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हिंदी लघु कथा दहेज़

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दहेज

“क्यों रो रहे हो, हुआ क्या है ?”
इतना सुनते ही रसिकलाल  अपने मित्र रूपचंद के कंधों पर सिर रख कर और जोर-जोर से रोने लगा. थोड़ा सम्हलने पर कहने लगा : “रूपचंद अब और हो भी क्या सकता है? होने को बचा भी क्या है? ” तुम तो मेरे सुख-दुख के सहभागी हो. हम दोनों ने किस तरह दिन रात परिश्रम करके अपने घर परिवार को चलाया है, बच्चों को पढ़ाया लिखाया आगे बढ़ाया है.अपने जीवन  सुखों को तिलांजलि देकर बच्चों की सुविधाओं का ध्यान रखा है? ये कोई तुम से छुपा नहीं है .उनको लगी खरोच पर रातें आँखों में जागकर गुजर दिये हैं … क्या क्या नहीं किया हमने उनके लिए …और वो ..? 😳 “






जान कर भी अनजान बनते हुए रूपचंद ने पुछा :- आखिर हो क्या गया ?
रूपचंद मैं कल रात ही शहर से लौट रहा हूं. बदल गया ..सब कुछ बदल गया, दुनिया बदल गई; लोग बदल गए .. हे राम अब हम जिए तो जिए कैसे ??

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और तो और अपना बच्चा भी बदल गया यार …ओहो हो हो … पढ़ लिख कर बहुत बड़ा बन गया अब अपने ही माँ बाप को अनपढ़ नासमझ जाहिल नालायक और पता नहीं क्या-क्या समझने लगा है.शादी के बाद तो उसको न जाने क्या हो गया. अपने आप में गुमसुम सा रहता है. न जाने किस दुख को सहता है हम गर पूछते हैं कुछ उससे  बातें बनाता है पर कुछ नहीं कहता है. जिंदगी इतनी परेशानियां ले आएगी ऐसा तो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था .देख लिया सब देख लिया
जब बेटा काम के सिलसिले में बहार गया बहु ने न जाने कौन सा खुन्नस निकाला .

नए लोगों के तो आँखों का पानी ही सुख गया है जैसे …!

अपमान की आग में जलता हुआ रातोरात घर आ गया ,लेकिन आगे का कुछ समझ नहीं आ रहा है …?
रूपचंद बोलने लगा -“रसिकलाल चिंता मत करो,तुम्हारा बेटा बुरा नहीं है . भगवान इंसान की परीक्षा लेते हैं चरित्र और चिंतन में सुधार लाने के लिए. तुम्हारा बेटा जरूर लौटकर तुम्हारे पास आएगा और बहू को भी सन्मति आएगी…तुम धीर धरो .”

लेकिन, एक बात कहूं तुम्हें यह पुण्यलाभ इसलिए हुआ है कि तुमने दहेज लेने में तो कोई कोताही नहीं की. दहेज में मिली मोटी रकम को अपनी स्टेटस बता कर कब तक गांव में घूम रहे थे शायद अकल ठीक करने के लिए भगवान कुछ कर रहे हैं……

इतना कह रूपचंद मुस्कुराता हुआ आंगन से निकल गया .रसिकलाल रूपचंद की बातों से अवाक् होकर अनमने से ठकमुरा कर बैठ गया .शायद वह यही सोच रहा था कि दहेज़ लेकर जो पाप उसने कमाए हैं परमात्मा उसका हिसाब कर रहा है …
सार: जबरदस्ती दहेज़ वसूलना गुनाह है. सहमत हैं तो शेयर करिये पोस्ट को…
फिर मिलेंगे….धन्यवाद …!

                                                  ***





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आर के चौधरी
आर के चौधरीhttps://vicharkranti.com/category/motivation/
लिखने का शौक है और पढ़ने का जूनून । जिंदगी की भागमभाग में किताबों से अपनी यारी है ... जब भी कुछ अच्छा पढ़ता हूँ या सुनता हूँ लगता है किसी और से बाँट लूँ । फुरसत के लम्हों में बस इसी मोह के मातहत मेरे लिए कलम उठाना लाचारी है । मेरी लेखनी आपकी सफलता का संबल बने, तो फिर - इससे अधिक अपनी जिंदगी में मुझे क्या चाहिए !!!

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