धैर्य संयम प्रयत्न एवं गति- का नाम ही जिंदगी है ।

Written by-आर के चौधरी

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हमारे हर प्रयास को परिणाम की परिणति मिले यह कतई आवश्यक नहीं है । जीवन में कई बार ऐसा लगने लगता है कि हम अनंत दुर्भाग्य के चक्र में फंस चुके हैं हम जिसे खोजना पाना और अपनाना चाहते हैं, हमें नहीं मिलता और हम स्वयं को दुर्भाग्यशाली मानने लगते हैं ।

लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि हमारे साथ होने वाली गलत चीज या हमारी अप्राप्ति, किसी चीज को पाने के प्रयास में असफल हो जाना यह नियति का हमारे लिए सहयोग हो, आशीर्वाद हो, एक अदृश्य आशीर्वाद हो… जो हमें हमारे लिए अधिक उपयुक्त कार्यों स्थलों एवं घटनाओं की ओर हमें ले जाना चाहता हो ।

अल्बर्ट आइंस्टीन जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है (photoelectricity के लिए) और दुनिया के कुछ सबसे महत्वपूर्ण दो-तीन वैज्ञानिकों में से एक माने जाते हैं उन्होंने जब सापेक्षता वाद की खोज की थी तो उसके पीछे एक छोटी सी कहानी है

कहानी कुछ ऐसी है की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी की खोज में उन्होंने अपने जीवन का साथ से 8-10 साल लगा दिया । उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा पत्नी से उनका डायवर्स हो गया इतनी सारी कुर्बानियों के बाद भी अपने सिद्धांत को साबित करने के लिए उन्हें कुछ और काम करने थे

उन्हें अपने सिद्धांत को गणितीय रूप से साबित करना था जिसके लिए उन्हें 1914-15 में खगोल शास्त्रियों द्वारा सूर्य के सूर्य ग्रहण के समय तारों का चित्र चाहिए था जिसके आधार पर वह अपनी थ्योरी को सही साबित कर सकें । लेकिन उस समय के पढ़े-लिखे लोग साइंस के अच्छे जानकार भी आइंस्टीन के इस थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी को बेवकूफाना मानते थे । इसलिए कोई भी उनके साथ काम करने को आसानी से तैयार नहीं था हालांकि बाद में इयान नाम के जर्मन खगोलशास्त्री ने उनका सहयोग करने का विचार किया । लेकिन रूसी क्षेत्र में जाकर चित्र लेने की कोशिश करने के कारण और रूस के युद्ध बंदी बन गए और इस तरह से आइंस्टीन के हाथ से वह मौका चला गया । जहां पर वह अपनी बात को की लाइट का भी बेंडिंग मोशन होता है साबित करने से चूक गए ।

शुरुआत में आइंस्टीन को थोड़ा कष्ट हुआ क्योंकि अगला जो पूर्ण सूर्य ग्रहण था वह फिर 5 साल के बाद लगने वाला था ।

लेकिन एक दिन जब वह अपनी गणनाओं पर काम कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि उन्होंने जो मैथमेटिकल कैलकुलेशन किए थे उसमें कुछ कमी थी और यदि उनका जर्मन दोस्त इयान उनके लिए वह फोटोग्राफ उस समय उपलब्ध करवा भी देता तो वह अपने ही सिद्धांत को साबित करने से चूक जाते … हालांकि दुनिया तो उन पर हंस ही रही थी क्योंकि उस समय तक Time & Space को स्वतंत्र और निरपेक्ष मान जाता था।

हालांकि बाद में अमेरिकी खगोल शास्त्री आर्थर एडिंगटन ने 1920 में आइंस्टीन के Bending Motion of Light को सही साबित कर दिया ।

क्या पता अगर उनके जर्मन सहयोगी को रूसी सैनिक पहले विश्व युद्ध में बंदी नहीं बनाते और वह उस पूर्ण सूर्य ग्रहण का चित्र लेकर आइंस्टीन के पास आ जाते तो शायद थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी कभी दुनिया के सामने ही ना आ पाती

साथियों जो हमें नहीं मिला उसे स्वयं के लिए एक अदृश्य वरदान समझकर स्वीकार करने को यदि हम तैयार हो जाएं, तो हमारी जिंदगी में रूपांतरण अवश्य होगा । जीवन को कभी भी हमें किसी छोटी या बड़ी प्राप्ति और अप्राप्ति की दृष्टि से नहीं देखना है । जो नहीं मिला जो हमारे लिए अप्राप्त रह गया । असल में वही भाग्य है और जब हम विफलताओं को सहज होकर स्वीकार करते हैं तो यह हमारे जीवन में सच्चे अर्थों में प्रभु का आशीर्वाद और उपहार बनकर आता है

