भारत की स्वतंत्रता में जिन महानायकों का नाम सबसे पहले लिया जाता है उनमें चंद्रशेखर आजाद का नाम अग्रणी क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों में से एक है..।
महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन को बीच में ही छोड़ दिए जाने के परिणामस्वरूप आजाद ने अहिंसक आंदोलन का रास्ता छोड़ क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया । पहले हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य बने और 1927 में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की शहादत के बाद उन्होंने देश के सभी प्रमुख क्रांतिकारी पार्टियों को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के झंडे के नीचे लाकर क्रांतिकारी आंदोलन का नेतृत्व करते हुए स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा दी ।
चंद्रशेखर आजाद के बारे में कहा जाता है ,कि उन्होंने शपथ ली थी कि वह अंग्रेजों के हाथों जिंदा नहीं पकड़े जाएंगे और अल्फ्रेड पार्क में उन्होंने खुद को गोली मार कर इस बात को सच साबित कर दिया ।
चंद्रशेखर आजाद के त्याग और बलिदान को श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित है हमारा यह आर्टिकल , जिसमें हम चंद्रशेखर आजाद की जीवनी को आपके साथ संक्षेप में सांझा करने का प्रयास करेंगे ।
चंद्रशेखर आजाद का शुरुआती जीवन
23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा में सीताराम तिवारी और जगरानी देवी के घर चंद्रशेखर आजाद का जन्म हुआ । पिता से स्वाभिमान और ईमानदारी उन्हें विरासत में मिली । उनकी माता जगरानी देवी एक गृहणी थी जो अपने बेटे चंद्रशेखर को संस्कृत का विद्वान महापंडित बनाना चाहती थी लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही निर्धारित कर रखा था ।
चंद्रशेखर आजाद के जीवन का टर्निंग प्वाइंट
चंद्रशेखर आजाद जब 14 वर्ष के थे तो वह पढ़ने के लिए बनारस गए । उन्होंने संस्कृत की एक पाठशाला में एडमिशन लिया । जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में क्रांतिकारियों ने भारी प्रदर्शन किए । उसी दौरान 1920 -21 में गांधी जी का असहयोग आंदोलन भी चला ।
चंद्रशेखर आजाद भी असहयोग आंदोलन से जुड़ गए । अपने विद्यालय के अन्य छात्रों का नेतृत्व करते हुए इस आंदोलन के दौरान चंद्रशेखर आजाद पकड़े गए । इस गिरफ़्तारी में एक दिलचस्प वाकया देखने को मिला ।
अदालत में चंद्रशेखर आजाद से जज ने पूछा – “तुम्हारा नाम क्या है ? ” उन्होंने उत्तर दिया – मेरा नाम आजाद है , फिर जज ने पूछा- “ पिता का क्या नाम है ? ” चंद्रशेखर आजाद ने उत्तर – मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता है । जज के द्वारा घर का पता पूछे जाने पर उन्होंने जेल को अपना घर बताया । जज साहब नाराज हो गए और इस 16 साल के बालक को 15 दिनों की जेल और 15 कोड़े की सजा मिली ।
हर कोड़े के साथ चंद्रशेखर आजाद ने वंदेमातरम और महात्मा गांधी की जय ! का नारा बुलंद किया । जब जेल से निकले अखबार में आजाद की रिहाई की खबर भी छपी और लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया । इसके बाद से उन्हें चंद्रशेखर आजाद या आजाद के नाम से जाना जाने लगा ।
चंद्रशेखर आजाद के क्रांतिकारी कार्य
संगठन की स्थापना
1922 में चोरा-चोरी घटना के बाद गांधी जी ने बिना किसी से बातचीत किए अपने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया । इस घटना से बहुत से क्रांतिकारी नाराज हो गए और उनका कांग्रेस और कांग्रेस की नीतियों से मोहभंग हो गया ।
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल , शचींद्रनाथ सान्याल , योगेशचंद्र चटर्जी आदि क्रांतिकारियों ने 1924 में एक हिंदुस्तानी प्रजातांत्रिक संघ नामक संगठन का गठन किया । चंद्रशेखर आजाद भी इसमें शामिल हो गए। इस दल ने पहले गांव या आसपास के अमीर लोगों से और बाद में सरकारी संस्थानों से धन लूटकर अपने संगठन के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए धन जुटाया ।
लाला लाजपतराय की मौत का बदला
लाला लाजपत राय जो उस समय भारत के बड़े क्रांतिकारियों में से एक थे की मौत का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 की शाम को लाहौर में चंद्रशेखर आजाद , भगत सिंह और राजगुरु तीनों ने पुलिस अधीक्षक सांडर्स के मस्तक पर एक गोली दाग दी । राजगुरु ने पहली गोली चलाई और इसके बाद भगत सिंह ने और चार से पांच गोली मारकर सांडर्स का काम तमाम कर दिया । इस कार्यवाही में चंद्रशेखर आजाद इन दोनों को कवर फायर दे रहे थे , और जब पुलिस अधीक्षक के सुरक्षाकर्मियों ने इन पर हमला करने की कोशिश की तो चंद्रशेखर आजाद ने उसे घायल कर दिया ।
