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कबीर दास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित

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कबीर दास के दोहे (kabir das ke dohe) के इस संकलन से पहले कबीर दास जी के विषय में कुछ बातें ।कबीर दास भक्तिकालीन भारत के महान संतों में से एक थे । जिन्होंने अपने समय में व्याप्त सामाजिक बुराइयों पर लगातार कुठाराघात किया । कबीर ताउम्र पाखंड और अंधविश्वास पर चोट करते हुए सत्य एवं सदाचार पूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देते रहे ।

कबीर ने साखी,सबद और रमैनी नाम से तीन पुस्तकों की रचना की । कबीर साहेब के दोहे अत्यंत सरल शब्दों में सुखी जीवन जीने के सारगर्भित संदेशों और शिक्षाओं से लबरेज हैं , भरे पड़े हैं । कबीर दास का जीवन एक साधारण आदमी द्वारा महानता के शिखर को छूने की कहानी है । ये दोहे अनमोल हैं ! मुझे ऐसा कहने में कोई संकोच नहीं है कि एक-एक दोहे में आज के बड़े-बड़े प्रेरक वक्ताओं के अनेकों घंटे की सीख से भी बढ़कर है ।

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कबीर के द्वारा कहे गए एक-एक दोहे अपने आप में एक ग्रन्थ से कम नहीं है । सरल सहज तथा समीचीन भाषा में आम लोगों तक मानव जीवन के मूल सत्यों को पहुंचाने का उनका अंदाज अद्वितीय रहा है । गूढ़ बातों को सरल शब्दों में पहुंचा देने की ये कला बहुत कम गुरुओं में दिखाई पड़ती है ।

अतः शुरू में हमने अपने अध्ययन के हिसाब से कुछ प्रतीकात्मक दोहों (kabir das ke dohe)को आपके लिए प्रस्तुत किया है । जो इस बात की प्रेरणा देतें हैं कि कठिन समय में कैसे सहज हो कर जिया जाय और दुरूह परिस्थितियों में भी अथक परिश्रम, प्रेमपूर्ण व्यवहार और उम्मीद के सहारे लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया जाय। प्राणिमात्र से प्रेम का सन्देश ही कबीर के चिंतन की मूल अवधारणा रही है ।

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# दोहा

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि ।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि

अर्थ:-इस दोहे के माध्यम से कबीर जीवन में शब्द और संवाद के महत्व को रेखांकित कर रहे हैं । वो कहना चाहते हैं कि वही बोली अनमोल है, जिसे सोच समझ कर बोला जाय,उसके प्रतिफल और परिणाम की समीक्षा करने के पश्चात । यह समझ और जान कर कि अगर वही शब्द कोई हमारे लिए कहे तो स्वयं को कैसा अनुभव होगा ? अगर इन चीजों को ध्यान में रख कर हम बात करेंगे तो निश्चय ही वह बात अनमोल ही होगी और हर तरफ प्रेम ही प्रेम होगा ।

वही बात कि “कब कहाँ कैसे कोई बात कही जाती है ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है “आरम्भ में प्रस्तुत है दो-चार दोहे फिर उसके आगे पढ़िए कबीर के दोहों का संकलन…

# दोहा

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अर्थ:-हमारे साथ घटने वाली हर एक घटना, पहले सर्वप्रथम हमारे विचारों में हमारे मन में आकर लेती है, फिर वास्तविक धरातल पर घटित होती है । हमारे मन में जिस प्रकार का ब्लूप्रिंट बनता है उसी प्रकार से हमारे चिंतन और चरित्र की प्रकृति बदलती जाती है। मन से हारे व्यक्ति का विजयी होना मुश्किल है और सशक्त मनःशक्ति वाला व्यक्ति का कठिन परिस्थिति में भी हारना दुरूह ! अतः मन ही वास्तव में हमारा गुरु है ।

अर्थ II:-कबीर दास जी कहतें हैं हार और जीत मन की ही प्रतीति हैं । जय और पराजय विश्वास के ही दो रूप हैं । मन को जीतने वाले की विजय निश्चित है तथा ईश्वर की प्राप्ति का भी मूल मंत्र भी मन का विश्वास ही है ।

