हमने भारत भूमि पर अपने प्रिय कवियों की कुछ सर्वकालिक अनुपम रचनाओं Hindi Poem about India को प्रस्तुत किया है । इस विश्वास के संग की ये रचनाएं आपको भी पसंद आएंगी ! इस प्रस्तुति में मैंने तमाम वरिष्ठ कवियों की रचनाओं को स्थान दिया है । हमें लगा कि हमारे महान भारत देश के बारे में इनसे बेहतर शायद मैं तो, लिख नहीं पाउंगा ।
तो एक तरह से यह संकलन आप जैसे अपने प्रिय पाठक तक इन महत्वपूर्ण कविताओं को पहुंचाने के साथ, हिन्दी के सभी महान कवियों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का एक छोटा सा प्रयास भी है । बाकी कितने सफल रहें हैं हम अपने प्रयास में -ये कमेन्ट बॉक्स में लिखे आपके विचार ही बताएंगे ।
अपने महान सभ्यता संस्कृति और देश की महान विरासत के बारे में सम्यक जानकारी प्रत्येक देशवासी को एक ओर जहां अपनी महान विरासत पर गर्व करने का मौका देती है, वहीं देश के प्रति अपने कर्तव्य बोध का एहसास भी करवाती है । हमने एक छोटा सा प्रयास किया है अपने महान देश भारत को समर्पित उत्कृष्ट रचनाओं (Poem about India) को एक जगह संकलित करके आप तक पहुचाने का !
हमारा देश भारत जहां जनसंख्या और क्षेत्रफल के आधार पर विशाल है । वहीं सांस्कृतिक विविधता और सौहार्दपूर्ण सामाजिक ताने-बाने में भी इसका कोई जवाब नहीं है । उतर से दक्षिण और पूर्व और पश्चिम भारत सांस्कृतिक रूप से अनेकता में एकता का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है ।
दुनिया के सभी महान विभूतियों ने ( जिसे सभ्यता संस्कृति और मानवीय जीवन की गरिमा का बोध रहा है ) भारत भूमि की मुक्त कंठ से भूरि- भूरि प्रशंसा की है । यदि हम उन सभी का जिक्र यहां करें तो पन्ने भर जाएंगे लेकिन लोगों द्वारा इस देश के प्रति रखे गए अच्छे विचार खतम नहीं होंगे ।
फ्रांसीसी विद्वान रोम्या रोलां ने भारत का उल्लेख करते हुए कहा है –
“यदि पृथ्वी के मुख पर कोई ऐसा स्थान है जहां जीवित मानव जाति के सभी सपनों को बेहद शुरुआती समय से आश्रय मिलता रहा है, और जहां मनुष्य ने अपने अस्तित्व का सपना देखा है , वह स्थान भारत है।!”
स्वामी विवेकानंद ने विश्व की विभिन्न सभ्यताओं का जिक्र करते हुए कहते हैं –
“विश्व की हर राजनैतिक शक्ति को लाखों लोगों के जीवन का बलिदान देना होता था, जिनसे बड़ी तादाद में अनाथ बच्चे और विधवाओं के आंसू दिखाई देते थे। किन्तु भारत में हजारों वर्षों से शांति पूर्वक अपना अस्तित्व बनाए रखा। यहां जीवन तब भी था जब ग्रीस अस्तित्व में नहीं आया था . . हम दुनिया के किसी भी राष्ट्र पर विजेता नहीं रहे हैं और यह आशीर्वाद हमारे सिर पर है इसलिए हम जीवित हैं. . .!”
