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महाराणा प्रताप की जीवनी |Maharana Pratap Bio in Hindi

Written by-VicharKranti Editorial Team

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Maharana Pratap in Hindi : सदियां बीत गई लेकिन महाराणा प्रताप  मेवाड़ राजस्थान सहित पूरे भारत में एक महान मातृभूमि प्रेमी योद्धा और राष्ट्रनायक के रूप में लोगों की स्मृतियों में बसे हुए हैं ।  हल्दीघाटी के युद्ध में राणा की वीरता ने इतिहास में वो स्थान दर्ज कर लिया जिसका दूसरा प्रमाण विरले ही मिले । 

अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले महाराणा प्रताप का पराक्रम आज भी लोकसंगीत लोककहानियों और किंवदंतियों में जीवित हैं । 

नीले घोड़े रा असवार,
म्हारा मेवाड़ी सरदार,
राणा सुणता ही जाजो जी,
मेवाड़ी राणा सुणता ही जाजो जी ।

महाराणा प्रताप  इस देश के करोड़ों करोड़ लोगों के लिए वंदनीय व्यक्तित्व हैं । उनके महान कृतित्व को श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत है यह आर्टिकल …  जिसमें हमने उनके जीवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को शामिल करते हुए उनकी संक्षिप्त जीवनी लिखने की कोशिश की है । 

महाराणा प्रताप का प्रारम्भिक जीवन

महाराणा प्रताप का जन्म  9 मई 1540 ईसवी को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था । उनके पिता का नाम उदय सिंह और माता का नाम जयवंताबाई  था । 

महाराणा प्रताप उदयपुर मेवाड़ के  सिसोदिया राजपूत वंश के शासक थे । वैसे तो इस राजवंश  में एक से बढ़कर एक योद्धाओं ने जन्म लिया लेकिन महाराणा प्रताप की वीरता और प्रजा प्रेम ने इस वंश की कीर्ति को सदा सर्वदा के लिए अमर कर दिया । महाराणा प्रताप का जन्म उसी राजपरिवार में हुआ था जिसमें महाप्रतापी बप्पा रावल, राणा सांगा और राणा कुंभा जैसे महान पराक्रमी वीरों ने जन्म लिया था । महाराणा प्रताप की कुल 11 पत्नियां थी जिनसे उन्हे 17 बेटे और 5 बेटियां थी । 

अकबर ने भारत के लगभग सारे राज्य को अपने कब्जे में कर लिया था , लेकिन वह महाराणा प्रताप के जीवित रहते कभी भी मेवाड़ पर अपना आधिपत्य स्थापित नहीं कर सका । 

जब भारत के सभी राजे -महाराजे मुगलों की अधीनता स्वीकार करते जा रहे थे और मुगलों की गुलामी में ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहे थे । उस समय महाराणा प्रताप (maharana pratap) ने अकबर के विशाल साम्राज्य  और मजबूत सेना  के सामने एक मजबूत  चट्टान की तरह खड़े होकर मेवाड़ की स्वतंत्रता और शान को  अक्षुण्ण बनाए रखा । सालों-साल जंगलों में भटकते रहे बीहड़ों की खाक छानते रहे लेकिन अपने सम्मान से समझौता नहीं किया । 

अकबर ने उनके पास एक नहीं लगभग 7 से 8 बार संधि का प्रस्ताव भेजा था लेकिन उन्हें पिंजरे में बंद शेर बनना किसी कीमत पर स्वीकार नहीं था और ताउम्र अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए वह अकबर का सामना करते रहे ।

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महाराणा प्रताप का मुगलों के साथ महत्वपूर्ण हल्दीघाटी का युद्ध ।

महाराणा प्रताप की कथा में आगे पढिए प्रसिद्ध हल्दीघाटी के बारे में । 19 जून 1576 ईसवी को मेवाड़ और मुगलों के बीच  हुए हल्दीघाटी के युद्ध का इतिहास में बहुत चर्चित युद्ध है । विशाल सेना के साथ मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह और आसफ खां ने किया । वही अपने अपनी मातृभूमि मेवाड़ का नेतृत्व महाराणा प्रताप स्वयं कर रहे थे । 

