग्रहण की गई, अपने अंदर ली गई, भरी गयी यही सूचनाएं आपके मन में विचारों के उत्प्रेरन एवं सृजन का काम करती हैं और आपके विचार ही आपके संसार का निर्माण करता है ।

यदि आप लोगों दुष्ट प्रवृत्ति उनकी नीचता पर ध्यान केंद्रित करेंगे तो परिणाम कभी भी अच्छा नहीं होगा । दुनिया में अच्छाई, उम्मीद, विश्वास और  प्रेम  को देखिए, नि:संदेह बदले में आपको भी यही सारी चीजें यही सारी अच्छाइयां मिलेंगी । इसलिए दुनिया में प्रेम देखिए तो आपको प्रेम मिलेगा दुनिया में अच्छाई देखिए तो आपको अच्छा ही मिलेगा .  दुनिया में अच्छाई, उम्मीद, विश्वास और  प्रेम  को देखिए, दुनिया भी आपमें  वही देखेगी ।

इस कहानी पर आप अपने विचार , आवश्यक संशोधन हेतु सुझाव अथवा सुधार हेतु आपके अन्य सभी विचार हमें नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर भेज सकते हैं हमें आपके विचारों का इंतजार रहेगा । बने रहिए विचार क्रांति परिवार के साथ आने वाला समय आपके जीवन में शुभ हो इसी शुभकामना के साथ फिर मिलेंगे

 

 

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