आगे पढिए हमारे द्वारा संकलित कविताओं को – मित्र इनमें से सभी रचनाएं हमारे द्वारा इंटरनेट पर मौजूद विभिन्न स्त्रोतों से संकलित की गईं हैं । यथासंभव हमने सभी कवियों के नाम भी आपके समक्ष लिख दिया है । चलिए हमारे संग आप भी लीजिए आनंद …अपने महान भारत देश पर लिखी गई कुछ उत्कृष्ट रचनाओं का ।
भारत देश पर कविताएं (Hindi poem about India)
Topic Index
सबसे पहले हमने हिन्दी कविता के शिखर पुरुष श्री जयशंकर प्रसाद की रचना को स्थान दिया है । मेरे सीमित ज्ञान और अध्ययन में भारत के भौगोलिक सौन्दर्य और विविधताओं का यह अपनेआप में सबसे लालित्यपूर्ण वर्णन है ।
1
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।
सरस तामरस गर्भ विभा पर
नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर
मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे
शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए
समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल
बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनंत की
पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुंभ ले उषा सवेरे
भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मदिर ऊँघते रहते जब
जग कर रजनी भर तारा।।
~ जयशंकर प्रसाद
#2
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला
वीरों को हरषाने वाला
मातृभूमि का तन-मन सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में,
काँपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जावे भय संकट सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
इस झंडे के नीचे निर्भय,
हो स्वराज जनता का निश्चय,
बोलो भारत माता की जय,
स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
आओ प्यारे वीरों आओ,
देश-जाति पर बलि-बलि जाओ,
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
इसकी शान न जाने पावे,
चाहे जान भले ही जावे,
विश्व-विजय करके दिखलावे,
तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
~ श्यामलाल गुप्त पार्षद
आगे पढिए महादेवी वर्मा की भारत देश पर देशभक्तिपूर्ण सुंदर और सरस कविता (Hindi poem on India by Mahadevi Verma )।
#3
अनुरागमयी वरदानमयी
अनुरागमयी वरदानमयी
भारत जननी भारत माता !
मस्तक पर शोभित शतदल सा
यह हिमगिरि है, शोभा पाता,
नीलम-मोती की माला सा
गंगा-यमुना जल लहराता,
वात्सल्यमयी तू स्नेहमयी
भारत जननी भारत माता।
धानी दुकूल यह फूलों की-
बूटी से सज्जित फहराता,
पोंछने स्वेद की बूँदे ही
यह मलय पवन फिर-फिर आता।
सौंदर्यमयी श्रृंगारमयी
भारत जननी भारत माता।
सूरज की झारी औ किरणों
की गूँथी लेकर मालायें,
तेरे पग पूजन को आतीं
सागर लहरों की बालाएँ।
तू तपोमयी तू सिद्धमयी
भारत जननी भारत माता!
~ महादेवी वर्मा
#4
पुष्प की अभिलाषा
पुष्प की अभिलाषा…
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
~ माखन लाल चतुर्वेदी
देशभक्ति पर मेरी अगली प्रिय रचना है डॉक्टर हरगोविंद सिंह द्वारा लिखित यह कविता Hindi Poem about India – चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि हर ग्राम है । इसी रचना को लयबद्ध करता हुआ एक सुंदर सा गीत भी मिल जिसे भी मैंने आपके लिए यहीं जोड़ दिया है । इस रचना को पढ़ने और गीत को सुनने के पश्चात आप भी कह उठेंगे कि कविता संख्या 5 को अद्भुत कहना एकदम समीचीन है ।