इस युद्ध में किसकी तरफ से कितने सैनिक थे इसका कोई स्पष्ट विवरण उपलब्ध नहीं है ।  कुछ जगहों पर उल्लेख मिलता है कि महाराणा प्रताप की तरफ से लगभग 17000 सैनिक लड़ रहे थे जबकि अकबर की सेना लगभग 80000 सैनिकों की थी । वही राणा प्रताप के सैनिकों में कुल 3000 घुड़सवार और 400 भील धनुर्धारियों का जिक्र भी मिलता है । 

वहीं कुछ अन्य स्रोतों के अनुसार मानसिंह के तरफ से कुल 10000 घुड़सवार और भारी संख्या में पैदल सैनिक थे जबकि महाराणा प्रताप की ओर से केवल 3000 घुड़सवार और  बहुत सीमित संख्या में पैदल सैनिक थे। 

इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से कुल 1600 के आसपास लोग मारे गए थे जबकि मुगल सेना ने लगभग 7000 सैनिकों को खो दिया । लगभग 7000 मुगल सैनिक मारे गए और कई सैनिक घायल भी हुए । 

हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप  खुद भी घायल हो गए थे लेकिन मैदान छोड़ने को तैयार नहीं थे । फिर उनके विश्वस्त लोगों ने जब उन्हें समझाया कि यदि आप जीवित बचेंगे तो पुनः  सेना संगठित करके लड़ सकते हैं आपका जीवित रहना जरूरी है तब जाकर कहीं उन्होंने रणभूमि से निकलने की सोची । 

हल्दी घाट के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप की स्थिति 

ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप की स्थिति काफी खराब हो गई थी और उन्हें जंगल में रहना पड़ रहा था । वह जंगल में बहुत मुश्किल से अपनी जिंदगी को बसर कर रहें थे ।

 लेकिन बावजूद इसके वह किसी भी कीमत पर हार मानने को तैयार नहीं थे । इस दौरान भी उन्हें कई बार अकबर से संधि करने के मौके मिले । उनके कई गुप्तचर से यह संदेश भी प्राप्त हुआ कि अकबर बिना किसी युद्ध के उनसे संधि करना चाहता है और उन्हें मुगल दरबार में विशेष सम्मान भी देना चाहता है बस वह मेवाड़ पर अकबर की अधीनता को स्वीकार कर लें । 

लेकिन महाराणा प्रताप (maharana pratap hindi) जिस मिट्टी के बने थे उसमें केवल संघर्ष और स्वाभिमान की महक  थी समझौतों का गुंजाइश नहीं था ।  सालों साल बीहड़ों  और जंगलों में भटकते रहे परंतु अपने सीमित संसाधन और असीमित जज्बे से मुगलों के खिलाफ छापामार युद्ध को जारी रखा । 

महाराणा प्रताप की सफलता और अवसान 

maharana pratap की hindi जीवनी में आगे पढिए उनके सफलताओं के बारे में – महाराणा प्रताप के जिंदगी का सबसे स्वर्णिम काल 1579 से लेकर 1585 तक माना जाता है । यह वही समय है जब अकबर के अधिकार क्षेत्र में पड़ने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश गुजरात बिहार और बंगाल जैसे क्षेत्रों में विद्रोह होने लगा था और महाराणा प्रताप भी एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे । 

अकबर को मजबूर होकर महाराणा प्रताप की ओर से ध्यान हटाकर बिहार बंगाल और गुजरात जैसे प्रदेशों में अपने अपनी सत्ता को कायम रखने के लिए संघर्ष करना पड़ा । जैसे ही मेवाड़ पर मुगल सेना का दबाव कम हुआ,महाराणा प्रताप की सेना ने धीरे-धीरे पूरे मेवाड़ को वापस जीत लिया ।  

इस तरह लंबी अवधि के बाद मेवाड़ को पूरी तरीके से मुगलों की अधीनता से आजाद करवाने में महाराणा प्रताप सफल हुए । मेवाड़ पे कब्जा करने के लिए अकबर ने फिर 12 वर्ष तक संघर्ष किया लेकिन महाराणा प्रताप के जीवित रहते हुए वह पुनः इसे अपने अधिकार में नहीं कर सका  ।

बहुत से लोग तो ऐसा मानते है कि अकबर महाराणा प्रताप के भय से ही अपनी राजधानी आगरा से बदलकर लाहौर ले गया  और बहुत हद तक ये बात सही भी साबित होती है । 

