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जीवन क्या है-what is life in hindi

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इस लेख (what is life in hindi) में हमने अपनी समझ, स्वाध्याय अध्ययन और अनुभव के आधार पर जीवन क्या है के विषय में बात करने की कोशिश की है । इस सृष्टि के कुछ अन्य प्रश्नों की भांति इस प्रश्न का उत्तर भी विज्ञान के पल्ले कम से कम अब तक तो नहीं है । विज्ञान से इतर आध्यात्म की चिंतन धारा में इस रहस्यमयी प्रश्न के उत्तर अधिक समीचीन लगते हैं ।

प्रस्तुत लेख में हमने जीवन के मानी और जीवन के उदेश्य को जहां भारतीय दृष्टिकोण से समझने की कोशिश की है, वहीं दुनियां के कुछ महत्वपूर्ण और मान्य लोगों के द्वारा रखे गए जीवन के प्रति विचारों को भी हमने शामिल किया है ।

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भूमिका  

जीवन क्या है ? यह प्रश्न दुनिया के सबसे कठिन परंतु सर्वाधिक पूछे जाने वाले प्रश्नों में से एक है । चाहे पुराने जीवनदर्शी लोग हों या आध्यात्मिक गुरु या आधुनिक युग के तथाकथित मोटिवेशनल और आध्यात्मिक  गुरु सभी के सामने यह- एक यक्ष प्रश्न की भांति उपस्थित होता रहा है ।

ऐसा नहीं है कि लोगों ने इन प्रश्नों से बचने की कोशिश की हो और उत्तर को किसी और के लिए, किसी दूसरे के भरोसे छोड़ दिया हो । जी नहीं ! अपने समय  के सभी धुरंधरों ने अपने अध्ययन अनुभव और जीवन की समझ के आधार पर इन प्रश्नों को उतरित  करने की कोशिश है ।

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लेकिन इस प्रश्न में विस्तार और गहराई इतनी है कि उत्तर की तलाश में भटकने वालों के लिए यह कल जितना प्रासंगिक था आज भी उतना ही प्रासंगिक है और उतना ही अनुत्तरित भी… !

इस लेख what is life in hindi को आप अपने आशाओं के अनुरूप कहां  पाते हैं ? इस पर आपके विचारों की हमें प्रतीक्षा रहेगी । लेकिन इस लेख मात्र को पढ़ लेने से आपकी सभी जिज्ञासाओं का शमन हो जाएगा और आपके  कोई प्रश्न अनुतरित नहीं रहेंगे ऐसी मेरी कोई कपोल कल्पना नहीं है !

मैं भी आपकी तरह इन प्रश्नों के महासागर में डूबता -उतराता रहता हूं । कई बार जो विचार और विवेचना मुझे समीचीन नहीं लगते उन गूढ़  प्रश्नों पर कुछ-कुछ लिखने की इच्छा होती है, तो डरते-डरते ही सही लेकिन अपनी लेखनी से अपने आधे -अधूरे ज्ञान को कोरे कागज पर एक नई शक्ल देने की कोशिश करता हूं । यह प्रयास भी उसी कसमसाहट का प्रतिफल है ।

आप कह सकते हैं कि जब अधूरी ही है तो उसे अपने पास ही रखना चाहिए । लेकिन मेरे प्रिय मित्र अपूर्णता ही तो जीवन का प्रतीक है । हमारी संस्कृति और सोच के मुताबिक पूर्णता  तो सिर्फ  परमात्मा / परमानंद प्रभु में ही है, बाकी पूर्णता की प्राप्ति ही इस  जगत में जर और  जंगम सभी का अभीष्ट लक्ष्य है ।

खैर जीवन क्या है के विषय पर लिखी यह लेख आपके इस गूढ़ प्रश्न के कुछ भाग को जहां उतरित करेगी, वहीं  हम आपके प्रश्न में कुछ नए आयाम भी जोड़ने में सफल होंगे ऐसा मानने में मुझे कोई दुविधा नहीं है । शेष  आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा तो हमें है ही …!

