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कविता- हार न मानूंगा मैं! – गोपाल दास नीरज

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हार न अपनी मानूँगा मैं !
चाहे पथ में शूल बिछाओ
चाहे ज्वालामुखी बसाओ,
किन्तु मुझे जब जाना ही है 
तलवारों की धारों पर भी, हँस कर पैर बढ़ा लूँगा मैं !
 
मन में मरू-सी प्यास जगाओ,
रस की बूँद नहीं बरसाओ,
किन्तु मुझे जब जीना ही है 
मसल-मसल कर उर के छाले, अपनी प्यास बुझा लूँगा मैं !
हार न अपनी मानूंगा मैं !
 
चाहे चिर गायन सो जाए,
और ह्रदय मुरदा हो जाए,
किन्तु मुझे अब जीना ही है 
बैठ चिता की छाती पर भी, मादक गीत सुना लूँगा मैं !
हार न अपनी मानूंगा मैं !

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मैं हूँ खुशबू ! घूमने फिरने का शौक है और नई एवं सही चीजों के बारे में लिखने का जुनून । इस वेबसाइट की अधिकांश चीज आपकी नजर तक पहुँचने से पहले मेरी नजरों से होकर गुजरती है । विचारक्रान्ति वेबसाईट को अधिक उपयोगी और लोकप्रिय बना सकूं इसी उम्मीद में लिखना जारी है । Follow me @

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