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तुलसीदास की जीवनी | Tulsidas ka Jivan Parichay

Written by-VicharKranti Editorial Team

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भारत एक ऋषि प्रधान देश रहा है । महान मनीषियों ने समय समय पर देश और समाज का अपने ज्ञान और अनुभव से मार्गदर्शन किया है । यही प्राचीन सनातन भारतीय संस्कृति के अब तक अक्षुण्ण रहने का एक अहम कारण रहा है । मुगलों के आक्रमण एवं बिगड़े सामाजिक ताने बाने से निराशा में डूबे समाज में जागृति का बल भरने के लिए भक्तिकाल के महान संतों ने महान काम किए । तुलसीदास भक्तिकाल के प्रमुख संत कवियों में से एक थे । उन्होंने रामायण सहित अपनी अन्य रचनाओं से भारतीय समाज में जनजागृति का संचार किया । इस आलेख Tulsidas ka Jivan Parichay में पढिए महान संत कवि तुलसीदास का जीवन परिचय

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना अवधी में की जिससे यह कथा एक बार फिर से भारत के घर घर तक जा पहुंची । महर्षि वाल्मीकि के बाद सम्पूर्ण दुनिया का परिचय भगवान श्री राम से सहज और सरल शब्दावली में करवाने वाले महान संत थे गोस्वामी तुलसीदास । इसलिए तुलसीदास जी को कलियुग का वाल्मीकि भी कहा जाता है।

ऐसे में चलिए आगे जानते हैं गोस्वामी तुलसीदास जी के जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें …

तुलसीदास जी का संक्षिप्त परिचय -Tulsidas ka Jivan Parichay

पूरा नामगोस्वामी तुलसीदास
जन्म 1511 ईस्वी (1568 संवत)
जन्म स्थानराजापुर, जिला बांदा, उत्तर प्रदेश
बचपन का नामरामबोला
पिता का नामआत्माराम दुबे 
माता का नामहुलसी 
गुरुनरहरि बाबा
पत्नी का नामरत्नावली
संतान1 बेटा (तारक) 
भाषाअवधी, ब्रज 
सम्मानगोस्वामी, अभिनववाल्मीकि आदि 
कर्म भूमिबनारस
लोकप्रियतारामभक्त और भारतीय कवि 
काव्य विधाकविता, दोहा और चौपाई 
महत्वपूर्ण रचना रामचरितमानस और हनुमान चालीसा। 
मृत्यु1623 ईस्वी (1680 संवत)
मृत्यु स्थानवाराणसी, उत्तर प्रदेश 

tulsidas ka jivan parichay

तुलसीदास जी के जीवन के बारे में

तुलसीदास जी के जीवन से संबंधित इस लेख Tulsidas ka Jivan Parichay में आगे पढिए तुलसीदास जी से जुड़ी कुछ प्रमुख जानकारियां … !

  • ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने अपने जीवन में सबसे पहला शब्द ही राम बोला था । उसके बाद इनका नाम रामबोला पड़ गया । 
  • कहा जाता है कि तुलसीदास अपनी माता के गर्भ में करीब 12 महीने तक रहे और जन्म के बाद इनके मुंह में दांत मौजूद थे।
  • ज्योतिषों ने तुलसीदास को अपने माता-पिता के लिए अशुभ बताया था। इनके जन्म के दूसरे ही दिन इनकी माता चल बसीं पिता ने इन्हें चुनियां नामक एक दासी को परवरिश के लिए सौंप कर स्वयं ही विरक्ति ले ली ।
  • इनका नाम रामबोला से बदलकर तुलसीदास इनके गुरु स्वामी नरहरि ने रखा था। जिन्होंने ही आगे चलकर इन्हें राम मंत्र की दीक्षा दी थी।
  • तुलसीदास जी बचपन से ही प्रखर बुद्धि और तेज दिमाग के धनी थे। जिसके चलते इन्होंने काफी छोटी उम्र में ही चारों वेदों का अध्ययन कर लिया था। साथ ही संस्कृत समेत कई सारी भाषाएं भी सीख ली थी।
  • एक बार जब इनकी पत्नी अपने मायके गई हुई थी। तब पत्नी के मोह में तुलसीदास जी भी उनके पीछे चल दिए थे। जिस पर उनकी पत्नी ने उनको बहुत खरी खोटी सुनाई। साथ ही इनकी पत्नी ने तब इनसे एक श्लोक भी कहा था कि…..लाज न आई आपको, दौरे आएहु नाथ।।
  • अपनी पत्नी द्वारा किए गए तिरस्कार से आहत होकर तुलसीदास ने गृहस्थ जीवन को हमेशा के लिए त्याग दिया और संन्यास ग्रहण कर लिया। ऐसे में साधारण से तुलसीदास को गोस्वामी तुलसीदास बनाने का श्रेय इनकी पत्नी को ही दिया जाता है।
  • दूसरी ओर, अपने संपूर्ण परिवार को हमेशा के लिए खो देने के बाद तुलसीदास पूर्णतया अकेले हो गए थे। तब इन्होंने भगवान श्री राम की भक्ति करना आरंभ किया। इस दौरान वह अन्य लोगों को भी भगवान श्री राम की कथा सुनाया करते थे।
  • ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने अपने संपूर्ण जीवन काल में दो बार भगवान श्री राम के दर्शन किए। पहली बार, रामचरितमानस की रचना के दौरान अस्सी घाट पर ही इनको भगवान श्री राम के दर्शन प्राप्त हुए। दूसरी बार जब तुलसीदास जी चंदन घिस रहे थे, तब उन्हें भगवान श्री राम के दर्शन हुए।
  • कहा जाता है कि एक बार इनके स्वप्न में स्वयं महादेव पधारे। जिन्होंने इनसे रामचरितमानस की रचना करने को कहा। इसके बाद तुलसीदास ने श्री राम के जीवन चरित्र से प्रेरित होकर पवित्र ग्रंथ रामचरितमानस की रचना की।
  • ऐसा माना जाता है कि रामचरितमानस की रचना करते समय स्वयं राम भक्त हनुमान जी ने इनका मार्गदर्शन किया था।
  • रामचरितमानस की रचना होने के बाद जब इसकी ख्याति चारों ओर फैलने लगी। तब अन्य पंडितों ने जलन के कारण इसे चुराने की योजना बनाई। लेकिन वह उसमें सफल नहीं हो सके। जिसके बाद तुलसीदास ने इस पवित्र ग्रंथ को सुरक्षित रखने के लिए अकबर के नव रत्न और अपने परम मित्र टोडरमल के पास भिजवा दिया। और फिर उसी आधार पर तुलसीदास ने रामचरितमानस की अन्य प्रतियां लिखीं।
  • साथ ही इनके द्वारा रचित रामचरितमानस को जब काशी के पंडितों द्वारा वेदों के बाद सबसे नीचे रखा गया, तब वह स्वयं ही सबसे शीर्ष पर आ गई थी। तब से ही रामचरितमानस हिंदुओं के पवित्र ग्रंथों में से एक मानी जाती है।
  • तुलसीदास जी द्वारा वाराणसी में संकटमोचन मंदिर का निर्माण कराया गया था। साथ ही श्री राम भक्त हनुमान जी के जीवन पर तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक, हनुमान बहुक और तुलसी सतसई आदि रचनाएं भी लिखी है।
  • इन्होंने अपनी काव्य रचनाओं में अधिकतर ब्रज और अवधी भाषाओं का प्रयोग किया है। इनकी रचनाओं में भक्ति और सामाजिक परिदृश्य दोनों ही देखने को मिलता है।

तुलसीदास जी द्वारा स्वयं के जीवन पर रचित महत्वपूर्ण दोहे:-

  1. जन्म के संदर्भ में,
    पंद्रह सौ चौवन विषै, कालिंदी के तीर।
    सावन शुक्ल सप्तमी, तुलसी धरेउ शरीर ॥
  2. वैराग्य के संदर्भ में,
    अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
    नेकु जो होती राम से, तो काहे भवभीत ॥
  3. भगवान श्री राम से मिलन के संदर्भ में,
    चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर।
    तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर ॥
  4. ईश्वर भक्ति के संदर्भ में,
    सीयराममय सब जग जानी।
    करउं प्रनाम जोरि जुग पानी ॥
  5. मृत्यु के संदर्भ में,
    संवत सोलह सो असी, असी गग के तीर।
    श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर।।