जीवन में असफलता मिलने पर भी यदि आप खुश हैं अभिभूत हैं । सत्य का आलिंगन करने को उसे स्वीकार करने को तैयार हैं… तो आप के जीवन में रूपांतरण की शुरुआत हो चुकी है ।

जीवन में जो हमें नहीं मिला है उसका चिंतन और मनन करके हम दुखी होने लगते हैं, दुखी रहने लगते हैं लेकिन जो हमें प्राप्त है उसके महत्व को हम ध्यान ही नहीं देते हैं । उसके प्रति हम उदासीन हो जाते हैं ।

अपने लक्ष्य या अपनी इच्छा के अनुकूल हमें हमारा मंजिल नहीं मिला हो लेकिन अपनी मंजिल, अपने गंतव्य तक पहुंचने की तैयारी के क्रम में हमने जो कुछ अच्छे पल बिताए उसकी हम गणना ही नहीं करते । जो कुछ भी हमारे अंदर परिवर्तन आया उसके प्रति आभार ही नहीं प्रकट करते ! और केवल अपनी अप्राप्ति के लिए दुख मनाना अनुचित है!

इसी देश में और दुनिया में विज्ञान पढ़कर अच्छा साहित्यकार बनने वाले लोगों की कमी नहीं है । साहित्य पढ़कर कुशल प्रशासक बनने वाले लोगों की कमी नहीं है … और विज्ञान पढ़कर कंपनियों में सीईओ बनने वालों की कमी नहीं है । आप भी ऐसे कई लोगों से मिले होंगे जो अपने इंटरमीडिएट या समकक्ष कक्षाओं में कुछ और बनने की तमन्ना लेकर बढ़ रहे थे लेकिन समय ने उन्हें कहीं और पहुंचा दिया और वह आज जहां और जिस क्षेत्र में है अच्छा काम कर रहे हैं । मेडिकल की पढ़ाई करके लोग अपने प्रोफेशनल कार्य से अलग दुनिया को सही और अच्छे जीवन के लिए प्रेरित कर रहे हैं ।

अपना खोज हुआ,अपना चाहा हुआ नहीं मिलना कोई दुर्भाग्य नहीं है यह बस एक घटना है । दलाई लामा कहते हैं – “आपका सोचा हुआ आपका किया हुआ अगर नहीं हो रहा है तो हो सकता है यह आपके लिए आशीर्वाद हो , भगवान की कृपा हो ! “

क्योंकि अगर आपका सोचा हुआ नहीं हो रहा है आपको आपकी सोच के अनुसार परिणाम नहीं मिल रहे हैं तो इसका मतलब है कि आपके साथ उसे परमपिता परमात्मा की सोच के अनुसार कुछ हो रहा है। वह इस समस्त संसार का पालनहार है वह तुम्हारे लिए भी अच्छा ही करेगा इस उम्मीद और विश्वास के साथ जब आप जीवन को जिएंगे तो परिस्थितियों में परिवर्तन जरूर आएगा ।

हमें हमारे समस्याओं के प्रति कृतज्ञ और धन्य होना चाहिए क्योंकि वही हमें आगे बढ़ाने के लिए मुश्किल समय से गुजार कर हमारी परीक्षा लेते हैं ताकि हम अधिक मजबूत, जुझारू और ताकतवर बनकर आगे निकल सके ।

अहोभाव से जीवन गुजरिए । जिंदगी में सब कुछ आशीर्वाद ही है। असफलताओं में भी आशीर्वाद को ढूंढने की कोशिश करने वाले व्यक्ति ही रूपांतरित होकर व्यक्ति से व्यक्तित्व बनता है ।

व्यक्ति का दुर्भाग्य… असल में तब शुरू होता है जब वह नहीं मिलने वाली चीजों को अपना दुर्भाग्य मानने लगता है तथा मिली हुई चीजों के प्रति उसके भीतर कृतज्ञता और कर्तव्य बोध का भाव क्षीण हो जाता है … जो उसे मिला है उसके प्रति वह उदासीन हो जाता है ।

जिंदगी में अगर किसी चीज को हम ढूंढ रहे हैं लेकिन वह हमको नहीं मिला तो हमें वहीं ठहरने की जरूरत नहीं है बल्कि यह हमारे लिए एक अदृश्य वरदान भी तो हो सकता है जो हमें दूसरी दिशा दशा और स्थिति में ले जाना चाहता हो । लेकिन इस अंतर्दृष्टि के लिए आवश्यक है कि जीवन धर्मी लोगों के सानिध्य में जीवन बिताया जाए । सकारात्मक लोगों के बीच रहा जाए !

