हिंदी कहानी -क्रोध
एक गांव में शांति नाम की एक महिला रहती थी, वह स्वभाव से अत्यंत क्रोधी थी। साधारण सी बात पर भी उसे बहुत गुस्सा आता था, और वह गुस्से में छोटा-बड़ा, अपना-पराया कुछ नहीं समझती थी। उस समय उसके जी में जो कुछ भी आता ,कह देती। जिससे उसके परिजन तो परेशान थे’ ही ,साथ में शांति खुद भी परेशान रहती थी, और अपने किए पर बहुत पछताती थी ।
संयोगवश एक दिन उस गांव में एक संत पधारे । यह समाचार शांति तक पहुंच गया…। शांति, संत महाराज से मिलने चल दी । वहां पहुंचकर शांति ने संत महाराज को नमस्कार किया और बताया कि ” महाराज मुझे बेवजह बहुत क्रोध आता है । जिससे मेरे अपने तो मुझसे दूर हो ही गए हैं ;साथ में नगरवासी भी दूर हो गए । इतना होने के बाद भी मैं अपने आप को नहीं सुधार पाती, कृपा करके आप ही मुझे कोई रास्ता बताइए । “
शांति की बातों को सुनते हुए संत ने अपने झोली से 1 शीशी निकाला, और उसे शांति को देते हुए कहा – ” जब तुम्हें क्रोध आ जाय तो इसे पी लेना और… तब तक पीते रहना जब तक तुम्हारा क्रोध पूरे पूरा शांत ना हो जाए । लेकिन एक बात का ख्याल रखना की शीशी को मुंह से अलग नहीं करना जब तक तुम्हारा गुस्सा शांत ना हो जाए…! “
शांति ने ऐसा ही किया एक हफ्ते में उसका क्रोध काफी कम हो गया । वह फिर दोबारा संत से जाकर मिली और कहा – ” महाराज क्रोध तो मेरा कुछ कम हुआ लेकिन आप कृपा करके उस दवा का नाम मुझे बता दीजिए। “
शांति की बातों को सुन संत ने हंसते हुए कहा – ” उस शीशी में कोई दवा नहीं सिर्फ पानी था, क्योंकि क्रोध आने पर तुम्हारे मुंह को बंद रखना था । इसलिए मैंने तुम्हें क्रोध आने पर पीने के लिए कहा क्योंकि शीशी जब तक तुम्हारे मुंह में लगी रहेगी; तुम बोल नहीं सकोगी, लोग तुम्हारे कटु वचनों से बच जाएंगे…! तुम भी पश्चाताप की आग में जलने से बच जाओगी । “
कहानी से सीख
अतः जब भी क्रोध आए तो हमें मौन हो जाना चाहिए । क्रोध हर स्थान पर बुरा नहीं होता लेकिन, उसकी अति से बचना चाहिए। इसलिए बात-बात में क्रोध नहीं करना चाहिए बल्कि जहां उसकी वास्तव में जरूरत हो वही करना चाहिए …।
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Very nice
धन्यवाद !
ये कहानी मुझे बहुत ही अच्छा लगा है
आप को यह कहानी अच्छी लगी, यह जान कर हमें अच्छा लगा । सुंदर शब्दों में हमारा उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद !