भारतीय दर्शन में तो परोपकार की बड़ी महिमा बताई गई है । दूसरे शब्दों में कहें तो परोपकार को धर्म और पुण्य का पर्याय माना गया है। महर्षि व्यास ने साधारण मानव के लिए धर्म की व्याख्या करते हुए कहा है –परोपकाराय पुनयाय पापाय पर पीडनम ।
आज इस कहानी-परोपकार का फल में आपको कहानी के माध्यम से परोपकार की महिमा और महत्व को बताने की चेष्टा हम कर रहें हैं । इस पर आपकी प्रतिक्रियाओं का हमें कमेन्ट बॉक्स में इंतजार रहेगा ।
वैसे तो पूरी मानवता के लिखित इतिहास में दमन और अत्याचार एक अभिशप्त परंतु अनिवार्य अध्याय के रूप में सदा सर्वदा विद्यमान रहा है । इसी अत्याचार के कुछ काले धब्बे हमारी सभ्यता के दामन पर भी हैं, लेकिन पश्चिमी जगत के देशों ने इसको अगले स्तर पर जिया है ।
बात उन दिनों की है जब रोम में दासप्रथा थी और दासों के साथ तमाम अमानवीय व्यवहार किए जाते थे । उन्हें किसी भी तरह से आदमी माना ही नहीं जाता था । अधिकांश दासों को जिंदा रहने के लिए खाना दिया जाता था और जानवरों से भी अधिक काम लिया जाता था ।
अपने मालिक के दमन से तंग आकर एन्ड्रोक्लीज़ नामक दास एक रात मौका पाते ही भाग निकला । भागते-भागते दूर कहीं जंगलों में निकल गया , जब भागते भागते बेदम हो गया तो एक पेड़ के नीचे बैठ गया । लेकिन थोड़ी देर बाद उसके होश आते ही उड़ गए यह देखकर कि जंगल में जिस पेड़ के पास वह बैठा है उसकी तरफ एक शेर धीरे-धीरे बढ़ता चला आ रहा है ।
एन्ड्रोक्लीज़ यह यह सोचने लगा कि अपने निर्दय मालिक से तो वह बच गया लेकिन इस हिंसक शेर से बचना नामुमकिन है । शेर धीरे-धीरे उसके पास आया और एन्ड्रोक्लीज़ के सामने अपना पंजा रख दिया । एन्ड्रोक्लीज़ ने देखा कि शेर के पंजे में एक लंबा सा कांटा धंसा हुआ है और बहुत सारा खून भी निकल रहा है ।
एन्ड्रोक्लीज़ ने अपने चाकू से शेर के पंजे का कांटा निकल दिया । यह बात यही समाप्त हो जाती है ।
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि दासों के साथ अत्यंत क्रूर व्यवहार किया जाता था । एन्ड्रोक्लीज़ को गिरफ्तार कर लिया गया और भागने के जुर्म में उसे प्राणदंड दिया गया । प्राणदंड में भी कुछ नया तरीका आजमाया गया । उसे प्राणदंड देने के लिए जंगल से एक शेर को पकड़ कर लाया गया जिसे कुछ दिनों तक पिंजरे में कैद रखा गया ।
नियत समय जब उसे शेर का निवाला बना कर प्राणदंड देना था उस समय चलन के मुताबिक काफी संख्या में नगर के लोग उस दृश्य को देखने उपस्थित हुए थे ।
एन्ड्रोक्लीज़ को पिंजरे में धकेल दिया गया , शेर ने जोर की दहाड़ मारी और झपट पड़ा अपने निवाले की ओर जो उसके पास भेजा गया था !
लेकिन लोगों के आश्चर्य की सीमा नहीं रही यह देख कर कि उसको झपट कर सुरधाम पहुचाने के लिए उद्यत शेर जैसे ही एन्ड्रोक्लीज़ के पास आया वह एन्ड्रोक्लीज़ को खाने की बजाय उसके पास पुंछ हिलाते हुए उसके चारों तरफ गुर-गुर करता हुआ घूमने लगा । जैसे कोई अपना सा मिल गया हो !
शेर की इस प्रतिक्रिया से खुद एन्ड्रोक्लीज़ भी हैरान हो उठा लेकिन जब उसने गौर से देखा तो पाया- यह वही शेर है, जिसके पाव का कांटा उसने निकाला था।
न्यायाधीश ने भी एन्ड्रोक्लीज़ को भाग्यवान मानते हुए उसे माफी दे दी, सदा के लिए दोषमुक्त कर दिया ।
है न ये बड़े ही आश्चर्य की बात ! मित्र जरूरतमंदों की भलाई करने का फल जरूर मिलता है, परोपकार कभी भी निष्फल नहीं जाता !
जैसे कि हमारे यहाँ घर के बड़े बुजुर्ग कहते हैं नेकी कर दरिया में डाल । नेकी यानि परोपकार का फल तुरंत मिले यह जरूरी नहीं लेकिन मिलता जरूर है ।
इस कहानी के माध्यम से मैं भी अंत में आपसे यही कहना चाह रहा हूँ कि यथासंभव अपने आसपास लोगों की मदद करते रहिए । किसी को दिखाने या कुछ पाने की उम्मीद में नहीं, सिर्फ अपने मन की संतुष्टि के लिए । परोपकार का फल आपको मिल के रहेगा शायद अप्रत्याशित और आपकी उम्मीद से भी अधिक !
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