इस लेख में बात बहुत ही चर्चा का विषय सम्मेद शिखर जी एवं उनसे जुड़ी बातों की –
जैन मतावलंबी के बीच अत्यंत श्रद्धा सात्विकता एवं आदर प्राप्त तीर्थ शिखरजी या कहें कि सम्मेद शिखर जी जैन आस्था का एक प्रमुख केंद्र है । जिसकी यात्रा और परिक्रमा करके जैन अपने आप को धन्य अनुभव करते हैं ।
सम्मेद शिखर वस्तुतः झारखंड राज्य के गिरिडीह जिले में स्थित पारसनाथ की पहाड़ियों को कहा जाता है । इसी पर्वत पर 23 वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने मोक्ष प्राप्त किया था । इसलिए इसे पार्श्वनाथ या पारसनाथ की पहाड़ी नाम से स्थानीय स्तर पर जाना जाता है ।
इस पर्वत को जैन तीर्थराज यानि तीर्थों के राजा नाम से संबोधित करते हैं । कुल 24 जैन तीर्थंकर में से 20 ने इसी पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया । इसलिए जैन मतावलंबी इस तीर्थ को बड़े ही सम्मान से शिखरजी के नाम से संबोधित करते है ।
कहाँ है ?
Topic Index
यह पर्वत झारखंड राज्य के गिरिडीह जिले स्थित है । इस पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से 4430 फीट अथवा 1350 मीटर है। इस पर्वत को झारखंड का सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता है । यही झारखंड राज्य की सबसे ऊंची जगह है । इसे झारखंड का हिमालय भी कहा जाता है ।
महत्व
इस पर्वत का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि पहली बात तो लोग इसे तीर्थराज यानी तीर्थों के राजा के नाम से संबोधित करते हैं। विभिन्न जैन ग्रंथों में प्रत्येक जैन को अपने जीवन में कम से कम एक बार सम्मेद शिखरजी की यात्रा परिक्रमा करने का निर्देश दिया गया है।
इस शिखर से कुल 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष प्राप्त किया है । इसके अतिरिक्त अनेकों जैन मुनि इस स्थान विशेष पर तपस्या की है जिस कारण इस स्थान का जैन दर्शन में विशेष महत्व है । लाखों की संख्या में लोग इस स्थान की यात्रा परिक्रमा करते हैं ।
विवाद का कारण
विवाद का मुख्य कारण केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार की सिफारिश पर हाल में जारी की गई वह अधिसूचना है जिसके अनुसार इस क्षेत्र को इको सेंसेटिव जोन के साथ पर्यटन स्थल घोषित किया गया है। जैन लोगों का मानना है कि इस क्षेत्र के पर्यटन स्थल घोषित होने के बाद यहां पर सभी प्रकार के वर्जित काम शुरू हो जाएंगे । अनेकों होटल व रेस्तरा खुल जाएंगे जिसमें बेरोकटोक वो सारी चीजें होंगी जिनकी जैन मान्यताओं में मना ही है । इससे उनके पावन तीर्थ की पवित्रता भंग होगी ।
जैन मान्यता काल एवं तीर्थंकर
जैन मान्यताओं के अनुसार पूरे कालचक्र को दो खंडों में विभाजित किया गया है । उतसर्पिनी कालचक्र और अवसर्पिनी कालचक्र । उतसर्पिनी कालचक्र में जहां आयु शरीर बुद्धि व्यवहार में विस्तार होता है वही अवसर्पिनी काल में इन सभी चीजों का क्षय होता है।
कौन होते हैं तीर्थंकर
तीर्थंकर का स्थान जैन धर्म में भगवान का है । जो अलग अलग समय में जन्म लेकर लोगों को सही जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं । तीर्थंकर बनने से पहले साधक को लोभ,मोह क्रोध और अहंकार पर विजय प्राप्त करके अरिहंत बनना पड़ता है और जब अरिहंत को कैवल्य की प्राप्ति होती है तब वह तीर्थंकर बनते हैं ।
सबसे पहले तीर्थंकर का नाम ऋषभदेव जिन्हें आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। और भगवान महावीर 24 वें तीर्थंकर हैं ।
अनुरोध
अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक हर किसी के धार्मिक मान्यताओं का आदर हो यही हमारा संस्कार है । जैन हमारे देश में भले ही अल्पसंख्यक कहलाते हों लेकिन इनका योगदान अद्भुत है । इस लेख के माध्यम से इनकी आवाज को हमारा समर्थन है और आपसे भी अनुरोध है कि इनके लिए आवाज उठाइए ।
जैन समाज इस देश के सिरमौर हैं । देश की प्रगति पराक्रम एवं विकास में इनका महान योगदान है । एक भारतीय होने के नाते मुझे विश्वास है और मेरी अपील भी है कि जैन समाज की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए इनके पावन तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी को पर्यटन सूची के लिस्ट से बाहर किया जाए कुछ ऐसा किया जिससे इस तीर्थ की पवित्रता एवं सत्विकता को चार चाँद लग जाएं ।
सम्मेद शिखर कौन से राज्य में है?
श्री सम्मेद शिखर जी झारखंड राज्य के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ियों पर स्थित जैन समुदाय का सबसे बड़ा तीर्थ है । पर्यटन के नाम पर इस क्षेत्र को खोलने का विरोध जैन समाज के लोग कर रहे हैं।
पारसनाथ क्यों प्रसिद्ध है?
जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के नाम पर इस पर्वत को पारसनाथ पर्वत कहा जाता है , तथा जैन धर्म के लोग सम्मेद शिखर पर प्रतिवर्ष यात्रा और परिक्रमा करने आते हैं । वो इस पर्वत क्षेत्र को तीर्थराज कहते हैं । इस पर्वत की यात्रा का जैन समाज के लिए अत्यंत महत्व है ।
सम्मेद शिखर से कितने तीर्थंकरों ने मोक्ष प्राप्त किया है ?
20 जैन तीर्थंकरों ने इस सम्मेद शिखर पर अपनी तपस्या करते हुए मोक्ष प्राप्त किया।