डाकिया पर निबंध-Essay on Postman

Written by-Khushboo

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दसवीं कक्षा से नीचे तक के विद्यार्थियों को भिन्न-भिन्न परीक्षाओं में अलग-अलग विषयों पर लेख लिखने को कहा जाता है. डाकिया यानी कि postman भी उन्हीं विषयों में से एक है.हमने निबंध को अनावश्यक रूप से बड़ा नहीं करते हुए सरल संक्षिप्त एवं सीमित शब्दों में मूल भावनाओं और तथ्यों को आपके सामने रखने की कोशिश की है. हम आशावान हैं कि आपको डाकिया पर लिखा गया यह निबंध उपयुक्त लगेगा.

भले ही संचार क्रांति कितनी ही तरक्की क्यों न कर ली हो? लेकिन आज भी भारत के सुदूर अंचलों और गांव में सामान्य चिट्ठी पत्री और मनीआर्डर(money order) से लेकर नौकरी की जॉइनिंग लेटर(joining letter) तक को  घर-घर तक पहुंचाने का काम एक डाकिया postman ही करता है.

  डाकिया यानी POSTMAN पर निबंध

प्रस्तावना:-


जब हम अपनी भावनाओं अथवा संदेशों को लिखकर दूसरों तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं तो वही चिट्ठी का रूप ले लेता है. इन चिट्ठियों को अपने गंतव्य तक पहुंचाने का काम जो व्यक्ति करता है वही डाकिया है. आज से कुछ साल पहले तक जब इंटरनेट और मोबाइल फोन की सघनता इतनी ज्यादा नहीं थी. डाकिया postman सुदूर अंचलों में रहने वाले आम जनमानस के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं था.

दूर प्रदेश में रहने वाले प्रियजनों की चिट्ठी, किसी खुशखबरी का संदेश, प्रेम की मधुर फुहारों में भीगे हुए खत, शासनादेश, मनी ऑर्डर और पता नहीं क्या-क्या ? सब कुछ सही सलामत सही जगह पर पहुंचाने की जिम्मेदारी जो थी,और है.. डाकिया’ के कंधे पर…!


डाकिया का काम

डाकिया यानी कि पोस्टमैन एक जनसेवक है.  जिसका काम घर-घर जाकर लोगों को चिट्ठियां वितरित करना है.  गांव से लेकर शहर तक चाहे दुनिया कितनी भी बदल क्यों नहीं गई हो लेकिन चिट्ठियों(letters) का महत्व आज भी कम नहीं हुआ है .आज भी नौकरियों के कागजात पत्र-पत्रिकाओं का वितरण, मनी-ऑर्डर एवं अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज, डाक विभाग के द्वारा ही बिना किसी समस्या के आम नागरिक तक पहुंच रहा है.

एक डाकिया(postman) का काम बहुत ही कठिन होता है. सबसे पहले वह अपने इलाके के लिए आने वाली चिट्ठियों को छांटकर एकत्रित करता है, फिर उसे अपने बैग में लेकर घर घर जाकर वितरित करता है. मौसम चाहे सर्दी का हो या गर्मी का हर समय हर दिन उसे जाकर अपना काम करना ही होता है. ग्रामीण अंचल में  डाकियों को दुर्गम और कठिन रास्तों से भी गुजरना पड़ता है. जिसका असर कई बार उसके स्वास्थ्य एवं जीवन पर भी पड़ता है.

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(इच्छा तो हो रही है वह सब कुछ लिख डालू जो लिखना चाहता हूं लेकिन अपनी इच्छाओं के अनुसार अगर लेखनी को आजादी दी जाए तो वह निबंध की मर्यादा और शब्दों की सीमा को तोड़कर बहुत आगे निकल जाएगी और यह निबंध कुछ ज्यादा ही बड़ा हो जाएगा. इसलिए मेरे प्यारे दोस्तों चिट्ठियों के बारे में फिर कभी बात करेंगे)

डाकिया की वेशभूषा

हम सभी डाकिए को उस की वेशभूषा  और उसकी साइकिल की घंटी से पहचान लेते हैं. वह खाकी रंग की वर्दी पहनता है और उसके हाथ में चमड़े का एक थैला होता है, जिसमें  मनी ऑर्डर पार्सल और चिट्ठियों का पुलिंदा होता है. जिसे वह अपने मोहल्ले के घर घर जाकर बांटता है.

उत्तरदायित्व पूर्ण काम

एक डाकिए(postman) का काम बहुत ही जिम्मेदारी और संजीदगी का काम है. अगर संदेश अथवा अन्य किसी चिट्ठी पत्री को भूलवश वह पाने वाले व्यक्ति के अलावा किसी और को दे देता है तो इससे बहुत नुकसान हो सकता है. इसलिए 100% जिम्मेदारी से काम करना उसके पेशे में आवश्यक है.

जब पर्व त्योहारों में लोग छुट्टियों का आनंद उठाते रहते हैं. ऐन वक्त पर डाकिया पत्रों  का बंडल उठा कर लोगों को उनके अपनों से और महत्वपूर्ण खबरों से रुबरु करवाता रहता है.इतना उत्तरदायित्व पूर्ण काम होने के पश्चात भी उसको वेतन कम मिलता है .उनके वेतन एवं भत्ते बहुत कम होते हैं. एक डाकिए के लिए छुट्टियों की संख्या भी निर्धारित होती हैं.

ईमानदारी और सरलता

एक व्यक्ति का सफल और पेशेवर डाकिया बनने के लिए उसमें जिम्मेदारी इमानदारी और विनम्रता का होना आवश्यक शर्त है .इसके बिना वह अपने कर्तव्यों का निर्वाहन अच्छे से नहीं कर पाएगा. और तो और वह अपने क्रियाकलापों से समाज के लोगों को भी अनावश्यक परेशानी में डाल देगा.

उपसंहार:-

ऐसे कठिन परिश्रम करने वाले  मधुर व्यवहार वाले पोस्टमैन के लिए सरकार को पारिश्रमिक जरूर बढ़ाना चाहिए. जैसे दिन-प्रतिदिन डाक विभाग(postal department) की स्थिति खराब होती जा रही है. सरकार को प्रयास करना चाहिए कि यह विभाग बंद नहीं हो.मानव सभ्यता के विकास की एक अमूल्य धरोहर परंपरा को जीवित रखा जा सके ताकि आने वाली पीढ़ियों को डाकिए सिर्फ कहानियों में सुनने या देखने को ना मिले.वे उनसे मिल भी सकें …

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