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आचार्य विनोबा भावे की जीवनी | Vinoba Bhawe Biography Hindi

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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के परम शिष्य आचार्य विनोबा भावे एक महान् स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने देश की आजादी में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। आचार्य विनोबा भावे के नेतृत्व में वर्ष 1951 में भूदान आंदोलन शुरू हुआ था। जिसके तहत भूमिहीन किसानों की दशा में सुधार लाने का प्रयत्न किया गया। आचार्य विनोबा भावे ना केवल एक महान भारतीय थे, बल्कि वह समाज सुधारक और आध्यात्मिक ज्ञाता के तौर पर भी जाने जाते हैं। इसलिए उनके बारे में जानना अहम हो जाता है । आगे हमने आचार्य विनोबा भावे की जीवनी संक्षेप में लिखी है । उम्मीद है आप हमारे प्रयास को सार्थक कहेंगे ।

आचार्य विनोबा भावे का संक्षिप्त परिचय

नीचे हमने आचार्य विनोबा भावे से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियों को नीचे सूचीबद्ध किया है।

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पूरा नामविनायक राव भावे
दूसरा नामआचार्य विनोबा भावे
जन्म तिथि11 सितंबर 1895
जन्म स्थान गागोड गांव, जिला कोलाबा (महाराष्ट्र)
धर्महिंदू
जातिब्राह्मण
पिता का नामनरहरी शंभू राव 
माता का नाम रुक्मणि देवी 
भाई बहन 3 भाई और ,1 बहन (बालकृष्ण, शिवाजी, दत्तात्रेय) 
राजनैतिक गुरु महात्मा गांधी 
राजनैतिक पार्टी कांग्रेस 
वैवाहिक स्थितिअविवाहित 
स्थापनाब्रह्म विद्या मंदिर 
साहित्यिक रचनाईशावास्यवृत्ति, स्थितप्रज्ञ दर्शन, लोक नगरी, श्रीमद्भागवत गीता का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद
पुरस्काररेमन मैग्सेसे पुरस्कार, भारत रत्न 
लोकप्रियता स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, आध्यात्मिक गुरु
आयु88 वर्ष
मृत्यु तिथि15 नवंबर 1982
मृत्यु स्थानपौनार, महाराष्ट्र 

आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय

आचार्य विनोबा भावे के पिता नरहरी शंभू राव एक बुनकर थे और इनकी माता रुक्मणि देवी एक गृहणी थी। इनके पिताजी अक्सर अपने काम के सिलसिले से बाहर ही रहा करते थे। ऐसे में इनका लालन पोषण इनके बाबा ने किया। आचार्य विनोबा भावे की माता एक धार्मिक स्वभाव की महिला थीं। जिसके चलते इनके व्यक्तित्व पर अपनी माता के गुणों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा।

आचार्य विनोबा भावे को बचपन में ही श्रीमद्भागवत गीता के अनेक श्लोक कंठस्थ हो गए थे। हालांकि वह बचपन से ही पढ़ाई में काफी अच्छे थे और गणित उनका पसंदीदा विषय हुआ करता था। लेकिन अपने सामाजिक व्यवहार के चलते उन्हें पारंपरिक शिक्षा रास नहीं आई। जिस कारण उन्होंने इंटरमीडिएट परीक्षा देने के बाद ही अपने सारे सर्टिफिकेट और रिजल्ट जला दिए थे। इसके बाद उन्होंने जीवन पर्यंत ब्रह्मचर्य का पालन किया और खुद को पूरी तरह से सामाजिक व धार्मिक कार्यों में लिप्त कर लिया। इस दौरान उन्होंने सम्पूर्ण भारत देश की यात्रा करते हुए अनेक क्षेत्रीय भाषाओं का अच्छा ज्ञान भी हासिल कर लिया था।

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आचार्य विनोबा भावे और महात्मा गांधी

आचार्य विनोबा भावे के जीवन पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कार्यों और विचारों का विशेष प्रभाव पड़ा था। उनका मानना था कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों ने उनके सम्पूर्ण जीवन को बदलकर रख दिया है। यही कारण था कि वह जब तक महात्मा गांधी से सामने से रूबरू नही हो पाए, तब तक वह महात्मा गांधी तक अपने विचार पत्राचार के माध्यम से भेजते रहे। उनके पत्रों से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने उन्हें साल 1916 में कोचरब आश्रम बुला लिया। जहां साबरमती आश्रम में काफी समय तक रहते हुए आचार्य विनोबा भावे ने अपना जीवन व्यतीत किया। 

