अपमान और क्रोध पर जेन  गुरु की अद्भुत शिक्षा

Written by-आर के चौधरी

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zen story in hindi पढ़िए प्रसिद्द जेन कथा को हिंदी में

बहुत समय पहले जापान में टोक्यो के निकट एक वृद्ध  जेन गुरु रहते थे. अपने आश्रम में अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे उनके कौशल और  चातुर्य की चर्चा संपूर्ण इलाके में थी.उनके आस-पास ही रहने वाला एक शक्तिशाली नौजवान योद्धा जिसके पराक्रम की चर्चा चारों ओर थी-ने सोचा कि क्यों नहीं इस वृद्ध जेन गुरु को उकसा कर किससे युद्ध करूं और फिर उस युद्ध में  इस जेन गुरु पराजित कर अपने आप को एक अद्वितीय योद्धा के रूप में स्थापित कर दूँ . इन्हीं विचारों के साथ वह योद्धा जेन गुरु के आश्रम में पहुंचा.   

जेन गुरु के आश्रम में पहुंचते ही  वह नौजवान अट्हास करने लगा और उसकी आवाज़ पूरे आश्रम में फैलने लगी जिसे सुनकर जेन गुरु से शिक्षा प्राप्त कर रहे, उनके आश्रम में रहने वाले सभी शिष्य उस योद्धा के सामने जमा हो गए.   जेन गुरु स्वयं भी वहां पहुंच गए .

जेन गुरु को देखते ही नौजवान योद्धा अपमानजनक शब्दों में  उनके बारे में बात करने लगा. उन्हें बहुत अपशब्द कहे और उनको काफी अपमानित किया, लेकिन जेन गुरु वहां पूरी तरह से शांतिपूर्वक खड़े रहे .
उस नौजवान ने   जेन गुरु को काफी कुछ कहा, लेकिन  जेन गुरु बिल्कुल चुपचाप खड़े रहें . अपनी बातों का  जेन गुरु पर कोई असर नहीं  होता देख, वह नौजवान योद्धा काफी सहम गया और काफी घबरा गया. जब काफी बेइज्जती के बाद भी जेन गुरु ने कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया तो वह नौजवान योद्धा वहां से स्वयं ही चला गया.


यह सारा माजरा देख वहां खड़े सभी शिष्यों ने अपने गुरु से एक-साथ प्रश्न किया -” आप इतने कायर हो सकते हैं ? यह तो हमने सपने में भी नहीं सोचा था. उस दुष्ट व्यक्ति ने आपको इतना कुछ कहा और आपने उसे बिना दंडित किए यहां से जाने दिया ? ” . आपने अगर हमें ही; आदेश दिया होता तो हम सब मिलकर उसका कचूमर निकाल देते.

जेन गुरु ने एक  सौम्य मुस्कुराहट के साथ पूरी शांति और शालीनता  से अपने शिष्यों से कहा -“यदि कोई तुम्हारे पास कुछ सामान लेकर आए और तुम उसे लेने से अस्वीकार कर दो ,तो सामान का क्या होता है? वह सामान तुम्हारा तो नहीं होता न !”
सभी शिष्य अपने गुरु के उत्तर में छिपे रहस्य को जान चुके थे वह सब प्रसन्नतापूर्वक अपने अपने स्थान को  लौट गए.

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