दुर्गापूजा पर निबंध: शारदीय नवरात्र बहुत समीप है तो हमने सोचा कि क्यों नहीं अपने पाठक मित्रों के लिए शारदीय दुर्गापूजनोत्सव पर एक सरल संक्षिप्त और रोचक निबंध प्रस्तुत करें ? प्रस्तुत है निबंध
भूमिका
दुर्गापूजा भारत के महान त्योहारों में से एक है, जिसे बुराई पर अच्छाई के प्रतीक उत्सव के रूप में मनाया जाता है । भारतीय संस्कृति में शक्ति की अधिष्ठात्री मातृशक्ति को बड़ा ही आदर और सम्मान दिया जाता है ।
नवरात्रि में माँ दुर्गा की आराधना और उपासना से साधक माता से शक्ति की प्राप्ति और उसका लोक कल्याणकारी प्रयोग का आशीर्वाद प्राप्त करतें हैं । यह त्योहार जन मंगल की कामना और सत्य के विजय की भावना से ओतप्रोत है ।
क्यों मानते हैं ?
जब माहिषासुर नामक दैत्य के अनाचारों का सामना करना देवराज इन्द्र के वश में नहीं रह गया तभी ब्रह्मा जी और अन्य देवताओं की संयुक्त शक्ति से माता दुर्गा का प्रादुर्भाव हुआ । माता दुर्गा ने माहिषासुर से युद्ध में उसे पराजित कर देवताओं को त्रास से मुक्ति दिलाई । असत्य और विध्वंशक नकारात्मक शक्तियों पर सृजनात्मक शक्ति के विजय के उपलक्ष्य में दुर्गा पूजा प्राचीन काल से ही मनाया जाता रहा है ।
कैसे मनाते हैं ?
दुर्गापूजा पहले मुख्य रूप से चैत्र नवरात्रि में मनाया जाता था परंच वर्तमान में शारदीय नवरात्र सम्पूर्ण देश और दुनिया में मुख्य रूप से मनाया जाता है।
भारतीय पंचांग के अनुसार हिन्दी महीने आश्विन के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होता है शारदीय नवरात्र । जो दशमी तिथि तक मनाया जाता है । कलश स्थापना और घटस्थापन से शुरू होकर यह त्योहार आश्विन शुक्ल दशमी तिथि को संपन्न होता है । इस बीच प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा अर्चना होती है ।
वैसे तो भारत के सभी राज्यों सहित दुनियां में जहां भी सनातनी हिन्दू रहते हैं , वह दुर्गापूजनोत्सव को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं परंच बंगाल, बिहार, त्रिपुरा, उड़ीसा और सिक्किम में दुर्गापूजा का विशेष महत्व है । इन राज्यों में दुर्गापूजा में लगभग सभी 10 दिन तक अवकाश रहता है ।
उत्सव का स्वरूप
दुर्गापूजा को लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं । कम से कम पांच दिन विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है । इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भजन-संध्या , सामाजिक संदेश से ओतप्रोत नाटक और रामलीला का मंचन होता है ।
गाँव में पूजा स्थल के आसपास विभिन्न प्रकार के नाच-तमाशे का भी आयोजन किया जाता है । मिठाईयों की दुकाने सजी रहतीं हैं । बच्चों और महिलाओं के लिए खिलौने की दुकानें और मीना-बाजार भी लगती हैं। कुल मिला कर वातावरण पूर्ण रूप से उल्लास से भरपूर और भक्तिमय रहता है ।
उपसंहार
दुर्गापूजा मुख्य रूप से शक्ति की आराधना का पर्व है । सम्पूर्ण प्रकृति को संचालित करने वाली शक्ति का अंश हर प्राणी में विद्यमान होता है । आवश्यकता है इन शक्तियों को पहचान कर जागृत करने का और इन शक्तियों का सृजनात्मक उपयोग करने का ताकि हर प्राणी अपने जीवन के उच्चतम उपलब्धि को प्राप्त हो सके ।
मैं भी आप के साथ माता जगत जननी जगदंबा के श्रीचरण कमलों में शीश झुकाते हुए उन से अपनी संतान को सतत स्नेह और आशीर्वाद देने की प्रार्थना करता हूँ ।
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
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