कहानी अविनाशी सुख : एक वृक्ष के नीचे एक पुरुष बैठा था, वहां से एक सामुद्रिक विज्ञान का ज्ञाता गुजर रहा था । सामुद्रिक विज्ञान में इस बात का वर्णन होता है कि शरीर के कौन-कौन से चिन्ह किस-किस बात की सूचना देते हैं। उस सामुद्रिक की दृष्टि जमीन की तरफ पड़ी ,जमीन पर उसको कुछ पैरों के चिन्ह दिखाई पड़े ।
उसने सोचा – कि अगर मेरी विद्या सही है, तो यह जो पदचिह्न मैं देख रहा हूं ‘यह निश्चय ही किसी महान चक्रवर्ती सम्राट का होगा, और अगर मैं अपने ज्ञान से उन्हें कुछ और बता पाया तो मेरे भाग्य का रास्ता जरूर खुल जाएगा ।
सामुद्रिक आगे बढ़ने लगा । यकायक उसे विचार आया कि क्या चक्रवर्ती सम्राट पैदल जाएंगे? वह बिना वाहन के कैसे जा सकते हैं । उसके मन में संशय पैदा हुआ| खुले पैरों के चिन्ह महान चक्रवर्ती सम्राट के कैसे हो सकते हैं?
अब उसका मन डगमगाया । उसे शंका हुई कि कहीं उसके द्वारा प्राप्त की गयी विद्या ही तो असत्य नहीं है! उसे पैरों के निशान किसी मामूली मजदूर के मालूम पड़ने लगे , मन में ख्याल आया कि अपने पोथी- पत्रों को कुएं में फेंक दे ।
संशय का शिकार वह सामुद्रिक आगे बढ़ता हुआ एक पेड़ के करीब पहुंच गया,जहां उसे एक पुरुष दिखाई दिया। जिसका व्यक्तित्व आकर्षक था, किंतु वह किसी गरीब घराने का प्रतीत हो रहा था । उसके समीप ही एक भिक्षापात्र पड़ा था । उस सामुद्रिक को वहां भी पैरों के कुछ निशान मिल गए।
यह सारे निशान वैसे ही थे; जैसे उसने पहले रास्ते में देखा था । जिसे देखने से उसके मन में यह बात आई कि यह पैरों के निशान किसी चक्रवर्ती सम्राट या महापुरुष के ही हो सकते हैं ।
स्वयं को धिक्कारता वह सामुद्रिक जैसे-जैसे उस पेड़ की ओर बढ़ रहा था। उसके मन में यह बात बार-बार उठ रही थी ,कि उसकी पढ़ी गयी सारी विद्या व्यर्थ है। उसने इन सभी चीजों को सीख कर अपना समय बर्बाद किया इसमें और कुछ भी नहीं है।
उस फक्कड़ व्यक्ति द्वारा चिंता का कारण पूछे जाने पर वह सामुद्रिक ना चाहते हुए भी उसे सब कुछ बता गया ।
फक्कड़ ने कहा तुम्हारा चिंतन सही दिशा में है । तुम्हारा यह अनुमान है कि ऐसे पदचिन्ह वाला पुरुष चक्रवर्ती ही हो सकता है, तुम्हारा सामुद्रिक ज्ञान इस अर्थ में गलत नहीं है ।
मैंने सोचा था कि इस आत्मा और मन पर पहले से ही कई पर्दे पड़े हुए हैं, फिर एक नया पर्दा और क्यों ? इससे अच्छा तो यह हो ,कि जो पर्दे पड़े हुए हैं उन्हें हटाने में अपना जीवन लगाऊं।
वह सामुद्रिक शास्त्र का विद्वान आंखें फाड़-फाड़कर उस व्यक्ति की तरफ देखने लगा..
सामुद्रिक ने पूछा- ‘आप कौन हैं ?’
फक्कड़ व्यक्ति ने उत्तर दिया- ” इस शरीर के जन्म की दृष्टि से मैं राजा शुद्धोधन का पुत्र हूं, लोग मुझे बुद्ध कहते हैं । “
दोनों के बीच लंबी परिचर्चा हुई, शरीर एवं चैतन्य स्वरूप आत्मा के संबंधों के बारे में ,और वह सामुद्रिक बुद्ध का शिष्य बन गया ।
कुछ अन्य प्रेरक कहानियां
अविनाशी सुख कहानी से शिक्षा :-
इस कहानी अविनाशी सुख से पहली शिक्षा मिलती है कि स्थायी सुख प्राप्त करने के लिए मन के आवरणों को समझना और उसे दूर करना,उन आवरणों पर से पर्दा हटाना बहुत ही आवश्यक है।
दूसरी शिक्षा यह है कि संदेह कि स्थिति में सही भी गलत प्रतीत होने लगता है ,इसलिए संदेह अथवा शंका हमारे लिए उचित नहीं है। भगवान कृष्ण भी गीता में कहते हैं – संशयात्मा विनश्यति।
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अध्यात्म ही सच्ची जिंदगी का सार है. अध्यात्म से ही मन का मैल दूर होता है. अध्यात्म सम्बन्धी कहानी प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद सर जी.
आपको यह कहानी प्रेरणादायक लगी,यह जानकार हमें बहुत प्रसन्नता हुई । सुंदर शब्दों से हमारा उत्साह बढ़ाने के लिए विचारक्रांति टीम की ओर से आपको कोटिशः धन्यवाद !
Mera naam alpna h.mai blog pr hindi kahaniyan likhti hu
अल्पना जी आपका विचारक्रांति परिवार में स्वागत है ।
Nice story…