दृष्टि बदलने से हमारी दुनिया बदलती है । इतनी बड़ी दुनिया में जहां इतने अच्छे लोग हैं हमें कोई ऋषि कोई महामना कोई गुरु कोई देवता नहीं मिलता तो यह हमारा दृष्टि दोष है ।

जिस दिन हम अपने आसपास की चीजे मनुष्यों और घटनाओं के प्रति अनुग्रह और कृतार्थ भाव से अभिभूत हो उठेंगे , जीवन में समस्याओं के बहुत मानी नहीं रह जाएंगे ।

असल दिक्कत यही है कि जो हमें सहज उपलब्ध है उसे हम महान मानते नहीं और जो अनुपलब्ध है… जो हमें मिला नहीं है जिसे हम जानते भी नहीं है उसके पीछे दौड़ने भागने और सर पटकने को हमने जीवन में महानता का नाम दे दिया है ।

किसी भी प्राप्ति में समय संसाधन श्रम और 100% प्रयास की जरूरत होती है । लियोनार्दो डा विंची ने जो अपनी प्रसिद्ध कलाकृति बनाई है मोनालिसा । उस एक पेंटिंग को बनाने में उन्होंने अपने जीवन के 4 साल दिए हैं प्रसिद्ध इतालवी मूर्तिकार माइकल एंजेलो जिनकी बनाई हुई कलाकृति डेविड को बनाने में लगभग 3 साल लग गए।

लेकिन कल इन कलाओं के समीक्षकों का कहना है कि अभी भी इनमें थोड़ा बहुत काम बाकी है खासकर के मोनालिसा की पेंटिंग में… फिर से सोचिए किसी व्यक्ति ने अपने जीवन के 4 साल दे दिए उसके बाद भी उसमें थोड़ी बहुत कमी है ।

हम इस इंस्टेंट नूडल के जमाने में सब कुछ इंस्टेंट चाहते हैं … यह कैसे होगा ! किसी भी अच्छे और बड़े काम काम की पूर्णता में समय लगता है और हो सकता है इस समय देने के बावजूद इच्छित परिणाम नहीं मिले !

सच के इस मर्म को समझना जरूरी है । जीवन में सुख के बाद दुख और दुख के बाद सुख का क्रम लगा रहता है ठीक उसी तरह जिस तरह से सृष्टि में लय और प्रलय का क्रम है दिन और रात का क्रम है जीवन और मृत्यु का क्रम है ।

अपूर्णता भी कुछ अर्थों में पूर्णता का द्योतक है । समग्रता में ही जीवन है । बस इसे स्वीकार करो ।

लेकिन हमें अपने गंतव्य के प्राप्ति की आतुरता है । हम लोग सब कुछ पा लेना चाहते हैं, बिना कुछ किए और वह भी बिना किसी प्रतीक्षा के । प्राप्ति के लिए अधीरता, गंतव्य के प्रति आतुरता …. यही गड़बड़ी है और यही हमारी असफलताओं और दुख का सूक्ष्म अर्थों में कारण भी है ।

अगर हमें हमारा गंतव्य हमारा लक्ष्य नहीं मिला , वो चीज नहीं मिली जिसको हम पाना चाहते हैं उसके लिए हमने अपना जी-जान लगा दिया , घोर प्रयास किया परंतु …. नहीं मिला सब छोड़-छाड़ के, फेंक दिए … निकल गए वहां से … !

इससे बाहर निकलना पड़ेगा क्योंकि जिसे हम पाना चाहते हैं वह अगर मिल भी जाए तो इसी आतुरता की वजह से वह हमारे लिए नीरस हो जाता है । इस नीरसता का मुख्य कारण है उसकी गति से हमारी आंतरिक गति का नहीं मिलना

साथियों सृष्टि की एक गति है हमारा भी गति है आंतरिक लय है । हर विषय, हर वस्तु और हर जीव का एक अपना स्वभाव है उसकी एक अपनी गति है । अपनी इच्छित स्थिति और वस्तु की गति के साथ लय मिलाने से ही महान प्राप्तियां होती हैं । हालांकि यह समय माँगता है ।

इसलिए गंतव्य और प्राप्ति के प्रति आतुरता के भाव से मुक्त होकर धैर्य एवं संयम के साथ प्रयत्न कीजिए । यदि प्रयत्न के बावजूद परिणाम नहीं मिल रहा तो इसे ईश्वर की अदृश्य कृपा समझ कर स्वीकार कीजिए और जीवन में आगे बढ़िए … आखिर गति में ही जीवन है ।

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