इस घटना के बाद लाहौर की गलियों में यह पर्चा चिपका दिया गया कि लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया गया है । पूरे देश में क्रांतिकारियों के इस कदम की प्रशंसा की गयी ।
केंद्रीय असेंबली में बम
चंद्रशेखर आजाद के सफल नेतृत्व में ही दिल्ली के केंद्रीय भवन में ,8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंका । यह बम किसी को नुकसान के उद्देश्य से नहीं फेंका गया बल्कि अंग्रेजो के दमनकारी कानून के विरोध में फेंका गया । उसी स्थान से भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने गिरफ्तारी दी जिसमें लाहौर कांड में उनलोगों को फांसी हुई ।
चंद्रशेखर आजाद का बलिदान
उन्होंने अपने साथी भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को मिली फांसी की सजा से बचाने के लिए उन्होंने 20 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के आनंदभवन में जवाहरलाल नेहरू से मिलकर अनुरोध किया । लेकिन नेहरू जी ने कोई सकारात्मक उत्तर नहीं दिया ।
27 फरवरी 1931 को उन तीनों को बचाने के लिए अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आजाद अपने एक मित्र के साथ विचार विमर्श कर ही रहे थे कि पुलिस ने चंद्रशेखर आजाद को चारों ओर से घेर लिया । असल में चंद्रशेखर आजाद के एक सहयोगी ने ही उनके खिलाफ पुलिस में मुखबिरी की थी । पुलिस और चंद्रशेखर आजाद के बीच जमकर फायरिंग हुई ।
वर्तमान प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में जब चंद्रशेखर आजाद को यह महसूस हुआ कि अब वह यहां से बचकर नहीं निकल सकते तो उन्होंने अंतिम गोली अपने ही सिर पर मार कर अंग्रेजों द्वारा जीवित नहीं पकड़े जाने के अपने संकल्प को निभाया ।
आजाद भारत में भले ही इनके नाम पर हवाईअड्डे और स्टेडियम न बनते हों लेकिन भारत की आजादी में अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले इन महान सपूतों का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जा चुका है जो शायद किसी स्टेडियम और एयरपोर्ट से बढ़कर है ।
महत्वपूर्ण बातें :
- चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ में हुआ था ।
- असहयोग आंदोलन में उन्हें गिरफ्तार किया गया था इस गिरफ्तारी से आजाद बहुत प्रसिद्ध हो गए और उन्हें उनका उपनाम आजाद भी इसी गिरफ्तारी में मिला ।
- 9 अगस्त 1925 को चंद्रशेखर आजाद और उनके साथियों ने काकोरी कांड को अंजाम दिया था, जिसमें इन लोगों ने अंग्रेज सरकार के खजाने को लूट लिया था । इसी केस में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी हुई । इसे 2 दिन पहले 17 दिसंबर 1929 को राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को भी फांसी की सजा हो गई थी ।
- लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए 17 दिसंबर 1928 को चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह और राजगुरु ने मिलकर लाहौर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सांडर्स की हत्या कर दी थी
- 27 फरवरी 1931 को अल्फ्रेड पार्क प्रयाग में अंग्रेजों से लड़ते हुए शहीद हो गए ।
- इनके द्वारा स्थापित संगठन का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रखा गया था और चंद्रशेखर आजाद इस संगठन के कमांडर इन चीफ थे ।
हमें पूरा विश्वास है कि चंद्रशेखर आजाद की जीवनी लिखने का हमारा यह लघु प्रयास आपको पसंद आया होगा । त्रुटि अथवा किसी भी अन्य प्रकार की टिप्पणी नीचे कमेंट बॉक्स में सादर आमंत्रित हैं …लिख कर जरूर भेजें ! इस लेख को अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल्स पर शेयर भी करे क्योंकि Sharing is Caring !
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संदर्भ :
- पुस्तक: अमर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद
- Chandra Shekhar Azad (An Immortal Revolutionary of India)
- जब भगत सिंह ने बम फेंका था
- विकिपिडिया एवं इंटरनेट के अन्य स्त्रोत
विचारक्रांति के लिए लेखक नीरज
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