आचार्य विनोबा भावे जब महात्मा गांधी जी के साथ साबरमती आश्रम में रहा करते थे। तब वह पठन-पाठन और अनेक प्रकार के सामाजिक कार्य किया करते थे। इसी दौरान उनके उच्च विचारों से प्रेरित होकर आश्रम में ही रहने वाले मामा फड़के ने उन्हें आचार्य की उपाधि दी थी।

फिर साल 1921 में महात्मा गांधी द्वारा आचार्य विनोबा भावे को वर्धा भेज दिया गया। जहां उन्हें एक आश्रम का कार्यभार सौंपा गया। इसी दौरान आचार्य विनोबा भावे ने महाराष्ट्र धर्म नाम से एक मासिक पत्रिका का संपादन किया। जिसे लोगों का काफी समर्थन प्राप्त हुआ। 

आचार्य विनोबा भावे का राजनैतिक सफर

विनोबा भावे की जीवनी में आगे पढिए उनके राजनैतिक सफर और योगदान के बारे में – विनोबा भावे के राजनैतिक सफर की शुरुआत मुख्य रूप से गांधी जी के आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने के बाद से  हुई थी। सर्वप्रथम आचार्य विनोबा भावे ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया था।

जहां उन्होंने स्वदेशी अपनाओ का व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार किया। महात्मा गांधी ने आचार्य विनोबा भावे को केरल भी भेजा था। जहां इन्होंने वैकोम नामक गांव में हरिजनों को मंदिर में प्रवेश दिलवाने के लिए संघर्ष किया। इसके अलावा विनोबा भावे ने गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन समेत कई स्वतंत्रता  आंदोलनों में प्रतिभाग किया। जहां देश को स्वतंत्रता दिलाने के प्रयास में आचार्य विनोबा भावे को कई बार जेल भी जाना पड़ा। हालांकि गांधी जी के प्रत्येक आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के उपरांत आचार्य विनोबा भावे को पहला सत्याग्रही चुना गया। तब भारतीयों में विनोबा भावे को एक युवा नेता के तौर पर पहचान मिली।

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आचार्य विनोबा भावे के द्वारा किए गए अन्य कार्य

विनोबा भावे ने सदैव महात्मा गांधी के बताए गए मार्ग पर  चलने की ठानी थी। वह गांधी जी के सत्यवादी और सत्याग्रही विचारधारा से काफी प्रेरित थे। जिसके चलते वह सर्व धर्मों के प्रति समान भाव रखा करते थे। उन्होंने भी गांधी जी की तरह समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों, छुआछूत और असमानता के खिलाफ काफी संघर्ष किया। उनका मानना था कि समाज में परिवर्तन और सुधार का मुख्य आधार अध्यात्म ही है। विनोबा भावे हमेशा से ही अहिंसा के पक्षधर थे, इसलिए उन्होंने गरीबों और पिछड़े वर्गों के अधिकार के लिए क्रांति का नहीं बल्कि सत्याग्रह आंदोलन का मार्ग चुना। हालांकि वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल को आचार्य विनोबा भावे ने काफी समर्थन दिया था। जिस कारण उनको लोगों की आलोचना का भी शिकार होना पड़ा था।

विनोबा भावे को मिले पुरस्कार और सम्मान

  1. 1958: प्रथम रेमन मैग्सेसे अवार्ड 
  2. 1983: भारत रत्न (मरणोपरांत)

आचार्य विनोबा भावे की मृत्यु

जीवन के अंतिम दिनों में आचार्य विनोबा भावे ने जैन धर्म में प्रचलित संथारा पद्वति को अपना लिया था। अर्थात् जब उन्हें यह आभास होने लगा था कि अब उनकी मृत्यु निकट है। तब उन्होंने अन्न, जल और दवा आदि का त्याग करके समाधि ले ली थी। जिसके बाद 15 नवंबर 1982 को महाराष्ट्र के पौनार में स्थित ब्रह्मा विद्या मंदिर में आचार्य विनोबा भावे ने अंतिम सांस ली ।

आज आचार्य विनोबा भावे हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके द्वारा किए गए महान् कार्य और उनके विचार सदैव हमारे बीच अमर रहेंगे।


इति

हमें पूरा विश्वास है कि हमारा यह प्रयास जिसमें हमने आचार्य विनोबा भावे की संक्षिप्त जीवनी लिखने की कोशिश की है ,आपको पसंद आया होगा । आवश्यक संसोधन या इस लेख पर अपने विचार रखने के लिए नीचे कमेन्ट बॉक्स में जरूर लिखें । इस लेख को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल्स पर शेयर भी करे क्योंकि Sharing is Caring !

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