सकारात्मक चिंतन और हमारा वयक्तित्व |Positive thinking &Personality

Written by-आर के चौधरी

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सकारात्मक चिंतन और हमारा वयक्तित्व


प्रिय मित्र आज की बात इस बात से प्रारंभ करता हूं कि सकारात्मक चिंतन और हमारा वयक्तित्व कैसे परस्पर सम्बद्ध है,  कैसे अपने जीवन को उच्च आदर्शों एवं प्रामाणिक प्रतिस्थापित मूल्यों के साथ जिया जाए! हमारा यह मानव जीवन बहुत ही मूल्यवान है, ऐसा तो हम सब ने सुना है, जाना है. लेकिन कितना मूल्यवान है? यह जानने वाले   जागृत लोग इस जगत में उंगलियों पर गिनने लायक हैं .

कुछ करने की इच्छा और सब कुछ पा लेने की होड़ ने, हमारे व्यक्तित्व को  उस तल तक नीचे धकेल दिया है, जहां हमने अपने जीवन के वास्तविक मूल्यांकन करने की क्षमता को ही खो दिया है .भौतिकवाद के सिद्धांत को सिरे से तो कोई  नकार नहीं सकता लेकिन भौतिकता के इस अर्थहीन अंधी दौड़ में मानव सुख की खोज में आनंद की खोज में दिन रात ठीक उसी प्रकार व्याकुलता में दौड़ रहा है जैसे कस्तूरी की तलाश में हिरण.

गोस्वामी तुलसीदास जी उत्तरकांड में उद्घोष करते हैं :-

बड़े भाग्य मानुष तन पावा 
सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा 
साधन् धाम मोक्ष कर द्वारा 
पाई न जेहिं परलोक सँवारा 

देव-दुर्लभ मनुष्य का शरीर बड़े भाग्य से प्राप्त होता है परंतु उसको कौड़ियों के भाव  में नष्ट कर देना किसी भी प्रकार से बुद्धिमानी कैसे कही जा सकती है?

जिंदगी की भागमभाग और अनमोल जीवन 

जिंदगी की रफ्तार इतनी तेज है और मंजिल इतना करीब कि मैं मेरा इसमें पर कर हम अपने जीवन के अनगिनत पलों को  तो नष्ट करते ही हैं कभी भी अपनी मंजिल पर भी नहीं पहुंच पाते. तमाम उम्र कोसते रहते हैं अपने भाग्य को दुनिया को और पता नहीं किस किस चीज को !

जैसे समंदर में नाव चलाने वाला वाले नाविक ने इस चिंता में कि आज वह खाली हाथ घर जाएगा अपने हाथ आई हुई हीरे मोतियों की पोटली में से एक-एक हीरा फेंक दिया और जब अंतिम हीरा बचा तब जाकर कहीं उसे समझ आया यह तो वह मूल्यवान रत्न था जिसे हमने व्यर्थ की चिंता में समंदर में फेंक दिया.खैर इसकी चर्चा कभी और…

यहां तो कुछ ऐसे ही तथ्यों पर बात कर लेते हैं जो वाकई जिंदगी को संवारने और बिगाड़ने दोनों का माद्दा रखतें है. दोस्तों हमारी जिंदगी कितनी भी व्यस्त क्यों नहीं हो ,लेकिन इसे जीने को ले कर हमारा इरादा कभी कमजोर नहीं होना चाहिए, हमारे हौसले भी पस्त नहीं होने चाहिए ! .

अगर एक गुणवत्तापूर्ण जिंदगी जीना चाहते हैं तो कभी भी अपनी भावनाओं से खेलने का अधिकार अपने अंतर्मन पर हावी होने का अधिकार स्वयं के सिवा संसार के किसी और को मत दीजिए !

सकारात्मकता बने जीवन का अभिन्न हिस्सा

जब भी आप किसी से वार्तालाप प्रारंभ करते हैं तो बातचीत में विनम्रता, व्यवहार में सरलता और और चरित्र में उदारता को जरूर अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बनाएं . परिस्थितियां चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल अपना आत्मबल हमेशा   मजबूत रखिए. अपने जीवन का केंद्र सकारात्मकता को बनाइए आशा को बनाइए उम्मीद को बनाइए अच्छाई को बनाइए उदारता को बनाइए.

जब भी हम बीमार पड़ते हैं और किसी  चिकित्सक के पास जाते हैं, तो जब हम स्वास्थ्य लाभ कर रहे होते हैं डॉक्टर  कहता है कि दवाओं का आप पर अच्छा असर हो रहा है लेकिन जब हमारी स्वास्थ्य स्थिति  अनुकूल नहीं होती,तो भी डॉक्टर सिर्फ इतना कहता है की दवाओं का असर होने में थोड़ा समय लग रहा है

जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के प्रति किसी व्यक्ति का नजरिया उसके व्यक्तित्व का परिचायक है . अपने आसपास की परिस्थितियों का गुलाम नहीं स्वामी  बनिए. परिस्थितियां प्रतिकूल हो सकती हैं लेकिन दुनिया के आज तक के इतिहास में ऐसा कौन सा महान काम है जो सर्वथा अनुकूल परिस्थितियों में हुआ है ?

अच्छा करने की जिम्मेदारी लीजिए. अपने आसपास घटित होने वाली घटनाओं पर प्रतिक्रिया नहीं  जिम्मेदार पहल कीजिए.क्योंकि जीवन का आनंद तो क्रिया में है प्रतिक्रिया में  नैराश्य है !

महानता अपनी अपनी नजरों में ऊपर उठने में है.जब कभी भी हमारी परीक्षा हो,हमें जांचा जाये सभी में अपने चरित्र के महानतम उच्चतम मानदंड की पालना करते हुए पार हों

किसी और के विचारगत  संकीर्णताओं को भला हम अपने चरित्र का पक्ष क्यों बनने दें .किसी  ने हमारे साथ गलत किया इस  को हम उसके साथ गलती करने की वजह क्यों बनाएं ?जीवन को संकीर्णता में नहीं सकारात्मकता एवं आशा और उम्मीद में जीना प्रारंभ कीजिए. आपके जीवन में सभी चीजें शुभ हों इन्हीं शुभकामनाओं के साथ

अभी के लिए इतना ही…..

आपका

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