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लेकिन कुछ प्रश्नों के उत्तर सिर्फ  विज्ञान से मिले और लोग संतुष्ट हो जाए… ऐसा नहीं है ! इस दुनिया के कई प्रश्न ऐसे हैं जिसका उत्तर विज्ञान के पास अभी नहीं है लेकिन वह घटनाएं और तथ्य बिल्कुल सत्य हैं। ऐसे अनगिनत घटनाओं को किसी विशेष संदर्भ की जरूरत नहीं है ।

जीवन के बारे में दुनिया के प्रसिद्ध लोगों की धारणा 

दुनिया के प्रसिद्ध लोगों ने जीवन के बारे में अपने भिन्न-भिन्न  विचार रखे हैं । विलियम शेक्सपियर ने जीवन के प्रति अपने विचार रखते हुए कहा है -कि जीवन एक रंगमंच है और हम सब  उस रंगमंच के पात्र  । निहितार्थ यही है कि हर किरदार, हरेक पात्र जो इस  रंगमंच पर अलग-अलग  भूमिकाओं में है, को  समय की समाप्ति के पश्चात इस रंगमंच से दूर हो जाना है ।

अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है –

Life is just like a game first you have to learn the rules of the game and then play it better than anyone else – albert Einstein 

The way to get started is to quit talking and begin doing- walt Disney 

Life is what happens when you are busy making other plans- helen Keller 

In the end it’s not the years in your life that count it’s life in your years- Abraham lincoln 

The propose you are life is to be happy- dalai Lama 

Only a life lived for others is a life worthwhile 

लेकिन यदि जीवन (life in hindi) को हम सिर्फ  भौतिकीय उपलब्धियों और साँचो में ढाल कर समझने की कोशिश करेंगे , तो इसमें क्षणिक असफलताओं या मनोनकुल  परिणाम से वंचित होने मात्र से भी कुंठा और निराशा  प्रश्नय  ले सकती है। ऐसी मनोभाव दीर्घकाल में जीवन को अधोगति की ओर ले जा सकते हैं ।

जब हम जीवन को एक वृहत संदर्भ और उद्देश्य में  देखने की कोशिश  करेंगे तो क्षणिक  वंचनाओ से हम प्रभावित नहीं होंगे । इसलिए जीवन क्या है के लिए मुझे सर्वाधिक प्रासंगिक उत्तर भारतीय ऋषि परंपरा और उपनिषदों से ही मिलती हुई दिखाई पड़ती है ।

भारतीय दर्शन और जीवन 

भारतीय संस्कृति में पूर्वजन्म की सर्वविदित मान्यता है । हम मानव जन्म को अकारण या अहैतुक नहीं मानते । हमारी मान्यताओं में हर जीव और व्यक्ति के जन्म का एक उद्देश्य होता है । इसी चिंतन धारा में प्रत्येक मनुष्य के जन्म का लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है । अतः भारतीय दर्शन के अनुसार जीवन प्रत्येक प्राणी को प्राप्त अवसर है जहां वह अपने परम लक्ष्य को प्राप्त हो सकता है ।

गोस्वामी तुलसीदास जी अपने दोहे के माध्यम से कहते हैं –

बड़े भाग मानुष तन पावा ।
सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा ॥
साधन् धाम मोक्ष कर द्वारा ।
पाई न जेहिं परलोक सँवारा ॥

भारतीय आध्यात्मिक चिंतन में मानव जन्म से ही तीन प्रकार के ऋणों के प्रति उत्तरदायी माना जाता है और जीवन की सदगति तथा अपने परम लक्ष्य को वह अपने जीवन काल में इन ऋणों  से मुक्त होकर ही प्राप्त कर सकता है । जिसकी प्राप्ति हेतु एकमात्र अवलंबन है पुरुषार्थ…। 

तो इस तरह भारतीय मान्यताओं में जीवन का मूल उद्देश्य(main purpose of life in hindi) है पुरुषार्थ करते हुए जीवन जीना । विभिन्न विवेचनाओं के आधार पर निर्धारित पुरुषार्थ की संख्या है चार , जिसे हम पुरुषार्थ चतुष्टय के नाम से जानते हैं । इस पुरुषार्थ चतुष्टय के अंग हैं -धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष ।

ये  पुरुषार्थ चतुष्टय किसी भी व्यक्ति के सदाचारी सामाजिक जीवन यापन की गति को सुनिश्चित करने की भावना को अपने में समेटे हुए हैं। या कहें कि कुशल व्यक्तिगत जीवन ही इस पुरुषार्थ चतुष्टय का उद्देश्य है, तो कहीं से गलत नहीं होगा ।

क्या हैं चार पुरुषार्थ 

पहला पुरुषार्थ है – धर्म । एक व्यक्ति को निर्देशित किया गया है कि  वह धार्मिक जीवन जिये । धर्म की परिभाषा बड़ी व्यापक हो सकती है लेकिन एक सामान्य मानव भी इसे समझे  और फिर तदनुकूल आचरण करें, इसके लिए यम और नियम बनाए गए । एक पूर्ण धार्मिक जीवन जीकर मनुष्य जहां ऋषि ऋण से मुक्ति का प्रयास करता है, वहीं उसका पूरा जीवन अनुशासित होकर दूसरे के लिए भी अनुकरणीय हो जाता है ।

