kabir das ji ke dohe

कबीर दास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित

Written by-Khushboo

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कबीर दास जी के मार्मिक दोहे-kabir das ke inspirational dohe

इन मार्मिक दोहों में कबीर जीवन यथार्थ एवं जीवन के कटु सत्य के प्रति मानव मात्र को आगाह कर रहे हैं , सचेत कर रहें हैं । वो जीवन जगत और माया के विषय में अपनी बात कह रहें हैं और आम जन को सहज जीवन जीने हेतु काम- क्रोध और अहंकार से रहित हो कर जीवन जीने की शिक्षा दे रहें हैं ।

104).

माली आवत देखि के, कलया करे पुकार ।
फूली -फूली चुनि लाई ,काल हमारी बार ॥

105).

अति हठ मत करे बावरे, हठ से बात ना होय ।
ज्यूँ – ज्यूँ भीजे कामरी, त्यूँ- त्यूँ भारी होय ॥

106).

मान -अभिमान न कीजिए कहें कबीर पुकार ।
जो सिर साधु ना नमें, तो सिर काटि उतार ॥

107).

काम क्रोध तृष्णा तजे, तजे मान अपमान ।
सद्गुरु दाया जाहि पर, जम सिर मरदे मान ॥

108).

नाम जो रत्ती एक है ,पाप पाप जु रत्ती हजार ।
अधि रत्ती घट संचरै , जारी करे सब छार ॥

109).

राम जपत दरिद्री भला, टूटी घर की छान ।
कंचन मंदिर जारी दे ,जहां न सद्गुरु ज्ञान ॥

110).

राम नाम जाना नहीं, लागी मोटी खोर ।
काया हाड़ी काठ की ,वह चढ़े बहोर ॥

111).

राम नाम जाना नहीं, लागी मोटी खोर ।
काया हाड़ी काठ की ,वह चढ़े बहोर ॥

kabir ke dohe ka sangrah

112).

माया – माया सब कहें, माया लखै न कोय ।
जो मन से ना उतरे, माया कहिए सोय ॥

113).

तन चालतां मन भी चलें, ताते मन को घेर ।
तन मन दोऊ बसि करै, राई होय सुमेर ॥

114).

कामी तो निरभय भया,करै न कहूँ संक ।
इंद्री केरे बसि पड़ा, भुगते नरक निशंक ॥

115).

पहले यह मन काग था, करता जीवन घात ।
अब तो मन हंसा भया , मोती चुनी -चुनी खात ॥

116).

सुमिरन की सुधि यौं करो ,जैसे कामी काम ।
एक पलक बिसरै नहीं, निश दिन आठों जाम ॥

117).

चिंता चित्त बिसारिये, फिर बुझिए नहिं आन ।
इंद्री पसारा मेटीए, सहज मिलै भगवान ॥

118).

सुमिरन सों मन लाइए जब लागै ,ज्ञानकुस दे सीस ।
कहैं कबीर डोलै नहीं ,निस्चै बिस्वा बीस ॥

119).

कागद केरी नाव री, पानी केरी गंग ।
कहैं कबीर कैसे तीरे, पाँच कुसंगी संग ॥

120).

जीना थोड़ा ही भला , हरि का सुमिरन होय ।
लाख बरस का जीवना, लेखै धरै न कोय ॥

121).

थोड़ा सुमिरन बहुत सुख ,जो करि जानै न कोय ।
हरदी लगै न फिटकरी ,चोखा ही रंग होय

122).

आगे अँधा कूप में ,दूजा लिया बुलाय ।
दोनों डूबे बापुरे , निकसे कौन उपाय

123).

जा गुरु को तो गम नहीं ,पाहन दिया बताय ।
सिष सोधे बिन सेइया ,पर न पहुंचा जाय

124).

हिरदे ज्ञान न ऊपजै, मन परतीत न होय ।
ताको सद्गुरु कहा करे ,घनघसि कुल्हर न होय

125).

नींद नाशनी मौत की, उठु कबीरा जाग ।
और रसायन छारीके,राम रसायन लग

126).

गुरु नाम है गम्य का, सीष सिख ले सोय ।
बिनु पद बिनु मरजाद नर,गुरु सीष नहिं कोय

127).

स्वामी सेवक होय के,मन ही में मिलि जाय ।
चतुराई रीझे नहीं ,रहियर मन के माय

128).

गुरु भया नहिं सीस भया, हिरदे कपट न जाव ।
आलो पालो दुःख सहै , चहिढ़ पाथ की नाव

129).

कबीर यह संसार है, जैसा सेमंल फूल ।
दिन दस के वयवहार में, झूठे रंग न फूल

130).

काया कजरी बन अहै, मन कुंजर महमंत ।
अंकुस ज्ञान रतन है, फेरे साधु संत

131).

जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम नहिं काम ।
दोनों कबहु न मिलै , रवि रजनी इक ठाम

kabir ke dohe,

132).

गुरु नारायण रूप है , गुरु ज्ञान को घाट ।
सद्गुरू बचन प्रताप सों मन के मिटे उचाट ॥

अर्थ:- इस दोहे के माध्यम से कबीर गुरु की महिमा का बखान कर रहें हैं वो कह रहें हैं कि गुरु ज्ञान का अथाह भंडार हैं और इस धरती साक्षात् भगवान का रूप भी हैं । अतः गुरु की समीपता का अपना ही महत्व है वह अपने शिष्यों के मन में उठ रहे ऊहापोहों का भी शमन अपनी सहज अभिव्यक्ति से कर देतें हैं ।

कबीर दास के सभी दोहे अर्थ सहित लिखने में थोड़ा समय लगेगा लेकिन हमने कुछ दोहों के अर्थ अपनी समझ और स्वाध्याय के अनुसार आपके सामने रखा है । बाकी का भी अर्थ हम निकट भविष्य में जरूर लिखने का प्रयास करेंगे । इसमें यदि आप किसी भी प्रकार से सहयोग कर सकते हैं तो आपका स्वागत है ।


बाकी मुझे पूरी उम्मीद है कि आपको हमारा दोहों का यह संकलन उत्कृष्ट लगा होगा ।

कबीर दास जी के दोहे के इस संकलन पर अपने विचार – दोहों का संकलन आपको कैसा लगा ? तथा इसमें और क्या जोड़ा जा सकता है? जिससे दोहों का यह संकलन अधिक उपयोगी हो, सहित अन्य विचार कमेंट बॉक्स में लिखकर हम तक जरूर भेजिए ।

कबीर दास जी के दोहों के संकलन को यथासंभव अधिक लोगों तक शेयर कीजिए ताकि कबीर के क्रांतिकारी विचारों से, उनके मानव कल्याणकारी उपदेशों से अधिक से अधिक लोगों का भला हो पाए ।

बने रहिये Vichar Kranti.Com के साथ । अपना बहुमूल्य समय देकर लेख पढ़ने के लिए आभार ! आने वाला समय आपके जीवन में शुभ हो ! फिर मुलाकात होगी किसी नए आर्टिकल में ..

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