# दोहा

कस्तूरी कुंडल बसै मृग ढूंढे वन माहि ।
ऐसे घट घट राम हैं दुनिया देखे नाहिं

अर्थ :– इस दोहे के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति के भीतर निवास करता है । उसे ढूंढने के लिए बाहर दर-दर भटकने की जरूरत नहीं है । स्वयं को पाकर ही व्यक्ति भगवान को पा लेता है । आत्मानंद ही परमानन्द की प्राप्ति का उपाय है ।

हमारे पाठकों के लिए इसकी व्याख्या इस प्रकार से भी है – प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर का ही एक अंग है । हम सभी ईश्वर की संतानें हैं इसलिए हम सबको सफलता प्राप्ति के क्रम में प्राप्त क्षणिक पराजयों से हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है ।

# दोहा

निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय ।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय

अर्थ :-ऐसे लोग जो हमारी निंदा करतें हैं उनको क्रोध वश स्वयं से दूर नहीं रखना चाहिए बल्कि उनको अपने ही पास रखना चाहिए ताकि उनके द्वारा अपनी आलोचनाओं से सचेत होकर हम अपनी व्यक्तिगत दोषों को दूर कर सकें । वस्तुतः जो हमारा हित चाहने वाले होते हैं वही हमारी आलोचना हमारे सामने भी कर सकतें हैं । आलोचना एवं निंदा से बचने हेतु किए जाने वाले हमारे प्रयास एक व्यक्ति को रूपांतरित कर देता है ।

# दोहा

ज्यों तिल माहीं तेल है, ज्यों चकमक में आगि ।
ऐसे घट- घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिं

अर्थ:-जैसे  तिल में तेल तथा चकमक पत्थर में आग उसके भीतर सदैव विद्यमान रहता है । उसी भांति परमात्मा इस सृष्टि के कण-कण में मौजूद हैं विराजमान हैं । उन्हें बाहर बहुत ढूंढ़ने से वो नहीं मिलने वाले बल्कि सच्चाई और नेकनीयती से अपने काम में लगे हुए व्यक्ति को ही वो मिलेंगे ।

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# दोहा

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय

अर्थ:-धैर्य ही व्यक्ति के जीवन में सभी प्रकार की प्राप्तियों का मूल आधार है । अतः झटपट परिणाम प्राप्त करने की कोशिश को छोड़कर लक्ष्य का संधान करके व्यक्ति को लक्ष्य प्राप्ति तक अनवरत प्रयास करते रहना चाहिए क्योंकि  प्रयास कभी भी निष्फल नहीं होता । समय आने पर अवश्य फलित होता है ।

अब आप आगे पढ़िए दोहों का पूर्ण संकलन जिसमें से केवल कुछ का हम अर्थ दे रहें हैं आने वाले दिनों में हम सभी दोहों(kabir das ke dohe) का अर्थ लिखने की कोशिश करेंगे । अगर आप को किसी दोहे का अर्थ समझने में कोई दिक्कत हो तो कृपया नीचे कमेंन्ट बॉक्स में अवश्य लिखे हम इसे शीघ्र अपडेट कर देंगे

कबीर दास जी की प्रमुख दोहों का संकलन

1).

बुरा वंश कबीर, का उपजा पूत कमाल ।
हरि का सिमरन छोड़ के घर ले आया माल

2).

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान

इस दोहे की व्याख्या कई प्रकार से की जा सकती है चूंकि हमारा मुख्य उद्देश्य प्रेरणा के स्रोत को आप तक पहुंचाना तथा प्रेरणास्त्रोत से आप जैसे अपने प्रिय पाठक मित्र को जोड़ना है । इसलिए हमारी व्याख्या इस दोहे के लिए कुछ इस प्रकार है-
कबीर शिक्षा को मानव जीवन का एक आवश्यक अंग मानते थे उनके मुताबिक शिक्षित होने में ही जीवन की सार्थकता है इसके विपरीत जो कुछ भी है वह व्यर्थ है । साथ ही वो गुरु एवं ज्ञानीजनों का हर परिस्थिति में सम्मान करने को भी कहतें हैं चाहे उनकी सामाजिक स्थिति परिस्थिति कुछ भी क्यों न हो …!