फिर अगला पुरुषार्थ है -अर्थ अर्थात धन ! सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में धन की भी महिमा है । इसीलिए अर्थ के उपार्जन को भी एक पुरुषार्थ माना गया है । लेकिन अर्थ  से पहले भी  धर्म को रखा गया है। अतएव धन तो कमाना है, लेकिन नीति नियम और नैतिक मूल्यों के साथ । इसके बिना अर्जित धन की महत्ता नहीं मानी गयी है ।

अगला पुरुषार्थ है काम- इसे कई अर्थों में व्याख्यायित किया जा सकता है, लेकिन काम यानी कि जीवन-यापन हेतु किए जाने वाले गतिविधियों का समुच्चय । यह जहां मनुष्य के पितृ ऋण से मुक्ति का उपाय है वहीं कैसे हमारी परंपरा और संस्कृति आगे बढ़े इसमें इसकी चिंता भी है ! किसी भी कार्य को करते हुए उसमें आनंद की अनुभूति ही काम है ।

पुरुषार्थ का चौथा और अंतिम अंग है – मोक्ष(Enlightenment) । वस्तुतः  मोक्ष ही व्यक्ति के जीवन का परम ध्येय(Ultimate aim of life in hindi ) माना गया है । मोक्ष यानी कि जीवन मृत्यु की गति से मुक्त हो जाना । अपूर्णता से मुक्ति और पूर्णता की प्राप्ति ही मोक्ष है | इसके लिए एक जीवन पर्याप्त होगा या फिर कई जन्म लेने होंगे ,यह सब मनुष्य के जीवन कार्यों पर निर्भर करता है ।

जीवन के प्रति हमारे विचार 

मित्र यदि आप धार्मिक व्यक्ति हैं तो आप हमारे द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त भारतीय संदर्भों से सहमत होंगे और फिर आपके लिए जीवन लक्ष्य एकदम स्पष्ट है । आप उसी अनुसार कार्य कर रहे होंगे । लेकिन यदि आप धर्म में विश्वास नहीं रखते है ,तो भी इस जन्म और मृत्यु के बीच का जो कालखंड है, जिसे हम जीवनकाल कहते हैं को एक खेल और नाटक से अधिक एक यात्रा तो ही मान सकते हैं ।

ऐसे में यह अपरिहार्य यात्रा आनंदमय भी बने , इसकी चिंता तो हमें ही करनी होगी । इस यात्रा के पड़ावों  से गुजरना तो निर्धारित है । हमारा गंतव्य और मंजिल तय है, लेकिन उस तक पहुंचना कैसे हैं यह तो हम पर ही निर्भर है । ऐसे में हमारे विचार और हमारी दृष्टि का  हमारे जीवन पर अत्यंत व्यापक प्रभाव पड़ना तय है ।  कहावत है कि- यथा दृष्टि तथा सृष्टि ! इस दुनिया और हमारे चारों ओर जो भी हम देखते हैं – अच्छा या बुरा ! वह एक तरह से हमारी दृष्टि का ही प्रतिफल है । 

कई बार नजारों को बदलने के लिए नजरियों को  बदलना पड़ता है । तो आपके एक मित्र और शुभचिंतक के नाते आपसे मेरा अनुरोध रहेगा कि अपने जीवन यात्रा को आनंदमय और उत्कृष्ट बनाने के लिए कुछ सकारात्मक जीवन लक्ष्य निर्धारित कीजिए । ऐसा लक्ष्य जिसकी पूर्णता आपके लिए आनंद का कारण बने और जगत के लिए एक उदाहरण…! 

जुटिए इस दुनिया को थोड़ा और सुंदर बनाने के अभियान में … शेष आपके उत्तर की  प्रतीक्षा  में आपका मित्र… 


*इति *

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आर के चौधरी
आर के चौधरीhttps://vicharkranti.com/category/motivation/
लिखने का शौक है और पढ़ने का जूनून । जिंदगी की भागमभाग में किताबों से अपनी यारी है ... जब भी कुछ अच्छा पढ़ता हूँ या सुनता हूँ लगता है किसी और से बाँट लूँ । फुरसत के लम्हों में बस इसी मोह के मातहत मेरे लिए कलम उठाना लाचारी है । मेरी लेखनी आपकी सफलता का संबल बने, तो फिर - इससे अधिक अपनी जिंदगी में मुझे क्या चाहिए !!!

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