अंगुलिमाल और महात्मा बुद्ध की कहानी -story of angulimal and lord budhha in hindi

Written by-आर के चौधरी

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कहानी अंगुलिमाल प्रारम्भ:

प्राचीन समय की बात है.एक बार महात्मा बुद्ध  उपदेश के क्रम में मगध प्रदेश की राजधानी श्रावस्ती के एक गांव में आए. उनके उपदेश का कार्यक्रम जब समाप्त हुआ तो उन्होंने लोगों को अत्यंत भयभीत देखा. लोग सूर्यास्त होते ही अपने अपने घरों की ओर तेजी से  जाने लगे थे.

महात्मा बुद्ध ने इस भय का कारण जानना चाहा. उन्हें ज्ञात हुआ अंगुलिमाल नाम का कोई डाकू है,  जिसने हजार लोगों की हत्या करने की प्रतिज्ञा ले ली है. फलस्वरूप वह उस गांव के पास वाले जंगल से होकर गुजरने वाले  पथिकों की निर्मम हत्याएं करता है. हत्या के पश्चात उनकी उंगली काट कर अपने माला में गूंथ पहन लेता है.

भगवान बुद्ध ने जब लोगों की चिंताएं सुनी, भय का कारण जाना तो उन्होंने उस जंगल से गुजरने का निश्चय किया. लोगों ने उन्हें भरपूर समझाने की कोशिशें की,:-” महाराज आप उस रास्ते मत जाइए. वह  राक्षस आप की भी हत्या कर देगा.” लेकिन महात्मा बुद्ध नहीं माने वह उसी रास्ते जंगल की तरफ चल पड़े.

विभिन्न बौद्ध कथाओं और लोक कथाओं के अनुसार अंगुलिमाल एक ब्राह्मण पुत्र था. उसका नाम अहिंसक था. अपने अध्ययन काल में  तक्षशिला विश्वविद्यालय का बहुत ही प्रतिभावान विद्यार्थी हुआ करता था. जिससे उसके कुछ सहपाठी उसके प्रति ईर्ष्यालु हो गए. उन्होंने येन केन प्रकारेण गुरु के मन में उसके  प्रति नकारात्मक भाव पैदा करने में सफलता प्राप्त कर ली.गुरु के मन में उसके प्रति कुछ संदेह उत्पन्न हो गया. प्राचीन समय में शिक्षा समापन के पश्चात शिष्य अपने गुरु को गुरु दक्षिणा देते थे.   अहिंसक के गुरु ने गुरु दक्षिणा स्वरूप उससे हजार उंगलियां देने को कहा. उन्होंने ऐसी गुरु दक्षिणा मांगी जहां उनका निहित उद्देश्य था. उनकी धारणा थी कि यह यदि हजारों व्यक्तियों को नुकसान पहुंचाएगा तो कोई न कोई इसकी भी हत्या कर देगा.

पहले तो अहिंसक ने लोगों से अनुरोध किया कि वह उसे उसके हाथ की अनामिका उंगली को काटने दे.  पर सहजता से ऐसा नहीं होता देख हिंसा का रास्ता अपनाकर अहिंसक अंगुलिमाल बन गया.

कई बार गलत मार्गदर्शन व्यक्ति के जीवन में अंधकार ले आता है. इसलिए हमें पथ प्रदर्शक बनाने से पहले किसी व्यक्ति के बारे में जानकारी अवश्य लेनी चाहिए.




उसके द्वारा की जा रही निर्मम हत्याओं से  दिशाएं भयाक्रांत हो गयी . चहुदिस हाहाकार मचा गया .जनता त्राहिमाम करने लगी और तत्कालीन नरेश प्रसेनजित को  उससे पार पाने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.. 

भगवान बुद्ध जंगल के बीच से निकल रहे थे तभी जंगल के सन्नाटे को चीरता हुआ एक कर्कश आवाज उनके कानों तक पहुंची,-” ठहर जा !”