क्योंकि जब तक महाराणा प्रताप मेवाड़ की मुक्ति के लिए मुगलों से संघर्ष करते रहे   या जब तक महाराणा प्रताप जीवित थे अकबर की राजधानी लाहौर ही रही । महाराणा प्रताप के  निधन के बाद फिर से अकबर ने राजधानी लाहौर से आगरा स्थानांतरित कर दिया । तो इस बात से यह सही साबित होता है , कि महाराणा प्रताप के भय से ही  अकबर को  अपनी राजधानी तक बदलना पड़ गया था ।

महाराणा प्रताप  का घोड़ा चेतक 

महाराणा प्रताप के जीवन परिचय (Maharana Pratap Biography in Hindi) में चेतक का उल्लेख नहीं हो ऐसा भला कैसे होगा ? वैसे तो महाराणा प्रताप देश के नायक हैं उनसे जुड़ी बहुत सारी बातें आज सोशल मीडिया के दौर में और भी उभरकर सामने आ रही है।  लेकिन महाराणा प्रताप की तरह ही उनका घोड़ा चेतक भी इतिहास में अमर हो गया ।  हल्दीघाटी के युद्ध में जब महाराणा प्रताप दुश्मनों के बीच घिर गए थे तो विषम परिस्थिति से उनको बचाने में चेतक ने अपनी  जान को दांव पर लगा दिया था। 

हल्दीघाटी से निकलते समय एक 26 फीट के नाले को पार करते समय चेतक घायल हो गया और फिर उसकी मृत्यु हो गयी । चेतक की तरह ही उनका एक प्रसिद्ध हाथी था जिसका नाम था-रामप्रसाद । रामप्रसाद हल्दीघाटी की लड़ाई में घायल होकर मुग़ल सैनिकों द्वारा कैद कर लिया गया । ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप से दूर होकर उस हाथी ने 30 दिन तक बिना कुछ खाए पिए अपना देह त्याग दिया । 

महाराणा प्रताप का  निधन 

महाराणा प्रताप का निधन मात्र 57 साल की उम्र में 1597 ईसवी को हो गया । ताउम्र महाराणा प्रताप संघर्ष करते रहे और इन्हीं संघर्षों के परिणामस्वरूप उन्होंने दोबारा सफलतापूर्वक मेवाड़ पर अपना आधिपत्य स्थापित किया ।  लेकिन मेवाड़ विजय के मात्र 11 वर्ष बाद 19 जनवरी 1597 को उनकी मृत्यु हो गई । 

सच में ऐसा शूरवीर इतिहास में बहुत कम पैदा होते हैं । महाराणा प्रताप एक महान योद्धा और एक महान शासक के साथ भारतीय इतिहास के वो प्रकाश पुंज हैं जिनसे आने वाली पीढ़ियाँ अनवरत और अनंत काल तक प्रेरणा पाती रहेंगी । देश एक महान सपूत को हमारा शत शत नमन है । 

महाराणा प्रताप से संबंधित कुछ विशिष्ट बातें-

  • महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को  कुंभलगढ़ में हुआ था । 
  • महाराणा प्रताप ने कुल 11 विवाह किए थे जिनसे उन्हें 17 बेटें और 5 बेटियां थी । उस जमाने में राजाओं को राजनीतिक कारणों से भी विवाह करना पड़ता था ।
  • महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी 1597 को हुई थी । 
  • महाराणा प्रताप के द्वारा युद्ध में पहना जाने वाले कवच  का वजन 72 किलो का था और उनके द्वारा उपयोग किया जाने वाला भाले का वजन 80 किलो था ।
  • विभिन्न इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताप द्वारा उपयोग किए जाने वाले भाले कवच और दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलोग्राम  हुआ करता था । 

हमें पूरा विश्वास है कि हमारा यह लेख जिसमें हमने महाराणा प्रताप की संक्षिप्त जीवनी (Maharana Pratap Bio in Hindi) लिखने की कोशिश की है – आपको पसंद आया होगा ,त्रुटि अथवा किसी भी अन्य प्रकार की टिप्पणी नीचे कमेंट बॉक्स में सादर आमंत्रित हैं …लिख कर जरूर भेजें ! इस लेख को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल्स पर शेयर भी करे क्योंकि Sharing is Caring !

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