#5
चन्दन है इस देश की माटी
चन्दन है इस देश की माटी,
तपोभूमि हर ग्राम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा,
बच्चा-बच्चा राम है॥
हर शरीर मन्दिर सा पावन,
हर मानव उपकारी है।
जहाँ सिंह बन गये खिलौने,
गाय जहाँ माँ प्यारी है।
जहाँ सवेरा शंख बजाता,
लोरी गाती शाम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा,
बच्चा-बच्चा राम है॥
जहाँ कर्म से भाग्य बदलते,
श्रम निष्ठा कल्याणी है।
त्याग और तप की गाथाएँ,
गाती कवि की वाणी है॥
ज्ञान जहाँ का गंगा जल सा,
निर्मल है अविराम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा,
बच्चा-बच्चा राम है॥
इसके सैनिक समर भूमि में,
गाया करते गीता हैं।
जहाँ खेत में हल के नीचे,
खेला करती सीता हैं।
जीवन का आदर्श यहाँ पर,
परमेश्वर का धाम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा,
बच्चा-बच्चा राम है ॥
चन्दन है इस देश की माटी,
तपोभूमि हर ग्राम है।
हर बाला देवी की प्रतिमा,
बच्चा-बच्चा राम है ॥
~ स्वर्गीय डॉक्टर हरगोविंद सिंह
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#6
जाग रहे हम वीर जवान
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के बारे में क्या लिखूँ । वो हिन्दी साहित्य के कालजयी रचनाकार हैं जो जितना लिखा सौन्दर्य जितना मोहक है उनकी वीर रस की लिखी हुई कविताएं भी उतनी ही प्रभावी हैं । पढिए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की रचना ( Hindi Poem about India ) – जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
जाग रहे हम वीर जवान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
हम प्रभात की नई किरण हैं, हम दिन के आलोक नवल,
हम नवीन भारत के सैनिक, धीर,वीर,गंभीर, अचल ।
हम प्रहरी उँचे हिमाद्रि के, सुरभि स्वर्ग की लेते हैं ।
हम हैं शान्तिदूत धरणी के, छाँह सभी को देते हैं।
वीर-प्रसू माँ की आँखों के हम नवीन उजियाले हैं
गंगा, यमुना, हिन्द महासागर के हम रखवाले हैं।
तन मन धन तुम पर कुर्बान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
हम सपूत उनके जो नर थे अनल और मधु मिश्रण,
जिसमें नर का तेज प्रखर था, भीतर था नारी का मन !
एक नयन संजीवन जिनका, एक नयन था हालाहल,
जितना कठिन खड्ग था कर में उतना ही अंतर कोमल।
थर-थर तीनों लोक काँपते थे जिनकी ललकारों पर,
स्वर्ग नाचता था रण में जिनकी पवित्र तलवारों पर
हम उन वीरों की सन्तान ,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान !
हम शकारि विक्रमादित्य हैं अरिदल को दलनेवाले,
रण में ज़मीं नहीं, दुश्मन की लाशों पर चलनेंवाले।
हम अर्जुन, हम भीम, शान्ति के लिये जगत में जीते हैं
मगर, शत्रु हठ करे अगर तो, लहू वक्ष का पीते हैं।
हम हैं शिवा-प्रताप रोटियाँ भले घास की खाएंगे,
मगर, किसी ज़ुल्मी के आगे मस्तक नहीं झुकायेंगे।
देंगे जान , नहीं ईमान,
जियो जियो अय हिन्दुस्तान।
जियो, जियो अय देश! कि पहरे पर ही जगे हुए हैं हम।
वन, पर्वत, हर तरफ़ चौकसी में ही लगे हुए हैं हम।
हिन्द-सिन्धु की कसम, कौन इस पर जहाज ला सकता ।
सरहद के भीतर कोई दुश्मन कैसे आ सकता है ?
पर की हम कुछ नहीं चाहते, अपनी किन्तु बचायेंगे,
जिसकी उँगली उठी उसे हम यमपुर को पहुँचायेंगे।
हम प्रहरी यमराज समान
जियो जियो अय हिन्दुस्तान!