3).

जहां दया वहां धर्म है जहां लोभ तहां पाप ।
जहां क्रोध महाकाल है जहां छमा तहां आप

4).

कबीर खड़ा बाजार में सबकी मांगे खैर ।
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर

5).

राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट।
अंत काल पछतायेगा जब प्राण जाएगा छूट

6).

सुखिया सब संसार है खाए और सोए ।
दुखिया दास कबीर है जागे और रोए

7)

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर

अर्थ: इस दोहे के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि केवल नाम से बड़ा होना कोई बड़ा होना नहीं ! व्यक्ति अपने जीवन में अपने काम से बड़ा होता है। ऐसी प्रभुताई का, ऐसे सामर्थ्य, का कोई अर्थ नहीं है जिससे किसी का भला ही न हो सके । यह दोहा आज भी पूर्ण प्रासंगिक है और आने वाली पीढ़ियों को भी परोपकार करने के लिए प्रेरित करती रहेगी ।

8).

राम-रहीम एक है, नाम धराया दोय ।
कहे कबीरा दो नाम सुनी, भरम परौ मति कोय

9).

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय

10).

एक दिन ऐसा होयगा , कोय काहू का नाहिं।
घर की नारी को कहै, तन की नारी जाहि॥

अर्थ : – कबीर इस संसार की निःसार होने की बात कर रहे हैं वो कह रहे हैं कि सबको एक दिन ये दुनियां छोड़ जानी है । सब कुछ जो हमे आज अपना लग रहा है उसमें से कुछ भी साथ नहीं जाने वाला !

11).

दया धर्म का मूल है, पाप मूल संताप।
जहां क्षमा तहां धर्म है, जहां दया तहां आप

12).

जीना थोड़ा ही भला हरि का सुमिरन होय।
लाख बरस का जीवना लेखै धरे न कोय ॥

13).

वेद कुरान सब झूठ है, उसमें देखा पोल।
अनुभव की है बात कबीरा, घट-परदा देखा खोल

14).

अंबर बरसे धरती भीजै, यहु जानै सब कोय ।
धरती बरसे अंबर भीजै , बुझे बिरला कोई ॥

15).

काम क्रोध मद लोभ की, जब लग घट में खान।
कबीर मूरख पंडिता, दोनों एक समान

16).

जिनके नाम निशान है , तिन अटकावै कौन ।
पुरुष खजाना पाइया , मिटी गया आवा गौन ॥

17).

कबीर यह मन मसखरा , कहुँ तो माने रोस ।
जा मारग साहिब मिले, तहाँ न चालें कोस ॥

18).

हिंदू मैं हूं नाही, मुसलमान भी नाही ।
पंचतत्व को पुतला, गैबी खेले माही

19).

ज्यों तिल माही तेल है, ज्यों चकमक में आगि ।
ऐसे घट- घट राम है, दुनिया देखे नाही

20).

केवल सत्य विचारा, जिनका सहारा आहारा ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, तरे सहित परिवारा

21).

झूठा सब संसार है, कोउ न अपना मीत ।
राम नाम को जाने ले, चलै सो भौजल जीत ॥

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Khushboo
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मैं हूँ खुशबू ! घूमने फिरने का शौक है और नई एवं सही चीजों के बारे में लिखने का जुनून । इस वेबसाइट की अधिकांश चीज आपकी नजर तक पहुँचने से पहले मेरी नजरों से होकर गुजरती है । विचारक्रान्ति वेबसाईट को अधिक उपयोगी और लोकप्रिय बना सकूं इसी उम्मीद में लिखना जारी है । Follow me @

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11 टिप्पणी

    • आपको कबीर दास जी के दोहे अच्छे लगे यह जानकार हमें बहुत प्रसन्नता हुई । सुंदर शब्दों से हमारा उत्साह बढ़ाने के लिए विचारक्रांति टीम की ओर से आपका धन्यवाद ! विचारक्रांति टीम से जुडने के लिए हमसे ईमेल पर संपर्क करें ।

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