रामचरितमानस का संक्षिप्त विवरण

रामचरितमानस तुलसीदास जी की समस्त रचनाओं में सबसे श्रेष्ठ कृति है। जिसमें उन्होंने जगत के पालनहार भगवान विष्णु के अवतार श्री राम के जीवन चरित्र का वर्णन किया है। रामचरितमानस की रचना में तुलसीदास जी को लगभग 2 वर्ष , 7 माह और 26 दिन लग गए थे। जन श्रुतियों के अनुसार इन्होंने इस ग्रंथ की रचना तुलसीदास जी ने ठीक उसी जगह की थी जहां आज की काशी में प्रसिद्ध मानस मंदिर है । (source: Web Archive)

इस प्रकार, रामचरितमानस को हिंदुओं का पवित्र ग्रंथ माना गया है। जिसका उत्तर भारत के लोगों द्वारा प्रतिदिन पाठ किया जाता है। रामायण के कुल 7 काण्ड (अध्याय) हैं –

रामचरितमानस में कुल सात काण्ड इस प्रकार हैं :-

  • बालकाण्ड,
  • अयोध्याकाण्ड,
  • अरण्यकाण्ड,
  • किष्किन्धाकाण्ड,
  • सुन्दरकाण्ड,
  • लंकाकाण्ड,
  • उत्तरकाण्ड आदि।

इनमें से धार्मिक अवसरों पर विशेष रूप से सुंदरकाण्ड का पाठ किया जाता है। इन सातों कांड क्रमशः बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड एवं उत्तरकाण्ड में सबसे बड़ा बालकाण्ड तथा सबसे छोटा किष्किन्धाकाण्ड है।

तुलसीदास जी की रचनाएं

इन्होंने अवधी भाषा में रामचरितमानस, रामलला नहछू, बरवै रामायण, जानकी मंगल, रामाज्ञा प्रश्न सहित अन्य रचनाएं की हैं।

तो वहीं ब्रज भाषा में इनके द्वारा वैराग्य-संदीपनी, विनय-पत्रिका, गीतावली, दोहावली, साहित्य रत्न, कवितावली आदि रचित की गई हैं।

इसके अलावा, पार्वती मंगल, कलिधर्माधर्म निरुपण, कवित्त रामायण, कुंडलिया रामायण, छप्पय रामायण, छंदावली रामायण, सतसई, राम शलाका, संकट मोचन, श्री कृष्ण गीतावाली, झूलना, रोला रामायण आदि भी तुलसीदास जी की प्रमुख रचनाएं हैं।

तुलसीदास की मृत्यु

अपने जीवन के आखिरी दिनों में तुलसीदास जी काफी बीमार रहने लगे थे। जिसके चलते 1623 ईस्वी में जब तुलसीदास जी अपनी कृति विनय पत्रिका की रचना कर रहे थे। उसी दौरान उन्होंने भगवान श्री राम का नाम लेते हुए गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट पर अपने प्राण त्याग दिए थे। प्रतिवर्ष हिन्दी महीने के सावन मास की सप्तमी तिथि को गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती मनाई जाती है । ऐसे में हर वर्ष सावन माह की शुक्ल सप्तमी को तुलसीदास जी की जयंती मनाई जाती है।

इस प्रकार, तुलसीदास जी एक महान संत और भगवान श्री राम के अनन्य भक्त थे। जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के प्रति अपने स्नेह और भक्ति को दुनिया के सामने रखा। आज वह हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके द्वारा रचित महान ग्रंथ सदैव भारतीयों के मध्य भगवान श्री राम के गुणों का बखान करेंगे। साथ ही उन्हें न्याय और सत्यता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेंगे। 


इति

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विचारक्रान्ति के लिए -अंशिका जौहरी

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