~ रामधारी सिंह “दिनकर”
#7
तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।
अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है-
तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।
गंगा, यमुना सरस्वती से सिंचित जो गत-क्लेश है।
सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है।
ज्ञान-रश्मि जिसने बिखेर कर किया विश्व-कल्याण है-
सतत-सत्य-रत, धर्म-प्राण वह अपना भारत देश है।
यहीं मिला आकार ‘ज्ञेय’ को मिली नई सौग़ात है-
इसके ‘दर्शन’ का प्रकाश ही युग के लिए विहान है।
वेदों के मंत्रों से गुंजित स्वर जिसका निर्भ्रांत है।
प्रज्ञा की गरिमा से दीपित जग-जीवन अक्लांत है।
अंधकार में डूबी संसृति को दी जिसने दृष्टि है-
तपोभूमि वह जहाँ कर्म की सरिता बहती शांत है।
इसकी संस्कृति शुभ्र, न आक्षेपों से धूमिल कभी हुई-
अति उदात्त आदर्शों की निधियों से यह धनवान है।।
योग-भोग के बीच बना संतुलन जहाँ निष्काम है।
जिस धरती की आध्यात्मिकता, का शुचि रूप ललाम है।
निस्पृह स्वर गीता-गायक के गूँज रहें अब भी जहाँ-
कोटि-कोटि उस जन्मभूमि को श्रद्धावनत प्रणाम है।
यहाँ नीति-निर्देशक तत्वों की सत्ता महनीय है-
ऋषि-मुनियों का देश अमर यह भारतवर्ष महान है।
क्षमा, दया, धृति के पोषण का इसी भूमि को श्रेय है।
सात्विकता की मूर्ति मनोरम इसकी गाथा गेय है।
बल-विक्रम का सिंधु कि जिसके चरणों पर है लोटता-
स्वर्गादपि गरीयसी जननी अपराजिता अजेय है।
समता, ममता और एकता का पावन उद्गम यह है
देवोपम जन-जन है इसका हर पत्थर भगवान है।
~ रामधारी सिंह दिनकर
#8
पहरुए! सावधान रहना
आज जीत की रात
पहरुए! सावधान रहना
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना
प्रथम चरण है नये स्वर्ग का
है मंज़िल का छोर
इस जन-मंथन से उठ आई
पहली रत्न-हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन-मुक्ता-डोर
क्यों कि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अंबुधि समान रहना।
विषम शृंखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग-बंदिनी हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गयीं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफान, इंदु! तुम
दीप्तिमान रहना।
ऊंची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है
शोषण से है मृत समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रहा नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार,
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए! सावधान रहना।।
~ गिरिजाकुमार माथुर
अपनी देशभक्ति से ओतप्रोत रचना Hindi Poem about India ‘ उठो धरा के अमर सपूतों ‘ के माध्यम से द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी हम सभी देश वासियों को अपनी महान सांस्कृतिक विरासत को संभालने के लिए जगा रहें हैं। वो नए युग में नव निर्माण से देश की कृति पताका को और ऊंचा करने के लिए हम सभी को प्रेरित कर रहें हैं ।
#9
–उठो धरा के अमर सपूतों
उठो धरा के अमर सपूतों- देशभक्ति
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
जन-जन के जीवन में फिर से
नव स्फूर्ति, नव प्राण भरो।
नई प्रात है नई बात है
नया किरन है, ज्योति नई।
नई उमंगें, नई तरंगें
नई आस है, साँस नई।
युग-युग के मुरझे सुमनों में
नई-नई मुस्कान भरो।
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ
नए स्वरों में गाते हैं।
गुन-गुन, गुन-गुन करते भौंरें
मस्त उधर मँडराते हैं।
नवयुग की नूतन वीणा में
नया राग, नव गान भरो।
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
कली-कली खिल रही इधर
वह फूल-फूल मुस्काया है।
धरती माँ की आज हो रही
नई सुनहरी काया है।
नूतन मंगलमय ध्वनियों से
गुँजित जग-उद्यान करो।
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
सरस्वती का पावन मंदिर
शुभ संपत्ति तुम्हारी है।
तुममें से हर बालक इसका
रक्षक और पुजारी है।
शत-शत दीपक जला ज्ञान के
नवयुग का आह्वान करो।
उठो, धरा के अमर सपूतों।
पुन: नया निर्माण करो।
~ द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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हमें पूरा विश्वास है कि भारत भूमि की प्रशंसा में महान कवियों द्वारा लिखी गयी भारत देश पर कुछ प्रमुख कविताएं ( Hindi poem about India ) आपको निश्चय ही प्रिय लगी होंगी । कौन सी कविता आपको सबसे अच्छी लगी नीचे कमेन्ट बॉक्स में जरूर लिखा कर बताइए ।
इस देशभक्ति पूर्ण कविता संग्रह-poem about india को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल्स पर शेयर करके हिन्दी की उत्कृष्ट रचनाओं को जन-जन तक पहुंचा कर हिन्दी के विकास और देशप्रेम की भावना के संचार में अपना अमूल्य सहयोग दीजिए ।
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