पण्डितोपि वर शत्रुर्न मूर्खों हितकारकः
दोस्तों पंचतंत्र की कहानियों की श्रृंखला में पहली कहानी मूर्ख बन्दर (Foolish Monkey and the King),जो आज मैं लेकर आया हूं उसका उल्लेख पंचतंत्र के पहले भाग की अंतिम कहानी के रूप में है । पंचतंत्र भारतीय संस्कृति की ओर से विश्व को मिला वह उपहार है, जो गूढ़ ज्ञान को भी सहजता से आत्मसात करने की कला सिखाता है ।
ज्ञान के इस नायाब सूत्र को दुनिया के विभिन्न भाषाओं में अनुदित किया गया है। शायद हम में से भी कई लोग जब ऐसी कहानियां अपने बचपन में पढ़े-सुने होंगे, तो हमें यह नहीं पता होगा कि इस कहानी का मूल आधार विष्णु शर्मा द्वारा लिखा गया पंचतंत्र है ।
पंचतंत्र के द्वारा विष्णु शर्मा ने राजा के दो पुत्रों को जिन्होंने पारंपरिक शिक्षा लेने से इनकार कर दिया था,को सामान्य व्यवहारिक ज्ञान में पारंगत कर दिया था ।
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मूर्ख बन्दर की कहानी
किसी नगर में एक राजा रहता था. जिसे पशु पक्षियों से बहुत लगाव था । उसने अपने सेवक के रूप में एक बंदर की नियुक्ति भी कर रखी थी । वह बंदर राजा का परम विश्वासपात्र भक्त था । राजा के निवास स्थान में एवं राजमहल के अंतःपुर में, जहां बहुत सीमित लोगों को जाने की अनुमति थी उस जगह भी यह बंदर बिना किसी रोक टोक जा सकता था ।
जब राजा सो जाते थे तो यह बंदर उन्हें पंखे की हवा किया करता था । गर्मी के मौसम में एक बार राजा ऐसे ही सोए हुए थे और बंदर उन पर पंखा झल रहा था। तभी बंदर ने देखा- कि एक मक्खी राजा के शरीर पर आकर बैठ गई है ।
बंदर ने मक्खी को पंखे से भगाया, मक्खी एक जगह से जाकर दूसरी जगह बैठ गई, फिर दूसरी से तीसरी जगह.. इस प्रकार बंदर पंखा झलने के साथ-साथ मक्खी को भगाने का प्रयास करता रहा और मक्खी राजा के शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर जहां पंखे की हवा नहीं पहुंच पाती थी जाकर बैठती रही ।
बार-बार ऐसा ऐसा करने से बंदर को गुस्सा आ गया । बंदर ने देखा बगल में राजा कि म्यान लटकी हुई है। बंदर ने म्यान से तलवार निकाली और जुट गया मक्खी को भगाने में ! इस बीच मक्खी राजा की छाती पर जा बैठी । गुस्से में मूर्ख बन्दर ने मक्खी को भगाने के लिए जोर से तलवार भांज दी , मक्खी तो उड़ गई लेकिन तलवार के इस चोट से राजाजी के दो टुकड़े हो गए !
इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें अल्प ज्ञानियों से तथा मूर्खों से बहुत गहरी दोस्ती करने से बचना चाहिए । इन्हें अपनी निजी ज़िंदगी में बहुत अहम् स्थान देने से बचना चाहिए, क्योकि कई बार अतिसक्रियता की वजह से ये हमें हानि भी पंहुचा सकतें हैं । इसलिए कहा गया है मूर्ख मित्र से विद्वान शत्रु अच्छा …!
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सुनिए पंचतंत्र की ही मिलते जुलते कहानी को
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Very nice story…