भगवान बुद्ध ने बिना परवाह किए अपना चलना जारी रखा. एक अनोखी घटना घटी… अंगुलिमाल अपने पूरे सामर्थ्य से बुद्ध का पीछा करता रहा, लेकिन मध्यम कदमों से चलते बुद्ध तक कभी पहुंच नहीं पाया.झल्लाकर फिर एक बार भारी क्रोध से बोला ” मैं कहता हूँ ठहर जा ..मैं तुम्हारी हत्या कर दूँगा!”  

बुद्ध ने उत्तर दिया- ” मैं तो क’ब का ठहर गया … तुम कब ठहरोगे ?”

बुद्ध का निर्भीक उत्तर और  दैदीप्यमान चेहरा देखकर अंगुलिमाल  असहज हो रहा था. अंगुलिमाल ने कहा,- “मैं तुम्हारी  हत्या कर दूंगा सन्यांसी! क्योंकि तुम हजारवां शिकार हो. सन्यांसी तुम्हारी उँगलियाँ काट कर मैं अपनी गुरुदक्षिणा और अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लूँगा.. 

बुद्ध ने बड़े ही शांत स्वर में उत्तर दिया, ” तेरी जो मर्जी कर लेना, लेकिन उससे पहले मेरा एक काम कर दे.सामने के पेड़ से कुछ पत्ते  तोड़ कर ले आओ.”

बुद्ध के मुखमण्डल के तेज का प्रभाव और अपनी हज़ारवें  शिकार की लालसा से वशीभूत अंगुलिमाल झट से पेड़ से पत्ते तोड़  लाया.

बुद्ध को देते हुए बोला,:-” यह ले..!”

बुद्ध ने कहा,- “अब इन पत्तों को फिर से उसी वृक्ष में जोड़ दो . अंगुलिमाल बोल पड़ा “कैसी नासमझ बातें कर रहे हो सन्यासी!” जो भला एक बार कट गया उसको कैसे जोड़ा जा सकता है?

बुद्ध ने कहा,-” मैं भी तुझे वही कहने  आया हूँ. जब एक पत्तें को पेड़ से जोड़ने का सामर्थ्य तुझमें नहीं हैं, तो तुम्हें तोड़ने का अधिकार किसने दे दिया . तोड़ना बहुत सरल है जोड़ना बहुत कठिन…”

अंगुलिमाल के हाथ से कटार छूटकर जमीन पर गिर पड़ा. आँखों से आंसुओं की धारा चल पड़ी. अंगुलिमाल ने अंगुलियों की माला बुद्ध के चरणों में डाल दी.  तथागत बुद्ध वापस गांव की ओर चल पड़े और उनके पीछे-पीछे अंगुलिमाल आंसुओं से भीगा हुआ तथागत बुद्ध के साथ ही चल पड़ा… 

अंगुलिमाल बौद्ध  भिक्षुक बन गया.हालांकि उसकी मृत्यु भिक्षुक बनने के कुछ ही समय पश्चात हो गया. परन्तु अंगुलिमाल  एक बौद्ध भिक्षु बन पूरी जिंदगी सेवा में लगा रहा….

प्रेरक सीख

कहानी से अगर कुछ चीज हम ग्रहण कर सकते हैं तो वह है

कि एक व्यक्ति का विचार कभी भी बदल सकता है चाहे वह कितनी ही ख़राब ज़िंदगी क्यों न जी रहा हो , शर्त इतनी   सी है कि उसे मार्गदर्शन सही मिले .दूसरी महत्वपूर्ण बात कि किसी व्यक्ति का विचार बदलना अपने आप में उसके      लिए संसार के बदलने  बदलने जैसा है.”जैसा विचार वैसा संसार…अच्छाइयों के आगे बुराइयां देर तक नहीं टिक सकतीं,उन्हें झुकना ही पड़ता है … अतएव जीवन में परेशानियों का पहाड़ देखकर घबराईये नहीं धैर्य पूर्वक उनका सामना कीजिये….

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जय हिंद! जय विचार क्रांति!


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