संस्कृत प्रार्थनाएं अर्थसहित | Sanskrit Prayers with Hindi Meaning

Written by-आर के चौधरी

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संस्कृत प्रार्थनाएं अर्थसहित-Sanskrit Prayers with Hindi Meaning:- प्रार्थनाओं का हमारे जीवन में बहुत ही सकारात्मक और शुभ प्रभाव पड़ता है । प्रार्थनाओं से हमें अपने जीवन में अनेक लाभ प्राप्त होते हैं । अपने ईश्वर एवं जीवन के प्रति श्रद्धा और विश्वास बढ़ता है , मन शांत होता है , क्षणिक प्रलोभनों एवं वंचनाओं से खुद को दूर रखने की शक्ति मिलती है ।

एक जिज्ञासु के जीवन में, एक छात्र के जीवन में उसकी सफलता के लिए ये चीजें ( जो प्रार्थनाओं sanskrit prayers के प्रतिफल स्वरूप हमें मिलती हैं का ) कितना आवश्यक है इसे कहने की आवश्यकता नहीं है । आज के दौर में जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए अब दूसरे इंटेलिजेंस के साथ spiritual intelligence भी जरूरी है । इसलिए हमने आपके लिए लिखा है कुछ प्रमुख संस्कृत प्रार्थनाओं एवं उनके भावार्थ sanskrit prayers with hindi meaning को । उम्मीद है आप हमारे प्रयास की सराहना करेंगे ।

शुरू करते हैं गणेश जी की आराधना से

वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ: ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

भावार्थ :-हे विशाल शरीर एवं वक्र हाथी के सूंड वाले सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान तेजोमय मेरे प्रभु ! आप मेरे सभी कार्यों को बिना विघ्न के पूर्ण करें आप मुझ पर ऐसी कृपा बनाए रखें ताकि मेरे सभी कार्य बिना किसी बाधा के सम्पन्न हो ।

sanskrit prayers with hindi meaning

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा ।
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

भावार्थ :-गुरु ब्रह्मा सृष्टिकर्ता के समान हैं, गुरु विष्णु संरक्षक के समान हैं.
और गुरु ही साक्षात शिव के समान है । गुरु साक्षात परब्रह्म हैं ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ।.

सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे कामरूपिणी ।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा ॥

भावार्थ :-विद्या और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती आपको मेरा नमस्कार है , हे वरदान देने वाली वरदायिनी माता भगवती आपको मेरा प्रणाम। अपनी विद्या आरम्भ करने से पूर्व मैं आपका नमन करता हूँ , मुझे आशीर्वाद दें कि मेरा विद्याध्यन का यह कार्य सिद्ध हो । मुझ पर अपनी कृपा बनाये रखें ।

नमस्तेस्तु महामायें श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शंख्चक्ररादाह्स्ते महालक्ष्मी नमस्तु ते ॥

भावार्थ :- अपने हाथों में में शंख एवं चक्र धारण करने वाली , देवों के द्वारा पूजित महामाया माता श्री महालक्ष्मी जो शक्ति और धन की अधिष्ठात्री देवी है ऐसी माँ लक्ष्मी को मेरा प्रणाम है । माता महालक्ष्मी को मैं प्रणाम करता हूँ ।

सूर्य संवेदना पुष्पे:, दीप्ति कारुण्यगंधने ।
लब्ध्वा शुभम् नववर्षेअस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम्

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् ।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि

भावार्थ :- जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, इस समस्त संसार के सार तत्व हैं और जो गले में भुजंगों की माला धारण करते हैं । ऐसे भगवान शिव जो माता पार्वती के साथ मेरे हृदय में सदा निवास करते हैं को मेरा प्रणाम है ।

नीलाम्बुज श्यामल कोमलाङ्गम्, सीता समारोपित वाम-भागम्।
पाणौ महाशायक चारु-चापं, नमामि रामं रघुवंश नाथम्

भावार्थ :-नीलकमल के समान श्याम और कोमल जिनके अंग हैं, माता श्रीसीताजी जिनके वाम-भाग में विराजमान हैं और जिनके हाथ में अमोघ बाण और सुन्दर धनुष है । ऐसे श्री रघुवंश के नाथ प्रभु श्री राम चंद्र जी को उन मैं नमस्कार करता हूँ ।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा

भावार्थ :-जो परमेश्वरी विद्या की देवी कुंद के पुष्प, चंद्र और बर्फ के हार के समान श्वेत हैं और जिन्होंने श्वेत वर्ण के वस्त्र धारण किये हुए है । जो अपने हाथों वीणा एवं दंड धारण करती हैं जो श्वेत कमल के आसन पर विराजमान है तथा जो ब्रह्मा विष्णु और महेश सहित अन्य देवताओं द्वारा सदैव वंदित हैं , सभी देवता जिनकी वंदना करते हैं । समस्त दुर्मति व अज्ञान के अन्धकार को दूर करने वाली ऐसी माता भगवती माँ सरस्वती मेरी रक्षा करें ।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम् देव देव

भावार्थ :-हे प्रभु, तुम ही माता हो, तुम ही मेरे पिता भी हो, बंधु भी तुम ही हो, सखा भी तुम ही हो। तुम ही मेरे विद्या, तुम ही देवता भी हो हे विष्णु भगवान्।

विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाथ श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

भावार्थ – विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं के प्रिय, लम्बोदर, कलाओं से पूरित, सम्पूर्ण जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले ,वेद तथा यज्ञ से विभूषित गौरीपुत्र आपको मेरा नमस्कार है ; हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है ।

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥

भावार्थ : -इस श्लोक को मैंने यहाँ शिव रुदाष्टकम से लिया है । जो निराकार हैं जिनका कोई आकार नहीं है , जो ओंकार (ॐ) के मूल में हैं । जो त्रिगुनातीत हैं ज्ञान इंद्रिय और वाणी से परे हैं । जो कराल हैं कालों के भी महाकाल हैं , जो गुणों के भंडार एवमं परम कृपालु हैं ऐसे कैलाशपति भगवान शिव को मैं नमस्कार करता हूँ ।

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्म्बकें गौरी नारायणि नमोस्तुते ॥

भावार्थ :- जो परम मंगलमय हैं जो कल्याणकारिणी और सभी मनोकामनाओं (सर्वार्थ) को सिद्ध करने वाली हैं । ऐसी 3 नेत्रों वाली माँ गौरी , शरणागत वत्सला माता नारायणी, मैं आपको नमस्कार करता हूँ ।

उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥

भावार्थ:- उत्पति पालन और विनाश करने वाली सभी क्लेशों को हारने वाली , सभी प्राणियों का कल्याण करने वाली , श्री रामचंद्र जी की प्रियतमा श्री सीता जी को मेरा नमस्कार है ।

ॐ असतो मा सद्गमय ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥
मृत्योर्मामृतं गमय ।
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥

हिन्दी भावार्थ:- हे परमपिता हे परमपिता ! मुझे असत से सत की ओर , जीवन के तिमिर से अंधकार से ज्योति और आलोक की ओर ले चलो । हे परमपिता मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो । ॐ शान्ति

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